सनातन संस्था द्वारा पूरे भारत में चलाएं जा रहे ‘ज्ञानशक्ति प्रसार अभियान’ के निमित्त...
सनातन के ग्रंथ अर्थात ईश्वरी चैतन्य, साथ ही आनंद और शांति की अनुभूति देनेवाला साहित्य । सनातन के ग्रंथों में दिया दिव्य ज्ञान समाज तक पहुंचाने के लिए सनातन की ओर से पूरे भारत में ‘ज्ञानशक्ति प्रसार अभियान’ चलाया जा रहा है । सनातन के ग्रंथ समाज के प्रत्येक जिज्ञासु, मुमुक्षू इत्यादि जीवों तक पहुंचे तथा उन्हें भी ज्ञानशक्ति का लाभ हो, यह इस अभियान का उद्देश्य है ।
1. अनुभवसिद्ध ज्ञान निर्माण करनेवाला मौलिक विचारधन !
‘अनुभवसिद्ध साहित्य के कारण संस्कृति जीवित रहती है !’ अनुभवयुक्त साहित्य आगामी अनेक पीढीयों का उद्धार करता है । अनुभवसिद्ध साहित्य-संस्कृति का जिन्होंने जतन किया, उनका नाम अजर अमर हुआ और वे दीपस्तंभ के समान इस विश्व के मार्गदर्शक बन गए । आद्य शंकराचार्य, संत एकनाथ महाराज, समर्थ रामदासस्वामी इत्यादि के चरित्र और साहित्य उनके अनुभवों से ओतप्रोत भरा है । इन विभूतियों के समान ही परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी का चरित्र और उनके द्वारा लिखे गए ग्रंथ भी मार्गदर्शक है; क्योंकि संतों द्वारा विविध प्रसंगों में सिखाया गया अध्यात्म, अध्यात्म का आचरण करते हुए स्वयं को हुए अनुभव, उन अनुभवों का विश्लेषण, प्रयोगशीलता द्वारा अर्जित ज्ञान इत्यादि से वे समृद्ध है । अध्यात्म अनुभूति का शास्त्र होने से अनेक बार अध्यात्म के नवीनतम सूत्र ईश्वर अनुभूति के माध्यम से सिखाता है । इन सूत्रों का भी ग्रंथों में समावेश किया गया है ।
2. सर्वांगस्पर्शी ग्रंथसंपदा !
सनातन की ग्रंथसंपदा सर्वांगस्पर्शी है । कर्मकांड के प्रति श्रद्धा रखनेवालों हेतु धर्मशास्त्र प्रतिपादित करनेवाले ग्रंथ उपयुक्त है । उपासनाकांड के साधकों के लिए भक्ति में वृद्धि करनेवाले ग्रंथ मार्गदर्शक सिद्ध होते हैं । कला में रूचि रखनेवालों को ‘सात्त्विक कला किस प्रकार संवर्धित करें ?’, इस विषय में नया दृष्टिकोण सिखने को मिलता है । राष्ट्ररक्षा और धर्मजागृति के विषय से संबंधित ग्रंथ हिन्दू समाज को सभी दृष्टि से आदर्श हिन्दू राष्ट्र स्थापना के विषय में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं । बालसंस्कार, बच्चों का विकास, आयुर्वेद जैसे जीवन और साधना के प्रत्येक अंग के विषय में व्यापक एवं सखोल मार्गदर्शन करनेवाले ये ग्रंथ है ।
3. अध्यात्म की प्रत्येक कृति के विषय में ‘क्या और कैसे’ प्रश्नों के शास्त्रीय उत्तर !
वर्तमान विज्ञानयुग की पीढी को अध्यात्म की प्रत्येक कृति के विषय में ‘क्यों एवं कैसे’, यह जानने की जिज्ञासा होती है । उन्हें अध्यात्म की किसी कृति का आधारभूत शास्त्र समझाकर बताने पर, उनका अध्यात्म पर शीघ्र विश्वास स्थापित होता है और वे साधना पथ पर मार्गक्रमण करते हैं । इसीलिए परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने आरंभ से ही प्रत्येक ग्रंथ में अध्यात्मशास्त्र बताने को प्रधानता दी है । इसका एक उदाहरण निम्नानुसार है ।
शिवपिंडी पर बेल चढाने की दो पद्धतियां है । पहली पद्धति अर्थात पत्तों का सिरा स्वयं की दिशा में करके बेल चढाना और दूसरी पद्धति अर्थात पत्तों का डंठल अपनी ओर रखकर बेल चढाना । जिज्ञासुआें के मन में प्रश्न निर्माण हो सकता है कि ‘दो भिन्न पद्धतियां क्यों ?’ इसका शास्त्र ऐसा है कि - बेल के पत्ते तारक शिवतत्त्व के वाहक है तथा बेल के पत्तों का डंठल मारक शिवतत्त्व का वाहक है । सामान्य उपासक की प्रकृति तारक स्वरूप की होने से शिव की तारक उपासना ही उसकी प्रकृति हेतु अनुकूल और आध्यात्मिक उन्नति हेतु पूरक होती है । ऐसे उपासकों को शिव के तारक तत्त्व का लाभ होने के लिए पत्तों का सिरा अपनी ओर तथा डंठल पिंडी की ओर रखकर बेलपत्र चढाएं । इसके विपरित शाक्तपंथीय (शक्ति की उपासना करनेवालेे) शिव के मारक रूप की उपासना करते हैं । ऐसे उपासकों को शिव के मारक तत्त्व का लाभ लेने के लिए बेल के पत्तों का छोर भगवान की ओर तथा डंठल अपनी ओर रखकर बेलपत्र चढाएं ।’
* सनातन के ग्रंथ अर्थात आधुनिक काल की ‘गीता’ !
