शक्ति स्थल पटनदेवी पटना
सत्येन्द्र कुमार पाठक
राजा पत्रक की आराध्य देवी पटना स्थित महराजगंज की भूमि पर माता पाटन के नाम पर पटन नगर की स्थापना की कालांतर पाटन को पटना के नाम से ख्याति प्राप्त हुई । पाटन के राजा पत्रक की भर्या पाटली द्वारा जादू से पटली नगर का निर्माण किया। रानी पाटली द्वारा पाटलिग्राम की स्थापना की थी । बादमें पाटली ग्राम को पाटलिपुत्र कहा गया । पाटलिपुत्र में मगध साम्राज्य का राजा अशोक का पुत्र महेंद्र के नाम पर गंगा के किनारे महेंद्रू पाटन पतन ( बंदरगाह ) था । कालांतर में गंगा के किनारा को महेन्द्रू घाट के नाम से ख्याति है ।
पुरातात्विक अनुसंधानो के अनुसार पटना का इतिहास 490 ई. पू . मगध साम्राज्य का राजा हर्यक वंशीय आजातशत्रु के पुत्र उदयन ने मगध की राजधानी राजगृह से बदलकर पाटलिपुत्र में स्थापित की थी ।उदयन द्वारा गंगा के किनारे दुर्ग स्थापित किया गया था । बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध अन्तिम दिनों में पाटलिपुत्र से गुजरे थे। मगध साम्राज्य का राजा चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल की खाड़ी से अफ़ग़ानिस्तान तक फैल गया था। पाटलिपुत्र लकड़ियों से निर्मित भवन को सम्राट अशोक ने नगर को शिलाओं की संरचना में तब्दील किया। चीन के फाहियान ने सन् 399-414 तक भारत यात्रा-वृतांत में पाटलिपुत्र के शैल संरचनाओं का जीवन्त वर्णन किया है। यूनानी इतिहासकार मेगास्थनीज़, चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में पाटलिपुत्र नगर का प्रथम लिखित विवरण दिया। ज्ञान की खोज में चीनी यात्री यहां आए और उन्होने भी यहां के बारे में, अपने यात्रा-वृतांतों उल्लेख किया है । गुप्त वंश के शासनकाल को प्राचीन भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है। 12 वीं सदी में बख़्तियार खिलजी ने बिहार पर अपना अधिपत्य जमा लिया और कई आध्यात्मिक प्रतिष्ठानों को ध्वस्त कर डाला। पटना देश का सांस्कृतिक और राजनैतिक केन्द्र नहीं रहा।मुगलकाल में दिल्ली के सत्ताधारियों ने यहां अपना नियंत्रण बनाए रखा। इस काल में सबसे उत्कृष्ठ समय तब आया जब शेरसाह सूरी ने नगर को पुनर्जीवित करने की कोशिश की। उसने गंगा के तीर पर एक किला बनाने की सोची। उसका बनाया कोई दुर्ग तो अभी नहीं है, पर अफ़ग़ान शैली में बना एक मस्जिद अभी भी है।मुगल बादशाह अकबर 1574 में अफ़गान सरगना दाउद ख़ान को कुचलने पटना आया। अकबर के राज्य सचिव एवं आइने अकबरी के लेखक अबुल फ़जल ने इस जगह को कागज, पत्थर तथा शीशे का सम्पन्न औद्योगिक केन्द्र के रूप में वर्णित किया है। पटना राइस के नाम से यूरोप में प्रसिद्ध चावल के विभिन्न नस्लों की गुणवत्ता का उल्लेख भी इन विवरणों में मिलता है । मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपने पोते मुहम्मद अज़ीम के अनुरोध पर 1704 में, शहर का नाम अजीमाबाद कर दिया। अज़ीम उस समय पटना