मीडिया का नंगापन
आज हमारी हिन्दी की पत्रकारिता किधर जा रही है; पता नहीं।अपनी सांस्कृतिक शिष्टता खासकर न्यूज चैनलों से दूर होती रही है।सुन-सुनकर कान पक जाता है, मन खिन्न हो उठता है।
ये आतिथेय अतिथियों को सम्मान देते हैं कि नंगा करते हैं? इनके सम्बोधन में अतिथि के सम्बोधन के साथ न तो आगे ‘श्री’ रह पाता है और न पीछे ‘जी’ ही।गनीमत है कि ये अभी तक ‘आप’ चला रहे हैं।हो सकता है, ‘तू’ पर भी उतर आएँ।हम श्री राघवेन्द्र, श्रीमती नीलिमा, सर्वेश जी, कान्ता जी-जैसे सम्बोधनों में भाषाई शिष्टाचार देखते आए हैं।जब बहुत नाम जोड़ने होते तो ‘सर्वश्री’ का भी प्रयोग विहित रहा।अब क्या हो गया? अब यह आचार क्यों सरकता जा रहा है? फूहड़पन क्यों सिर चढ़ता जा रहा है ? क्या गौरवशाली हमारी परम्परा के नवयुग में प्रवेश का यही संस्कार है?
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