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तितलियाँ कहती हैं

तितलियाँ कहती हैं 

मौसम का अनुमान तितलियाँ कहती हैं
अन-मन है इंसान तितलियाँ कहती हैं 

कहीं हुई बरसात कहीं पे है सूखा 
कैसे जिए किसान तितलियाँ कहती हैं 

उपज तुम्हारी  कैसी भी हो  पर उनको
चाहिए सिर्फ लगान तितलियाँ कहती हैं 

हत्या भ्रष्टाचार  लूट और मंहगाई  
गुण्डों का सम्मान तितलियाँ कहती हैं 

तडीपार के हाथ सुरक्षा है तो फिर
कहां सुरक्षित जान तितलियाॅ कहती हैं 

बिन सोचे-समझे  चोरों को दी चाभी
कर दी साफ दुकान तितलियाँ कहती हैं 

खुशियों का वादा करके है छीन लिया
अधरों की मुस्कान तितलियाँ कहती हैं 

झूठ बोलने में  माहिर हैं  झूठों के
काट रहे हैं कान तितलियाँ कहती हैं 

क्या सोचा था क्या पाया है जय दिल के
लुट गए  सब अरमान तितलियाँ कहती हैं
                       *
~जयराम जय
'पर्णिका'बी-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास, कल्याणपुर,कानपुर-208017(उ.प्र.)

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