अक्षयनवमी निरोगता दिवस
सत्येन्द्र कुमार पाठक
ऋग्वेद में देव वैद्य अश्विनीकुमार का महत्वपूर्ण उल्लेख किया गया है । भगवान सूर्य की पत्नी माता संज्ञा ने कार्तिक मास शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को देव वैद्य अश्विनी कुमार का अवतरण किया था । अश्विनी कुमार द्वारा निरोगता के लिए आँवला वृक्ष की उतपति की वही अगस्त ऋषि द्वारा अगस्त वृक्ष की उत्पत्ति की गई थी । भृगुनन्दन ऋषि च्यवन का जर्जर शरीर को युवा अवस्था में लाकर देव वैद्य अश्विनी कुमार द्वारा वैवस्वतमनु की पौत्री एवं राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या को समर्पित किया गया वही दधीचि ऋषि को अश्व का सिर जोड़ कर मधु विद्या की स्थापना की थी । अक्षयनवमी को ब्रह्मलीन भगवत्पाद साँईं लीलाशाहजी महाराज का महानिर्वाण दिवस, कुष्मांड नवमी, अक्षय-आँवला नवमी , निरोगता दिवस , अश्विनीकुमार जन्म दिवस , भातुआ , स्वर्णदान , चांदी दान , मुद्रा दान को गुप्त दान दिवस , प्रीति भोज दिवस कहा जाता है । नवमी को लौकी खाना गोमांस के समान त्याज्य है। ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34 के अनुसार लौकी , कदू को नवमी तिथि को खाना निषेद है । अक्षयनवमी को कर्ज के जाल में उलझे लोगों के लिए गंगाजल पीतल की बोतल में भरकर अपने घर के कमरे में उत्तर पूर्व की दिशा में रख देने से कर्ज चुकाने में बहुत आसानी एवं समस्या ही दूर हो जाति है ।.नारद पुराण के अनुसार* कार्तिके शुक्लनवमी याऽक्षया सा प्रकीर्तता । तस्यामश्वत्थमूले वै तर्प्पणं सम्यगाचरेत् ।। ११८-२३ ।। देवानां च ऋषीणां च पितॄणां चापि नारद । स्वशाखोक्तैस्तथा मंत्रैः सूर्यायार्घ्यं ततोऽर्पयेत् ।। ११८-२४ ।। ततो द्विजान्भोजयित्वा मिष्टान्नेन मुनीश्वर । स्वयं भुक्त्वा च विहरेद्द्विजेभ्यो दत्तदक्षिणः ।। ११८-२५ ।। एवं यः कुरुते भक्त्या जपदानं द्विजार्चनम् । होमं च सर्वमक्षय्यं भवेदिति विधेर्वयः ।। ११८-२६ ।। साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा है कि कार्तिक मास के शुक्लपक्ष नवमी अक्षयनवमी को आँवला वृक्ष और पीपलवृक्ष की जड़ के समीप देवताओं, ऋषियों तथा पितरों का विधिपूर्वक तर्पण करें और सूर्यदेवता को अर्घ्य दे। तत्पश्च्यात ब्राह्मणों को मिष्ठान्न भोजन कराकर , दक्षिणा दे कर और स्वयं एवं आँवला वृक्ष की छाया में परिवार , इष्ट मित्र के साथ भोजन करना चाहिए ।भक्तिपूर्वक अक्षय नवमी को जप, दान, ब्राह्मण पूजन और होम करता है, उसका वह सब अक्षय होता है ।कार्तिक शुक्ल नवमी को दिया हुआ दान अक्षय होता है । स्कन्दपुराण, नारदपुराण पुराणों के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी युगादि तिथि है। इसमें किया हुआ दान और होम अक्षय जानना चाहिये । प्रत्येक युग में सौ वर्षों तक दान करने से जो फल होता है, वह युगादि-काल में एक दिन के दान से प्राप्त हो जाता है “एतश्चतस्रस्तिथयो युगाद्या दत्तं हुतं चाक्षयमासु विद्यात् । युगे युगे वर्षशतेन दानं युगादिकाले दिवसेन तत्फलम्॥ *देवीपुराण के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमीको व्रत, पूजा, तर्पण और अन्नादिका दान करनेसे अनन्त फल होता है। कार्तिक शुक्ल नवमी को ‘धात्री नवमी , आँवला नवमी , और ‘कूष्माण्ड नवमी’ , पेठा नवमी , सीताफल नवमी कहते है। स्कन्दपुराण के अनुसार अक्षय नवमी को आंवला पूजन से स्त्री जाति के लिए अखंड सौभाग्य और पेठा पूजन से घर में शांति, आयु एवं संतान वृद्धि होती है। आंवले के वृक्ष में सभी देवताओं का निवास होता है तथा यह फल भगवान विष्णु को अति प्रिय है। अक्षय नवमी के दिन अगर आंवले की पूजा करना और आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन बनाना और खाना संभव नहीं हो तो इस दिन आंवला जरूर खाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को आंवले के पेड़ से अमृत की बूंदे गिरती है और यदि इस पेड़ के छाया में व्यक्ति भोजन करता है भोजन में अमृत के अंश आ जाता है। जिसके प्रभाव से मनुष्य रोगमुक्त होकर दीर्घायु बनता है। चरक संहिता के अनुसार अक्षय नवमी को आंवला खाने से महर्षि च्यवन को फिर से जवानी और नवयौवन प्राप्त है । च्यवनप्राश की उत्पत्ति दिवस भी गह गया है । कार्तिक शुक्ल नवमी को सतयुग का प्रारंभ दिवस कहा गया है ।शाकद्वीप में रहने वाले सौरधर्म के अनुयायी तथा मग द्वारा आयुर्वेद चिकित्सा का रूप सातों द्वीपों में दिया गया । मधु विद्या का ज्ञान शाकद्वीपीय ब्राह्मण , मग , सकलदीपी द्वारा द्वीपों के विभिन्न क्षेत्रों में फैलाई गई है ।
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