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भगवद्गीता किन पुस्तकों से पढ़ी जाए?

भगवद्गीता किन पुस्तकों से पढ़ी जाए?

संकलन अश्विनीकुमार तिवारी
एक बड़ा ही मजेदार सा शेखुलर प्रश्न कभी कभी भगवद्गीता के बारे में पूछा जाता है। बच्चे पूछें तो चलता है, मगर धूप में बाल पका चुके कई क्यूट किस्म के उम्रदराज लोग भी ये सवाल लिए आ जाते हैं। उनको जानना होता है कि भगवान श्री कृष्ण जब भगवद्गीता का ज्ञान दे ही सकते थे, तो महाभारत का युद्ध शुरू होने पर अर्जुन को देने की क्या जरुरत थी? उससे बहुत पहले ही कई बार दुर्योधन से मिले थे, उसे ही दे देते। वो ज्ञानी हो जाता तो युद्ध होता ही नहीं और लाखों लोगों की जान बच जाती!

इस क्यूटियापे से भरे प्रश्न का जवाब भी भगवद्गीता में मिल जाता है। तीसरे अध्याय के छत्तीसवें श्लोक पर स्वामी रामसुखदास जी की एक टिप्पणी इसका समाधान कर देती है। ऐसा नहीं था कि श्री कृष्ण पहले कभी दुर्योधन को समझाने नहीं गए थे। ऐसी ही एक चर्चा का जिक्र गर्ग संहिता के अश्वमेघ पर्व (50.36) में आता है। यहाँ दुर्योधन ने कहा है – 

जानामि धर्मं न च मे प्रवृत्तिर्जानाम्यधर्मं न च मे निवृत्तिः।
केनापि देवेन हृदि स्थितेन यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि।। (गर्गसंहिता अश्वमेध0 50। 36)

यानि मैं धर्मको जानता हूँ, पर उसमें मेरी प्रवृत्ति नहीं होती और अधर्मको भी जानता हूँ, पर उससे मेरी निवृत्ति नहीं होती। मेरे हृदयमें स्थित कोई देव है, जो मुझसे जैसा करवाता है, वैसा ही मैं करता हूँ। यहाँ दुर्योधन कुछ पूछ नहीं रहा। ये निश्चयातम्क वाक्य है। जब पूछ ही नहीं रहा, सीखने को तैयार ही नहीं तो कोई कुछ सिखाये कैसे? ये जेन के प्रसिद्ध ग्लास में पानी भरने वाली स्थिति है। अगर कोई ग्लास, कोई कप पहले से ही पानी से भरा हो तो आप उसमें पानी कैसे भर सकते हैं? पहले उस भरे हुए को खाली करना होगा, तभी उसे भरा जा सकता है। इसकी तुलना भगवद्गीता में अर्जुन से कीजिये।

अर्जुन उवाच

अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः।।3.36

अर्जुन पूछते हैं – वार्ष्णेय, मनुष्य जबरन बाध्य किये गए जैसा, इच्छा न होने पर भी किससे प्रेरित होकर पापपूर्ण आचरण करता है? ये बिलकुल वही बात है जो दुर्योधन ने कही थी। कोई है जो मुझसे करवाता है और मैं करता जाता हूँ। बस यहाँ अंतर ये है कि अर्जुन पूछ रहा है। वो जानना चाहता है, कैसे उससे बचा जाए कि पापपूर्ण आचरण न करना पड़े, बचने की कोशिश में है। और भगवान उसी की मदद करते हैं जो अपनी मदद स्वयं करना चाहता है। यहाँ ग्लास के खाली होने वाली स्थिति है इसलिए उसमें कुछ भरा जा सकता है।

बस इतना सा ही अंतर था जिसकी वजह से अर्जुन को भगवद्गीता की शिक्षा मिलती है और दुर्योधन को कुछ भी नहीं। बाकी ये जो एक श्लोक के बारे में बताया है, वो नर्सरी के स्तर का है और पीएचडी के लिए आपको भगवद्गीता स्वयं पढ़नी होगी, ये तो याद ही होगा।

