आज बहुत दिनों बाद सूरज निकला है
राजेश लखेरा जबलपुर।
सूखेगी गरीब की कथरी,
दूर होगा दादाजी के सर से छाता,
पोतों की छतरी,
किरणों के ओज ने भरी हुंकार,
चमन का अंदाज बदला है,
आज बहुत दिनों बाद सूरज निकला है।
मजदूर का सूखेगा पसीना,
रोटी के दर्शन होगें तभी-ना,
गौशाला से धेनु कानन को होगी रवाना,
भिखारी का फिर से होगा फुटपाथ पर जीना,
छतों पर फिजा का मिजाज बदला है,
आज बहुत दिनों बाद मारतण्ड निकला है।
गांव मे बैठेगी सांझ चौपाल,
दिखेगी बच्चों की टोली की कदमताल,
डेंगु, चिकुनगुनिया का असर होगा बेअसर,
भीड़ कम होते देखेगी अस्पताल,
दादी जी का पैर धरा पर अब नहीं फिसला है,
आज बहुत दिनों बाद भास्कर निकला है।
पौधों की मुस्कुराहटें बढ़ गई
किसानों की बाहें खुशी से खिल गई,
जो काया दर्द से व्याकुल थे,
सूरज की किरण उन्हें अनायास मिल गई,
सरिताओं में पानी इन्द्रधनुष सा उजला है,
आज बहुत दिनों बाद सूरज निकला है।
लकड़ी कबसे गीली थी,
तबियत उसकी तबसे ढीली थी,
आंख फोड़ती, जूझती गरीबी चूल्हें में,
बदन ने धुंआ की शरण ले ली थी।
बेमौसम आज आ गई दीवाली,
सबके घर सजेगी दाल-बाटी भरी थाली,
पैरों मे बंध गई घुंघरू, साथ बज रहा तबला है,
आज बहुत दिनों बाद सूरज निकला है।
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