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वह दौर कुछ और था जब चिट्ठी लिखते थे

वह दौर कुछ और था जब चिट्ठी लिखते थे

वह दौर कुछ और था जब चिट्ठी लिखते थे,
चिट्ठी में अरमान सारे जहान के लिखते थे।
मां की चिट्ठी में किस्सा होता दोनों घर का,
प्रेयसी की चिट्ठी में इश्क इशारों में लिखते थे।

लिफाफा देखकर मजमून भांप लेते थे,
प्रेयसी की चिट्ठी खुश्बू से जांच लेते थे।
कुछ भी न लिखा होता अक्सर चिट्ठी में,
उसी में प्यार का पैगाम तलाश लेते थे।

पढ लेते थे वह सब जो सोचा होगा उसने,
गढ़ लेते थे वह सब जो मन में होता अपने।
नजरें बिछी रहती डाकिये के इन्तजार में,
बैचेनी के हालात में टहलते देखा था सबने।

चला गया वह दौर पुराना चिट्ठी का,
छिप कर मिलना नैन मटक्का चिट्ठी का।
था इजहारे इश्क पुराना जिस खत में,
संरक्षित इतिहास पुराना उस चिट्ठी का।


अ कीर्ति वर्द्धन
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