भगवद्गीता किन पुस्तकों से पढ़ी जाए?
किताबें बड़ी और मोटी कैसे हो जाती हैं? इसे समझने के लिए एक आसान सा उदाहरण है “माण्डुक्य उपनिषद”। ये 108 उपनिषदों की सूची में छठा उपनिषद। आकार में ये इतना छोटा है कि इसमें बारह ही मन्त्र होते हैं। ये सभी हिन्दुओं के लिए विशिष्ट माने जाने वाले ॐ से सम्बंधित हैं। इनपर गौड़पादाचार्य ने कारिका लिखी। कारिका श्लोकों के रूप में भाष्य की तरह उपनिषद का विवरण होता है। उन्होंने 215 श्लोक लिखे तो बारह में ये दो सौ पन्द्रह जोड़कर ये मोटी होने लगी। गौड़पादाचार्य के शिष्य थे गोविन्द भगवत्पाद। ये आदिशंकराचार्य के गुरु थे। तो जब आदिशंकराचार्य ने अपने गुरु के गुरु द्वारा लिखित माण्डुक्य कारिका पर भाष्य लिखा तो ये और मोटी हो गयी।
आज जब हम इसे हिंदी या अंग्रेजी अनुवाद के रूप में पढ़ते हैं, तो ये करीब तीन सौ पन्नों की किताब हो जाती है। अब माण्डुक्य उपनिषद के बारह वाक्य, सिर्फ एक पन्ने के नहीं होते। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि कई ऐसे शब्द या भाव हैं, जिनसे अब हम परिचित नहीं। उपनिषदों या दर्शनशास्त्र की चर्चा रोज नहीं होती, इसलिए श्लोक के एक शब्द के लिए कई बार अनुवादक को पूरा वाक्य लिखना पड़ता है। उदाहरण के लिए माण्डुक्य उपनिषद में “तुरीय अवस्था” की बात की गयी होती है। अधिकांश लोगों के लिए “तुरीय” बिलकुल नया शब्द होगा।
ऐसा ही भगवद्गीता के साथ भी होता है। भगवद्गीता में सात सौ श्लोक होते हैं। थोड़े समय पहले तक गीता प्रेस से ये भी एक पन्ने में प्रिंट होकर मिलता था। वहीँ से तबीजी या गुटका संस्करण के रूप में ये अभी भी इंसान के अंगूठे जितने आकार में मिल जाता है। अगर हिंदी अनुवाद (टीका) भी इसमें जोड़ दें तो एक सिगरेट के डब्बे जितने बड़े आकार (और उससे काफी कम मूल्य पर) ये आसानी से उपलब्ध है। जब इसमें शंकरभाष्य जोड़ दिया जाता है तो इसका आकार बढ़ जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि भाष्य में सिर्फ सीधा श्लोकों का अनुवाद नहीं होगा। भाष्य लिखने वाले अपने (अद्वैत, विशिष्टाद्वैत, या द्वैत जैसे) मत का भाष्य के जरिये प्रतिपादन भी करते हैं।
आदिशंकराचार्य ने अद्वैत मत के आधार पर अपना भाष्य लिखा था। आज ये सबसे आसानी से हिंदी या अंग्रेजी में अनुवाद के रूप में उपलब्ध है। उनके बाद रामानुजाचार्य ने विशिष्टाद्वैत के आधार पर अपना भाष्य लिखा। ये भी आसानी से हिंदी और अंग्रेजी में (संक्षित रूपं ) में उपलब्ध हो जाते हैं। द्वैत पर माधवाचार्य का लिखा भाष्य बहुत आसानी से उपलब्ध नहीं है, लेकिन थोड़ा ढूँढने पर वो भी ऑनलाइन मिल सकता है। भाष्य एक मत का प्रतिपादन और दूसरे मतों का खंडन होता है। उदाहरण के तौर पर माधवाचार्य अद्वैत वालों को महायान बौद्ध दर्शन को हिन्दुओं पर थोपा जाना बताते थे। उनके हिसाब से भगवान विष्णु के सभी अवतारों का एक समान स्थान था, जबकि वैष्णवों में ही अलग-अलग पंथ वाले कोई श्रीराम को तो कोई श्री कृष्ण को श्रेष्ठ मानते दिखेंगे। अलग-अलग भारतीय दर्शनों पर अगर पढ़ना हो तो माधवाचार्य विद्यारण्य की लिखी सर्व दर्शन संग्रह देख सकते हैं।
हर व्यक्ति की रूचि, उसका झुकाव, अलग अलग सिद्धांतों की ओर होता है। किसी को अद्वैत सहज लग सकता है, लेकिन कई लोगों को अद्वैत उतना आसान नहीं लगे, ये भी हो सकता है। अगर अद्वैत के सिद्धांतों के हिसाब से चलना सजह लगता हो तो फिर आपके लिए विकल्प कई हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि आदिशंकराचार्य से लेकर स्वामी विवेकानंद तक कई बड़े भारतीय दार्शनिक अद्वैत के मतों का ही प्रतिपादन करते थे। इसलिए आपको आज जो भगवद्गीता पर लिखी पुस्तकें आसानी से मिलती हैं, उनमें से अधिकांश अद्वैत मत की ही हैं। यूट्यूब पर आसानी से अद्वैत मत के कई वीडियो भी मौजूद हैं। आप वहां से भी आसानी से इन्हें देख-सुन सकते हैं।
