जम्बूद्वीप और भारतवर्ष
सत्येन्द्र कुमार पाठक पुरणों एवं संहिताओं में जम्बूद्वीप का वर्णन किया गया है ।जम्बूद्वीप के मध्य भाग में 84 हजार योजन ऊँचाई और शिखर की चौड़ाई 32 हजार योजन तथा 16 हजार योजन विस्तारित युक्त मेरुपर्वत के दक्षिण में हिमवान , हेमकूट , निषध पर्वत , उत्तर में नीलश्वेत श्रृंगवान गिरि है । मेरु के दक्षिण में भारतवर्ष , उत्तर में किंपुरुष वर्ष , हरिवर्ष रम्यक वर्ष ,दक्षिण में हिरण्यवर्ष ,उत्तरकुरु वर्ष के मध्य में इला वर्ष है । मेरु पर्वत के चारो ओर वर्ष और पूर्व में मंदराचल , दक्षिण में गंधमादन पश्चिम में विपुल एवं उत्तर में सुपार्श्व पर्वत है । जम्बूद्वीप में भारत ,केतुमाल ,भद्राश्व ,और कुरु वर्ष है । केतुमाल वर्ष में वराह , भद्राश्व वर्ष में हयग्रीव ,भारतवर्ष में कच्छप और उत्तर कुरु में मत्स्य भगवान विष्णु का अवतार की उपासना करते है ।भारतवर्ष में महेंद्र , मलय ,सहय , शुक्तिमान ,ऋक्ष , विंध्य और पारियात्र कुल पर्वत है । भारतवर्ष के राजा भरत की संतान रहते है । भारतवर्ष में इंद्र द्वीप ,कसेतु द्वीप ,ताम्र द्वीप ,गभस्ति द्वीप ,नागद्वीप ,सौम्य द्वीप ,गंधर्व द्वीप ,वरुण द्वीप है । जम्बूद्वप के देशों में हरिवर्ष, भद्राश्व और किंपुरुष का स्थान को चीन , नेपाल और तिब्बत शामिल है । 1934 में हुई उत्खनन में चीन के समुद्र के किनारे बसे प्राचीन शहर च्वानजो में 1000 वर्ष से प्राचीन हिन्दू मंदिरों के दर्जन से अधिक खंडहर मिले हैं। चीन , नेपाल , तिब्बत , भूटान , भारत का अरुणाचल , सिक्कम , लद्दाख , लेह और वर्मा का क्षेत्र प्राचीन काल में हरिवर्ष कहलाता था । हजार वर्ष पूर्व सुंग राजवंश के दौरान दक्षिण चीन के फूच्यान प्रांत में मंदिर थे । त्रिविष्टप ( तिब्बत ) में देवलोक और गंधर्वलोक था। 500 से 700 ई . पू . चीन को महाचीन एवं प्राग्यज्योतिष कहा जाता था । आर्य काल में संपूर्ण क्षेत्र हरिवर्ष, भद्राश्व और किंपुरुष नाम से प्रसिद्ध था। महाभारत के सभापर्व में भारतवर्ष के प्राग्यज्योतिष पुर प्रांत का उल्लेख है। इतिहासकार के अनुसार प्राग्यज्योतिष को असम को कहा जाता था। प्राग्ज्योतिषपुर का असुर राजा नरका सुर था । रामायण बालकांड (30/6) में प्राग्यज्योतिष की स्थापना का उल्लेख है। विष्णु पुराण में प्राग्ज्योतिषपुर को कामरूप , किंपुरुष है। रामायण काल से महाभारत कालपर्यंत असम से चीन के सिचुआन प्रांत तक के क्षेत्र को प्राग्यज्योतिष था। जिसे कामरूप कहा गया था । चीनी यात्री ह्वेनसांग और अलबरूनी के समय तक कभी कामरूप को महाचीन कहा जाता था। अर्थशास्त्र के रचयिता कौटिल्य ने 'चीन' शब्द का प्रयोग कामरूप के लिए किया है। कामरूप या प्राग्यज्योतिष प्रांत प्राचीनकाल में असम से बर्मा, सिंगापुर, कम्बोडिया, चीन, इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा में 5123 वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण प्रवास किये थे । महाभारत 68, 15 के अनुसार कृष्ण काल में प्राग्ज्योतिषपुर का राजा शिशुपाल ने द्वारिका को जलाया था । चीनी यात्री ह्वेनसांग (629 ई.) के अनुसार कामरूप पर कुल-वंश के 1,000 राजाओं का 25,000 वर्ष तक का शासन किया। महाचीन चीन और प्राग्यज्योतिषपुर कामरूप है । यह कामरूप भी अब कई देशों में विभक्त हो गया। मंगोल, तातार और चीनी लोग चंद्रवंशी हैं। कर्नल टॉड की पुस्तक राजस्थान का इतिहास। एवं पंडित यदुनंदन शर्मा की पुस्तक वैदिक संपति और हिंदी शब्द कोष के अनुसार तातार के लोग अपने को अय का वंशज कहते हैं ।राजा पुरुरवा की पत्नी उर्वशी का पुत्र आयु था। पुरुरवा कुल में कुरु और कुरु से कौरव हुए है । आयु के वंश में सम्राट यदु और उनका पौत्र हय था। चीनी लोग हय को हयु को पूर्वज मानते हैं। चीन वालों के पास 'यू' की उत्पत्ति इस प्रकार लिखी है कि एक तारे (तातार) का समागम यू की माता के साथ होने से यू हुआ। सोम एवं वृहस्पति और तारा पुत्र बुध और इला के समागम है। चीन ग्रंथों के अनुसार तातारों का अय, यू और आयु का आदिपुरुष चंद्रमा था ।
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