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शक्ति स्थल छिन्नमस्तिका मंदिर रजरप्पा

शक्ति स्थल  छिन्नमस्तिका मंदिर रजरप्पा 

सत्येन्द्र कुमार पाठक 
 

छिन्नमस्तिका मंदिर वर्णन 'छिन्नमस्तिका मंदिर' झारखंड के रामगढ़ जिले का छिन्नमस्तिका प्रसिद्ध धार्मिक स्थल , शक्तिपीठ एवं पर्यटन स्थल है । है। भैरवी एवं दामोदर नदी के संगम के किनारे स्थित रजरप्पा की माता  छिन्नमस्तिका की स्थापना  छह हज़ार वर्ष पूर्व हुई थी । देवी-देवता हज़ारों साल पहले राक्षसों एवं दैत्यों से मानव एवं देवता आतंकित थे। तब मानव माँ शक्ति को याद करने लगे। तब पार्वती (शक्ति) का 'छिन्नमस्तिका' के रूप में अवतरण हुआ। भौगोलिक स्थिति रांची से क़रीब 80 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित  रजरप्पा में आदिवासियों एवं स्थानीय जनजातियों में संथाली देवी छिन्नमस्तिका हैं। दुर्गा पूजा के दिन सबसे पहले आदिवासियों द्वारा लाये गए बकरे की बलि दी जाती है। छिन्नमस्तिका मंदिर झारखंड की राजधानी रांची से क़रीब 80 किलोमीटर की दूरी पर रजरप्पा में स्थित है। भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता छिन्नमस्तिका के दिव्य स्वरूप का दर्शन होता है। मंदिर में आसपास प्राचीन ईंट, पौराणिक मूर्ति एवं यज्ञ कुंड एवं पौराणिक साक्ष्य थे, जो नष्ट हो गये थे या भूमिगत हो गये। छह हज़ार वर्ष पहले मंदिर में माँ छिन्नमस्तिका की मूर्ति है, वह पूर्व काल में स्वतः अनूदित हुई थी। गोलाकार गुम्बद की शिल्प कला असम के 'कामाख्या मंदिर' के शिल्प से मिलती है। मंदिर में सिर्फ एक द्वार है । झारखण्ड के पर्यटन स्थल  में देवघर त्रिकुट · नंदन पहाड़ · नौलखा मंदिर · बैजू · वासुकीनाथ · सत्संग आश्रम · वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग बोकारो जवाहरलाल नेहरू बायोलॉजिकल पार्क · पारसनाथ पहाड़ी · इस्पात पुस्तकालय · स्टील प्लांट धनबाद चारक खुर्द · तोपचांची झील · पंचेत · पानर्रा · मैथन बाँध गिरिडीह उसरी झरना · खण्डोली · मधुबन जमशेदपुर कीनन स्‍टेडियम · जयंती सरोवर · जुबली पार्क · डिमना झील · दलमा वन्‍य अभ्‍यारण्‍य दुमका भुमका · मसनजोर बाँध · मलूटी रांची गोंडा हिल एण्ड रॉक गार्डन · मछलीघर-मूटा मगरमच्छ प्रजनन केन्द्र · मैकक्लुस्किगंज · हुंडरू जलप्रपात · सदनी जलप्रपात · हिरणी जलप्रपात · जगन्नाथपुर मन्दिर · राँची झील · नक्षत्र वन · दसम जलप्रपात · जोन्हा जलप्रपात · टैगोर हिल · राजकीय संग्रहालय राँची हज़ारीबाग़ कैनेरी पहाड़ी · राजरप्पा जलप्रपात · हज़ारीबाग़ अभयारण्य · हज़ारीबाग़ झील रामगढ़ राजरप्पा · छिन्नमस्तिका मंदिर चतरा भदुली · कोल्हुआ पहाड़ी · कुण्ड गुफ़ा · तमासिन · द्वारी झरना · कौलेश्वरी देवी मन्दिर लातेहार लोध जलप्रपात है । 
