जालियां वाला बाग़ आंदोलन कांग्रेस का आंदोलन था ही नहीं।
अभी हाल में ही जालियां वाला बाग़ काफी चर्चा में है। कांग्रेस के अघोषित अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में कहा कि कांग्रेस देश की सरकार को जालियां वाला बाग़ के शहीदों को अपमानित नहीं करने देगी। अभी तक जो भी जानकारी पुस्तकों में भारतीयों को उपलब्ध कराई गई है उसके अनुसार जालियां वाला बाग़ की घटना कांग्रेस की अगुआई में लड़े गए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक पड़ाव था। वस्तुतः यह एक असत्य है जो जान बूझकर फैलाया गया था। वस्तुतः जालियां वाला बाग़ आंदोलन कांग्रेस का आंदोलन था ही नहीं। इस आंदोलन की शुरुआत होम रूल लीग की बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट द्वारा घोषणा के बाद हुई थी। पंजाब में ये विरोध प्रदर्शन प्लेटफार्म टिकट लगाने की योजना के बाद शुरू हुआ था। ऐसा ही एक विरोध प्रदर्शन दिल्ली में स्वामी श्रद्धानंद ने 9 अप्रैल 1919 रामनवमी के दिन अंग्रेज सरकार के विरुद्ध किया था। अंतिम प्रदर्शन 13 अप्रैल को बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग में हुआ था जहां इस कत्लेआम को अंजाम दिया गया। जालियां वाला बाग़ में निहत्थे लोगों का यह कत्ले आम 13 अप्रैल 1919 को हुआ था। इसकी खबर भी तब के टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार ने 14 अप्रैल के अपने अखबार में कुछ यूं छापा था -पंजाब के अमृतसर से प्राप्त समाचार के अनुसार सरकारी अमले पर भीड़ के द्वारा हिंसक हमला किया गया। विद्रोहियों को सेना ने खदेड़ दिया इस क्रम में विद्रोहियों के करीब दो सौ लोग हताहत हुए हैं। यूरोप के अखबारो में इसकी खबर 13 दिसंबर को मेनचेस्टर गार्डियन में छपी। आब्जर्वर अखबार ने इसे 14 दिसंबर को छापा। न्यू यॉर्क टाइम्स और हिंदुस्तान टाइम्स ने तो छापने की जरूरत ही नहीं समझी। यहां तक की गाँधीजी के खुद के अखबार नवजीवन ने इसे 24 दिसंबर को छापा। नवजीवन ने जनरल डायर का नाम भी पहली बार 14 दिसंबर 1919 को छापा था। इसके पहले गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर ने 31 मई 1919 को अपनी सर की उपाधि को अंग्रेजों के अत्याचारों और पंजाब के लोगों को अत्यधिक सज़ा के विरोध में छोड़ दिया था हालांकि उन्होंने भी जलियांवाला बाग कत्लेआम का जिक्र नहीं किया था। ऐसा भी नहीं है कि ब्रितानी सरकार इस घटना के बाद लज्जित थी या उन्हें इस घटना पर कोई अफसोस था। ब्रिटिश सरकार ने दो भारतीयों चौधरी बग्गा मल और महाशय रतन चंद को इस घटना के लिए जिम्मेवार मानते हुए मृत्यु दंड दिया था। दोनों ने मोती लाल नेहरुजो उस समय देश के नामी अकील और अंग्रेजों के करीबी थे से प्राण रक्षा की गुहार लगाई। मोतीलाल नेहरू ने तत्कालीन वाइसराय चेलमस्फोर्ड से क्षमादान की अपील भी की पर कोई परिणाम न निकला। इन दोनों के लिए तब महामना मैदान मोहन मालवीय ने ,जो उस समय कांग्रेस के कद्दावर नेता थे और हिन्दू महासभा के सबसे बड़े नेता थे, दखल दिया और दोनों की मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदलवाने में सफल रहे। दोनों को सज़ा काटने के बाद 1936 में जेल से रिहा किया गया। हालांकि सनद रहे कि मोतीलाल नेहरू ने जलियांवाला बाग नामक एक ट्रस्ट की स्थापना जरूर की और स्वयं इसके प्रमुख बने। लोगों ने इस ट्रस्ट को जम कर दान दिया। इस पैसे से इस ट्रस्ट ने जलियांवाला बाग की 6.27 एकड़ जमीन 37 भिन्न भिन्न जमीन मालिकों से सितंबर 9320 में रु 50 हज़ार में खरीद ली। 1951 तक ये ट्रस्ट ही जलियांवाला बाग मेमोरियल की देखभाल करता रहा जब इसके रख रखाव के लिए कानून बना। नेहरू ने कांग्रेस के अध्यक्ष के साथ मौलाना अबुल कलाम आजाद और सैफुद्दीन किचलू को इस ट्रस्ट के आजीवन सदस्य बन दिया। कलाम 1958 में और किचलू 1963 में काल कलवित हुए। नेहरू स्वयं 1964 में निष्प्राण हो गए पर इन लोगोंके बदले किसी को भी इस ट्रस्ट में नियुक्त नहीं किया गया। इस ट्रस्ट में कांग्रेस प्रमुख की भूमिका को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया था। कागजातों से पता लगता है कि इंदिरा गांधी इस ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में इसके घोषणाओं पर हस्ताक्षर करती रहीं जबकि उस समय वे कांग्रेस की अध्यक्ष भी नहीं थीं। उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष बाबू जगजीवन राम थे जो कानून के अनुसार ट्रस्ट के पदेन अध्यक्ष थे। इस कानून की नियमावली को 2019 में लाये गए संसोधन के माध्यम से बदला गया और अब इसके अध्यक्ष पद पर कांग्रेस के अध्यक्ष का होना अमान्य कर दिया गया है। इसके बदले लोकसभा में विपक्ष के नेता को या अगर कोई नेता विपक्ष नामित न हो तो जो सबसे बडा विपक्षी दल है उसके नेता को सदस्य होने की अहर्ता दी गयी है। इसे पूरी तरह राजनीतिक ट्रस्ट बना दिया गया है। यही वो बदलाव है जो कांग्रेस के आक्रोश का कारण है। शनैः शनैः मगर मजबूती से भारतीयों पर हुए सभी छल कपट को यह सरकार दूर कर रही है। कांग्रेस के अध्यक्ष के सभी आय के स्रोतों को ये सरकार बंद कर रही है और संवैधानिक संस्थाओं को मजबूत कर रही है। ज्ञात हो कि वर्तमान में इस बाग के जीर्णोद्धार की काफी आवश्यकता थी। जिस कुएं में लोगों ने जान बचाने के लिए छलांग लगाई थी वो गुटके के रैपरों से भरा था। बाग की दीवार पर कुत्ते पेशाब करते थे। ये दीवार पूरी तरह जर्जर थी और गिरने की कगार पर थी। दृश्यावलोकन के नाम पर एक 20 इंच का टीवी था। निवर्तमान सरकार ने अब वहां जीर्णोद्धार के साथ साथ एक थिएटर भी बना दिया है ताकि पर्यटकों को जालियां वाला बाग की कहानी दृश्य और श्रव्य माध्यम से दिखाया जा सके। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह ने भी भारत सरकार के इस कदम की सराहना की है और राहुल गांधी के आरोपों को दरकिनार कर दिया है। - संकलनकर्ता मनोज मिश्रा
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