का सूबेदार था। मुगल साम्राज्य के पतन के साथ ही पटना बंगाल के नबाबों के शासनाधीन हो गया जिन्होंने इस क्षेत्र पर भारी कर लगाया पर इसे वाणिज्यिक केन्द्र बने रहने की छूट दी। १७वीं शताब्दी में पटना अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र बन गया। अंग्रेज़ों ने 1620 में यहां रेशम तथा कैलिको के व्यापार के लिये यहां फैक्ट्री खोली। जल्द ही यह सॉल्ट पीटर (पोटेशियम नाइट्रेट) के व्यापार का केन्द्र बन गया जिसके कारण फ्रेंच और डच लोग से प्रतिस्पर्धा तेज हुई। बक्सर के निर्णायक युद्ध के बाद नगर इस्ट इंडिया कंपनी के अधीन चला गया और वाणिज्य का केन्द्र बना रहा। 1912, में बंगाल के विभाजन के बाद, पटना उड़ीसा तथा बिहार की राजधानी बना। पटना शहर का ऐतिहासिक महत्व है। पटना संसार के गिने-चुने उन विशेष प्राचीन नगरों में से एक है जो अति प्राचीन काल से आज तक आबाद है। ईसा पूर्व मेगास्थनीज(350 ईपू-290 ईपू) ने अपने भारत भ्रमण के पश्चात लिखी अपनी पुस्तक इंडिका में इस नगर का उल्लेख किया है। पलिबोथ्रा (पाटलिपुत्र) गंगा और अरेन्नोवास (सोनभद्र-हिरण्यवाह) , पुनपुन नदी के संगम पर बसा था। प्राचीन पटना पलिबोथा 9 मील (14.5 कि॰मी॰) लम्बा तथा 1.75 मील (2.8 कि॰मी॰) चौड़ा था। पटना 15 कि॰मी॰ लम्बा और 7 कि॰मी॰ चौड़ा है। सिक्खों के 10वें तथा अंतिम गुरु गुरू गोविन्द सिंह का जन्म पटना में हुआ था। प्रति वर्ष देश-विदेश से लाखों सिक्ख श्रद्धालु पटना में हरमन्दिर साहब के दर्शन करने आते हैं तथा मत्था टेकते हैं। पटना एवं इसके आसपास के प्राचीन भग्नावशेष/खंडहर नगर के ऐतिहासिक गौरव के मौन गवाह हैं तथा नगर की प्राचीन गरिमा को प्रदर्शित करते हैं। दिवारों से घीरा पटना नगर का पुराना क्षेत्र, पटना सिटी जाना जाता है। । पटना नाम पटन देवी से प्रचलित हुआ है। एक अन्य मत के अनुसार यह नाम संस्कृत के पत्तन से आया है जिसका अर्थ बन्दरगाह होता है। मौर्यकाल के यूनानी इतिहासकार मेगस्थनीज ने इस शहर को पालिबोथरा तथा चीनीयात्री फाहियान ने पालिनफू के नाम से संबोधित किया है। पटना को , पाटन , पत्रक , पाटली , पाटलिग्राम, पालिवोथरा , पालिवोथा , पाटलिपुत्र, पालिनफू , पुष्पपुर, कुसुमपुर, अजीमाबाद , पैठना , और पटना कहा गया है । शेरशाह ने पैठना' रखा था । शेर शाह के मृत्यु के पश्चात् अंतिम हिन्दु सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य ने पटना कर दिया। प्राचीन पटना पाटलिग्राम सोन और गंगा नदी के संगम पर स्थित था। सोन नदी दो हजार वर्ष पूर्व अगमकुँआ से आगे गंगा में मिलती थी। पाटलिग्राम में गुलाब (पाटली का फूल) काफी मात्रा में उपजाया जाता था। गुलाब के फूल से तरह-तरह के इत्र, दवा आदि बनाकर उनका व्यापार किया जाता था । राजा पत्रक को पटना का जनक कहा जाता है। राजा पत्रक की पत्नी पाटली द्वारा माता पाटन की उपासना की गई |
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