छिन्नमस्ता या 'छिन्नमस्तिका' या 'प्रचण्ड चण्डिका' दस महाविद्यायों में से एक हैं। छिन्नमस्ता देवी के हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है तथा दूसरे हाथ में कटार है। छिन्नमस्ता का संबंध महाविद्या, देवी , निवासस्थान श्मशान अस्त्र खप्पर , जीवनसाथी भगवान शिव है । सनातन धर्म के शाक्त सम्प्रदाय के धार ग्रंथों के अनुसार  छिन्नमस्ता महाविद्या सकल चिंताओं का अंत कर मन में चिन्तित हर कामना को पूरा करती हैं।आद्या शक्ति अपने स्वरूप का वर्णन करते हुए कहती हैं कि मैं छिन्न शीश अवश्य हूं लेकिन अन्न के आगमन के रूप सिर के सन्धान (सिर के लगे रहने) से यज्ञ के रूप में प्रतिष्ठित हूं। जब सिर संधान रूप अन्न का आगमन बंद हो जाएगा तब उस समय मैं छिन्नमस्ता ही रह जाती हूं। इस महाविद्या का संबंध महाप्रलय से है। महाप्रलय का ज्ञान कराने वाली यह महाविद्या भगवती त्रिपुरसुंदरी का ही रौद्र रूप है। सुप्रसिद्ध पौराणिक हयग्रीवोपाख्यान के अनुसार  गणपति वाहन मूषक की कृपा से धनुष प्रत्यंचा भंग हो जाने के कारण सोते हुए विष्णु के सिर के कट जाने का निरूपण है) इसी छिन्नमस्ता से संबद्ध है।शिव शक्ति के विपरीत रति आलिंगन पर आप स्थित हैं। आप एक हाथ में खड्ग और दूसरे हाथ में मस्तक धारण किए हुए अपने कटे हुए स्कन्ध से रक्त की जो धाराएं निकलती हैं, उनमें से एक को स्वयं पीती हैं और अन्य दो धाराओं से अपनी जया और विजया नाम की दो सहेलियों की भूख को तृप्त कर रही हैं। इडा, पिंगला और सुषुम्ना इन तीन नाडियों का संधान कर योग मार्ग में सिद्धि को प्रशस्त करती हैं। विद्यात्रयी में यह दूसरी विद्या गिनी जाती हैं। देवी के गले में हड्डियों की माला तथा कन्धे पर यज्ञोपवीत है। इसलिए शांत भाव से इनकी उपासना करने पर यह अपने शांत स्वरूप को प्रकट करती हैं। उग्र रूप में उपासना करने पर यह उग्र रूप में दर्शन देती हैं जिससे साधक के उच्चाटन होने का भय रहता है। दिशाएं  इनके वस्त्र हैं। इनकी नाभि में योनि चक्र है। छिन्नमस्ता की साधना दीपावली से शुरू करनी चाहिए। इस मंत्र के चार लाख जप करने पर देवी सिद्ध होकर कृपा करती हैं। जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन और मार्जन का दशांश ब्राह्मण और कन्या भोजन करना चाहिए। झारखण्ड राज्य का क्षेत्रों के ऐतिहासिक स्थलों में देवघर का   त्रिकुट ,  नंदन पहाड़  , नौलखा मंदिर , बैजू  , वासुकीनाथ ,  सत्संग आश्रम , वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग , बोकारो जवाहरलाल नेहरू बायोलॉजिकल पार्क ,  पारसनाथ पहाड़ी ,  इस्पात पुस्तकालय , स्टील प्लांट धनबाद चारक खुर्द , तोपचांची झील, पंचेत , पानर्रा ,  मैथन बाँध गिरिडीह उसरी झरना ,  खण्डोली , मधुबन जमशेदपुर कीनन स्‍टेडियम , जयंती सरोवर ,  जुबली पार्क ,  डिमना झील , दलमा वन्‍य अभ्‍यारण्‍य दुमका भुमका · मसनजोर बाँध · मलूटी रांची गोंडा हिल एण्ड रॉक गार्डन · मछलीघर-मूटा मगरमच्छ प्रजनन केन्द्र · मैकक्लुस्किगंज , हुंडरू जलप्रपात , सदनी जलप्रपात , हिरणी जलप्रपात , जगन्नाथपुर मन्दिर  , राँची झील ,  नक्षत्र वन ,  दसम जलप्रपात ,  जोन्हा जलप्रपात ,  टैगोर हिल ,  राजकीय संग्रहालय राँची , हज़ारीबाग़ कैनेरी पहाड़ी ,  राजरप्पा जलप्रपात , हज़ारीबाग़ अभयारण्य , हज़ारीबाग़ झील ,  रामगढ़ राजरप्पा ,  छिन्नमस्तिका मंदिर , चतरा भदुली , कोल्हुआ पहाड़ी ,  काल लगभग छह हज़ार वर्ष पूर्व। देवी-देवता हज़ारों साल पहले राक्षसों एवं दैत्यों से मानव एवं देवता आतंकित थे। तब मानव माँ शक्ति को याद करने लगे। तब पार्वती (शक्ति) का 'छिन्नमस्तिका' के रूप में अवतरण हुआ। भौगोलिक स्थिति रांची से क़रीब 80 किलोमीटर की दूरी पर रजरप्पा में। संबंधित लेख शक्तिपीठ अन्य जानकारी झारखंड में आदिवासियों एवं स्थानीय जनजातियों में संथाली देवी छिन्नमस्तिका हैं। दुर्गा पूजा के दिन सबसे पहले आदिवासियों द्वारा लाये गए बकरे की बलि दी जाती है। छिन्नमस्तिका मंदिर झारखंड की राजधानी रांची से क़रीब 80 किलोमीटर की दूरी पर रजरप्पा में स्थित है। यह भारत के सर्वाधिक प्राचीन मन्दिरों में से एक है। भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता छिन्नमस्तिका के दिव्य स्वरूप का दर्शन होता है। असम स्थित माँ कामाख्या मंदिर के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ है। यहाँ विवाह आदि भी सम्पन्न कराये जाते हैं। निर्माण इस मंदिर का निर्माण लगभग छह हज़ार वर्ष पहले हुआ था। मंदिर में आसपास प्राचीन ईंट, पौराणिक मूर्ति एवं यज्ञ कुंड एवं पौराणिक साक्ष्य थे, जो नष्ट हो गये थे या भूमिगत हो गये। छह हज़ार वर्ष पहले मंदिर में माँ छिन्नमस्तिका की जो मूर्ति है, वह पूर्व काल में स्वतः अनूदित हुई थी। इस मंदिर का निर्माण वास्तुकला के हिसाब से किया गया है। इसके गोलाकार गुम्बद की शिल्प कला असम के 'कामाख्या मंदिर' के शिल्प से मिलती है। मंदिर में सिर्फ एक द्वार है।  झारखंड के कुण्ड गुफ़ा , तमासिन , द्वारी झरना , कौलेश्वरी देवी मन्दिर लातेहार , लोध जलप्रपात  पहाड़ी मंदिर रांची , जगन्नाथ मंदिर जगन्नाथपुर रांची ,  डिमना डैम जमशेदपुर , अंजना का हनुमानजी का जन्म स्थान गुमला  , चतरा जिले के इटखोरी में माता काली रांची में काली मंदिर , माता बांग्ला ,है । माता छिन्नमस्तिका की विशेष उपासना शरद , वासंती , गुप्त नवरात्र में महत्वपूर्ण मानी गयी है । माता छिन्नमस्तिका का उपासना , दर्शन करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती है ।
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