‘श्रीमद्भगवद्गीता’ ग्रंथ की क्या विशेषता है ? ‘सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।’, अर्थात ‘सर्व प्रकृतिधर्म, षड्रिपु एवं अहं का त्याग कर केवल मेरी शरण आएं’, ऐसा उपदेश करनेवाले गुरु श्रीकृष्ण शिष्य अर्जुन को भगवद्प्राप्ति का रहस्य और मार्ग दिखाते है । साथ ही ‘अपने-पराए, गुरुजन, पितामह इत्यादि सामने खडे हो, तो भी वे अधर्म पक्ष में होने से उनका वध करना, यह धर्मपालन ही है’; इसीलिए ‘उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः’, अर्थात ‘उठो अर्जुन, धर्मयुद्ध के लिए सज्ज हो’, ऐसा भी उसे स्पष्ट बताते है । भगवान की यह ‘गीता’ ब्राह्मतेज और क्षात्रतेज का आदर्श समन्वय दिखाती है ।
समाज अध्यात्ममार्गी, धर्माचरणी हो, तो उसमें नैतिकता, शीलवान चरित्र, बंधुभाव, कर्तव्यदक्षता इत्यादि गुणों का विकास होता है तथा सामाजिक स्थिरता निर्माण होती है । साथ ही अन्याय, अधर्म इत्यादि के विरुद्ध लडने से ही राष्ट्रीय जीवन में भ्रष्टाचार, गुंडागिरी, सामाजिक विषमता जैसे दुर्गुणों पर आघात होने से राष्ट्र सुरक्षित और सुुव्यवस्थित रहता है । इसके लिए ब्राह्मतेज और क्षात्रतेज का सुयोग्य समन्वय आवश्यक है । ‘गीता’ ग्रंथ के समान ही सनातन के ग्रंथ यह आधुनिक काल हेतु आवश्यक ब्राह्मतेज और क्षात्रतेज की सीख देते हैं ।’
* सनातन के ग्रंथों का महत्त्व !
1. ‘श्रीमद्भगवद्गीता, महाभारत इत्यादि धर्मग्रंथ ईश्वरी वाणी द्वारा साकार हुए है; इसलिए उनमें चैतन्य है, उसी प्रकार सनातन के ग्रंथ भी ईश्वरी संकल्प द्वारा साकार हुए हैं । वेदों के समान महतीवाले यह ग्रंथ स्वयंभू चैतन्य के स्रोत हैं । ग्रंथों का अध्ययन करनेवालों ने उनमें बताए अनुसार कृति की, तो वे साधक और शिष्य स्तर से आगे बढकर भविष्य में संत भी हो सकते हैं ।
2. इन ग्रंथों के कारण घर में सात्त्विक स्पंदन निर्माण होते है तथा वास्तुशुद्धि होती है ।
3. इन ग्रंथों के अध्ययन से अंतर्मन में साधना का संस्कार होता है । इन ग्रंथों का अध्ययन कर उन्हें कृति में लाना, यह साधना ही है । ऐसा करने से साधकों का उद्धार होगा ।
4. विद्यालय में ‘ग्रंथ ही गुरु है’, ऐसा सिखाते थे । तब इसका अर्थ समझना कठिन होता है । सनातन के ग्रंथ पढने पर ज्ञान प्राप्त होता है और ‘ग्रंथ ही गुरु है’, इसका प्रकर्षता से बोध होता है ।
5. सनातन के ग्रंथ ज्ञान के भंडार है, ज्ञान के सागर है; इसीलिए हमारे गुरु परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ज्ञानगुरु है । प.पू. गुरुदेवजी ने ही सिखाया है कि ‘ज्ञान के अनुसार कृति एवं आचरण करने पर हमें मोक्षप्राप्ति होगी ।’ अर्थात वही हम साधकों को मोक्ष तक ले जा रहे हैं । वे ही मोक्षगुरु हैं ।’
‘ज्ञानशक्ति प्रसार अभियान’ में सक्रिय सहभाग लेकर ईशकृपा संपादित करें !
पूरे देश में ‘ज्ञानशक्ति प्रसार अभियान’ के माध्यम से सनातन के ग्रंथ अधिकाधिक जिज्ञासुआें तक पहुंचाने के लिए साधक प्रयासरत है । धर्मप्रसार के कार्य में सहभागी होना अर्थात ईश्वरी कृपा संपादित करना ! इसीलिए इस अभियान में आप भी यथाशक्ति सहभागी हों ! इस हेतु स्वयं ग्रंथ खरीदने के साथ ही मित्र-परिवार और अन्य परिचितों को भी ग्रंथ खरीदने के साथ ही उसका प्रचार करने के लिए प्रेरित करें ! आप SanatanShop.com इस जालस्थल (वेबसाईट) के माध्यम से भी अभियान में सहभागी हो सकते हैं । साथ ही Sanatan Shop यह एप भी डाऊनलोड कर सकते हैं ।
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