धृतराष्ट्र अभी जिन्दा है
जगदीशपुर में गणेश सिंह के तीन बेटे नागवंत सिंह,दयावंत सिंह एवं बलवंत सिंह सपरिवार रहते थे। गणेश सिंह की अपने हीं गाँव में किराना की दुकान थी।सभी हॅसी-खुशी से हिल मिलकर रहा करते थे।
बड़े बेटे नागवंत सिंह हाईकोर्ट में प्राइवेट क्लर्क,मंझले बेटे दयावंत राँची में प्राइवेट कंपनी में काम कर रहे थे जबकि छोटे भाई बलवंत सिंह रामनगर में सरकारी क्लर्क थे।
राँची से गाँव लौटने के क्रम में दयावंत सिंह की एक बस दुर्घटना में अस्पताल में मृत्यु हो गयी,जिससे दयावंत सिंह के परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। इलाज के दौरान अस्पताल में बलवंत ने अपने मंझले भाई को यह वादा किया कि मैं आपके बेटे को अपने बेटे समान समझूँगा और इसका पुरा ख्याल रखूँगा।
बस दुर्घटना में हुयी मृत्यु के कारण बस मालिक मुन्ना सिंह ने दयावंत के बड़े भाई नागवंत सिंह को मुआवजे के रूप में चार लाख रूपये दिये जिसे नागवंत सिंह ने हड़प लिया और अपनी पत्नी इंदु देवी के नाम से अपने गाँव में अपने घर के आसपास चार कठ्ठे जमीन खरीदी और शेष बचे पैसे से ऐश-मौज किये।
इधर बलवंत सिंह अपने भाई दयावंत के इकलौटे बेटे अजय को पढ़ाने-लिखाने के लिये अपने साथ रामनगर ले गये। अजय रूप,गुण एवं पढ़ाई में नागवंत सिंह के बड़े बेटे एवं अपने चचेरे भाई मंटू सिंह से अव्वल था। मंटू अपने चचेरे भाई अजय से काफी जलता था।वह अजय को सदैव नीचा दिखाने का प्रयास करता था।मंटू अपनी माँ-बाप का बड़ा बेटा होने के कारण बहुत दुलारा व बिगरैल था।वह बड़े हीं लाड-प्यार में पला था।
अजय अपनी छोटी चाची को अपनी माँ से भी ज्यादा मानता था,उनकी एक भी बात नहीं टालता था।वह अपने छोटे चाचा बलवंत को देवता समान समझता था और उनकी काफी इज्जत करता था ।
मंटू अपनी माँ के साथ मिलकर अक्सर अजय की शिकायत अपने पापा से करता था जिससे वे अपने भतीजे अजय को घर से निकाल सकें ।मंटू के कहने पर बलवंत ने अजय के हिस्से की जमीन अपनी पत्नी सोनिया देवी के नाम पर लिखवा ली। मंटू ने अपनी माँ से मिलकर पैसे के बलपर जो चाहा वो कर लिया चाहे वकालत की डिग्री हो,
एम ए की डिग्री या चाहे पत्नी के लिए बी.एड की डिग्री।
बलवंत अजय को हमेशा समझाते रहे कि बेटा जीवन में ईमानदारी एवं धैर्य रखना चाहिए।कभी कोई गलत काम नहीं समझना चाहिये। सबको अपना समझना चाहिये। अजय ने अपने चाचा से कहा कि हमें या बी.एड में नाम लिखवा दीजिए या एल.एल.बी करवा दीजिए,लेकिन बलवंत ने अपने भतीजे बलवंत की एक भी बात नहीं मानी।
बलवंत ने पुत्र मोह में अपने भतीजे को यह कहकर अपने घर से निकाल दिया कि तुम अब कमाने लायक हो गये हो,इसलिए मेरे घर से निकल जाओ।अजय ने जब अपने चाचा बलवंत से अपने घर एवं खेती के हिस्से की जमीन की मांग कि तो बलवंत ने कहा कि हमसे तुम हिस्सा मांगते हो। तुम्हें हमसे हिस्सा मांगने की जुर्रत कैसे हुई।हमने तम्हें इसलिये पढाया-लिखाया कि तुम हमसे हिस्सा मांग सको।जाओ भागो यहाँ से।
बलवंत की यह बात सुनकर अजय ने बलवंत से कहा कि चाचा जी मैंने कभी किस्से-कहानी के माध्यम से धृतराष्ट्र एवं दुर्योधन के किस्से सुने थे, लेकिन हमें यह मालूम नहीं था कि धृतराष्ट्र अभी जिन्दा है। आपको देखकर एक और धृतराष्ट्र के साक्षात दर्शन हो गये।
अपने भतीजे अजय की बात सुनकर बलवंत के चेहरे के रंग उड़ चुके थे,मानों काटो तो खून नहीं।
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अरविन्द अकेला
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