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मंत्र साधना में आसन,संकल्प विनियोग और न्यास का क्या महत्त्व हैं?कैसे जागृति होती हैं मंत्रों में
मंत्र साधना में आसन,संकल्प विनियोग और न्यास का क्या महत्त्व हैं?कैसे जागृति होती हैं मंत्रों में निहित शक्ति?क्या साधना में छंद का महत्व हैं? किसी भी पूजा या मंत्र जाप करते समय आसन आवश्यक रूप से होना चाहिए। मान्यता के अनुसार जब हम कोई शुभ कार्य करते हैं तो हमारे शरीर में एनर्जी का लेवल बढ़ने लगता है। आसन पर न बैठने की स्थिति में ये एनर्जी जमीन द्वारा अवशोषित कर ली जाती है। पूजा पाठ करने से पहले किया जाने वाला न्यास क्या होता है? न्यास का अर्थ है - स्थापना। बाहर और भीतर के अंगों में इष्टदेवता और मन्त्रों की स्थापना ही न्यास है। इस स्थूल शरीर में अपवित्रता का ही साम्राज्य है,इसलिए इसे देवपूजा का तबतक अधिकार नहीं है जब तक यह शुद्ध एवम दिव्य न हो जाये। अपने शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों का स्पर्श करना कि मानों उन अंगों में देवता स्थापित किये जा रहे हों। यानी देवता की पूजा देवता बन कर हि कि जाती है शरीर के सभी अंगों में देवता स्थापन हि न्यास है न्यास के प्रकार ;- 1-प्रत्येक पूजन की अलग अलग प्रक्रिया हैं उसी के अनुसार न्यास मे भी अंतर देखने को मिलता हैं।ज्ञानार्णवतंत्र के अनुसार न्यास कई प्रकार के होते है... 1-1-कर न्यास 1-2-अंग न्यास 1-3-ऋष्यादि न्यास 1-4-मन्त्र न्यास 1-5 मातृका न्यास 1-6. व्यापक न्यास 1-7- षोढान्यास 2-इनके अतिरिक्त और भी बहुत से न्यास है, जिनके द्वारा हम अपने शरीर के असंतुलन को ठीक कर शरीर को देवतामय बना सकते है। सभी न्यास का एक विज्ञान है और यदि नियमपूर्वक किया जाय तो ये हमारे शरीर और अंत:करण को दिव्य बनाकर स्वयं ही अपनी महिमा का अनुभव करा देते है।न्यास के बिना जो मन्त्र-जप किया जाता है,वो व्यर्थ होजाता है,क्यों कि वह आसुरी होजाता है(इससे न्यास की महत्ता सिद्ध होती है ।अतः न्यास द्वारा देवता बनकर,पूजन-यजन करना चाहिए। 1-कर न्यास;- न्यास कई प्रकार के होते हैं परंतु मुख्यतः तीन प्रकार के न्यास बहुत जरुरी बताये गये हैं।कर न्यास अर्थात् हमारे हाथ का न्यास। हाथ कर्मों का प्रतीक है। हमें हाथों से शुभ कर्म करने चाहिए जिनसे सभी का कल्याण हो। कर न्यास में हाथों की अंगुलियां, अंगूठे और हथेली को दैवीय शक्ति से अभिमंत्रित करते हैं।वस्तुतः करन्यास और अंगन्यास दोनों इसके ही प्रभेद हैं। पहले दोनों हाथों की अंगुलियों का क्रमशः आपस में मन्त्र-पूरित-स्पर्श करते हैं। यथा—अंगूठा,तर्जनी, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठा। तत्पश्चात करतल और करपृष्ठ का स्पर्श किया जाता है। अंगन्यास करने का सही तरीका क्या हैं? अंग न्यास ... सीधे हाँथ के अंगूठे ओर अनामिका अंगुली को आपस में जोड़ ले। सम्बंधित मंत्र का उच्चारण करते जाये , शरीर के जिन-जिन भागों का नाम लिया जा रहा हैं उन्हें स्पर्श करते हुए यह भावना रखे की... वे भाग अधिक शक्तिशाली और पवित्र होते जा रहे हैं। . उदाहरण;- 1-ॐ क ए ई ल ह्रीं ह्रदयाय नमः ----- बतलाई गयी उन्ही दो अंगुली से अपने ह्रदय स्थल को स्पर्श करे 2-ह स क ह ल ह्रीं ---- अपने सिर को 3-स क ल ह्रीं शिखाये फट ---- अपनी शिखा को (जोकि सिर के उपरी पिछले भाग में स्थित होती हैं ) 4-ॐक ए ई ल ह्रीं - कवचाय हुम् --- अपने बाहों को 5-ह स क ह ल ह्रीं नेत्र त्रयाय वौषट-----अपने आँखों को 6-स क ल ह्रीं अस्त्राय फट् --- तीन बार ताली बजाये दिव्य रश्मि ! धर्म, राष्ट्रवाद , राजनीति , समाज एवं आर्थिक जगत की खबरों का चैनल है | जनता की आवाज़ बनने के उदेश्य से हमारे सभी साथी कार्य करते है अत: हमारे इस मुहीम में आप के साथ की आवश्यकता है |हमारे खबरों को लगातार प्राप्त करने के लिए हमारे चैनल को सबस्क्राइब करना न भूले और बेल आइकॉन को अवश्य दबाए | खबर पसंद आने पर👉 हमारे "चैनल" को Subscribe, वीडियो को Like 👍 & Share↪ , जरुर करें चैनल को सब्सक्राइब करें , लाईक और खबर को शेयर अवश्य करें Facebook : https://ift.tt/3dbFiJU Twitter https://twitter.com/DivyaRashmi8 instagram : https://ift.tt/35ARrp0 visit website : https://ift.tt/3d6mwRK
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