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ओढ कर

ओढ कर

       ---:भारतका एक ब्राह्मण.
          संजय कुमार मिश्र"अणु"
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अपनी जरुरत भर,
तुम रखते हो वास्ता।
और फिर उलट कर-
बदल लेते हो रास्ता।।
      मैं शुरु से देख रहा हूँ,
      ये तेरा स्वार्थी चलन।
      बाहर से स्वागत और-
       अंदर-अंदर जलन।।
तुम बडी माहिर हो,
अपना काम निकाल में।
और रहते हो पीठ पीछे-
बस पगडी उछालने में।।
       एक दिन खुल हीं जायेगा,
       ये सब तेरा काला भेद।
       छुपाने से भला छुपा है-
       कभी किसीका मतभेद।।
सबको समझ आ रहा है,
तेरी मतलब वाली चाल।
तुम कब तक छुपे रहोगे-
ओढ कर बाघ का खाल।।
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वलिदाद,अरवल(बिहार)
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