प्रशंसा और निंदा
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र"अणु"
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वो अपनी,
आवश्यकतानुसार!
करते हैं-
प्रशंसा और निंदा।।
जो होता है-
उनके लिए खास और चुनिंदा।।
बस उसीके,
तिजारत में दिन-रात-
बांचते और बांधते हैं पुलिंदा।।
हे भगवान!
मुझे ऐसे लोगों से बचाव-
जो सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए है जिंदा।।
मेरे बहुत सारे मित्र,
ऐसी हरकत करते हैं विचित्र-
जो शायद पशु समझते हैंं या फिर परिंदा।।
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