अबला नहीं सबला हूं मैं
अबला नहीं सबला हूं रणचंडी दुर्गा हूं मैं
खडग खप्पर धारणी हूं रक्तबीज संचारिणी हूं
शक्ति का ही रूप हूं प्रकृति रूप अनूप हूं मैं
अथाह प्रेम का सागर हूं शक्ति समेटे भारी हूं
करती धूप में मजदूरी मैं भारत की सबला नारी हूं
स्वाभिमान भरा रग में मेहनत कर खाना सीखा
परिवार पोषण हेतु खून पसीना बहाना सीखा
अबला नहीं सबला हूं रचती नित नए कीर्तिमान
अंतरिक्ष छू लहराया परचम नहीं किया अभिमान
सेवा सुरक्षा शिक्षा में सृजन में हाथ रहा मेरा
कमान देश की रखने में पल पल साथ रहा मेरा
सृजनशीलता राष्ट्रधारा में हरदम हाथ रहा मेरा
धीरज धरा की भांति है हर दुख दर्द सह लेती हूं
निवाला औरों को खिलाकर भूखी भी रह लेती हूं
नारी उत्पीड़न की सीमा हद से पार हो जाती है
क्रोधाग्नि ज्वाला नैनों से रण चंडी बन जाती है
लक्ष्मी रूप में जन्म ले गृह लक्ष्मी बन जाती हैं
पूरे परिवार का पोषण कर अन्नपूर्णा कहलाती है
सदा मां का दर्जा मिला वात्सल्य उमड़ता भावों में
संघर्षों में रही सदा रह लेती सदा अभावों में
रमाकांत सोनी नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
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