वापस किताबों की ओर चलें, तो सबसे पहले सरल अर्थ के लिए आपको भगवद्गीता पर लिखी कोई टीका पढ़नी चाहिए। गीता प्रेस की दुकानों में आसानी से टीका उपलब्ध हो जाएगी। टीका सहित भी भगवद्गीता पूरी पढ़ लेने में मुश्किल से तीन घंटे का समय लगेगा, इसलिए एक-दो बार पढ़ने का समय तो कोई भी निकाल सकता है। इससे एक स्तर ऊपर आने पर गीता प्रेस से ही “तत्वविवेचनी” नाम का भाष्य देख सकते हैं। ये बहुत पुराने दौर में नहीं लिखा गया, फिर भी इसकी हिन्दी थोड़ी सी मुश्किल लग सकती है। किसी किसी का हर शब्द का अर्थ और फिर श्लोक पर टिप्पणियाँ देखने का मन हो, ऐसा भी हो सकता है। इसके लिए गीता प्रेस से ही आने वाली “साधक संजीवनी” देख सकते हैं। ये दोनों किताबें आकार में बड़ी हैं, इसलिए इन्हें हमेशा साथ लिए घूमना तो संभव नहीं होगा, लेकिन घर पर आप आसानी से इन्हें पढ़ सकते हैं।
सीधे टीका या भाष्य के अलावा भी कई विद्वानों ने भगवद्गीता पर लेख लिखे हैं। बाल गंगाधर तिलक की “गीता रहस्य” में शुरूआती हिस्से के लेखों से भी भगवद्गीता के बारे में काफी कुछ पता चलता है। बाल गंगाधर तिलक की किताब अब शायद कॉपीराइट से मुक्त होगी, इसलिए कई अलग अलग प्रकाशनों से अलग अलग मूल्य पर उपलब्ध है। भगवद्गीता पर श्री औरोबिन्दो ने भी काफी लिखा है। उनकी पुस्तक भी हिंदी और अंग्रेजी दोनों में उपलब्ध है। श्री औरोबिंदों की पुस्तकें क्लिष्ट लग सकती हैं। अगर आपकी भगवद्गीता में बहुत रूचि ना हो तो संभावना है कि आप इन्हें आधे में ही छोड़ देंगे। उसकी तुलना में बाल गंगाधर तिलक की भाषा कहीं अधिक सरल है।
भगवद्गीता का अनुवाद एस. राधाकृष्णन ने भी किया है, और उसकी भाषा भी अपेक्षाकृत सरल है। जहाँ भी पुस्तकों की दुकानें उपलब्ध हों, वहाँ मेरी सलाह गीता प्रेस की किताबें लेकर, उनसे शुरुआत करने की रहती है। कोई दूसरी किताबें पढ़ना चाहें, तो वो भी पाठक की इच्छा पर है।
मिथलांचल में सुनाई जाने वाली कहानियों में से एक कहानी दो भाइयों की भी है | अब ये जो दोनों भाई थे वो दोनों के दोनों एक नंबर के काहिल, कामचोर, निकम्मे, आवारा किस्म के थे | थोड़े में समझ लीजिये कि बिलकुल मेरे टाइप रहे होंगे ! तो भाई जो बड़े वाला था उसे लगा कि पढ़ाई मुश्किल है | सबक याद करो, सवाल हल करो, ना पढ़ो तो उस ज़माने में मास्टर जी छड़ी भी रखते थे | जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो बड़े वाले ने पढ़ाई छोड़ दी | प्राथमिक शिक्षा के बाद वो पिताजी के साथ खेती में जुट गया |

छोटे को भी उसने सिखाया कि मुझे कुछ दिन देखने दे | अगर ये काम पढ़ने से आसान लगा तो तू भी आ जाना पढ़ाई छोड़ के खेतों में | अब किसानों का काम भी आसान तो होता नहीं ! सुबह सवेरे जागो, हल, मिट्टी, गोबर, मवेशी, सौ आफतें हैं | बड़े वाले को और मुश्किल हुई | आखिर उसने छोटे से सलाह की और तय किया कि सबसे आसान साधू हो जाना है ! सारा दिन मस्ती में गांजा फूंको, और खाने का इंतजाम तो हो ही जाएगा | तो उसने तय किया कि वो पहले भागेगा और पीछे से छोटे को भी बुला लेगा |

साधू होने के बारे में स्वामी सर्वप्रियानन्द बताते हैं कि शुरू में ही उनपर चालीस बच्चों का छात्रावास संभालने की जिम्मेदारी डाल दी गई थी | ऐसा होते ही स्वामी सर्वप्रियानन्द ने सोचा कि अगर वो संसारी ही रहते, सन्यासी ना होते तो क्या होता ? ज्यादा से ज्यादा दो बच्चे होते उनके या तीन, बहुत होता तो चार होते | यहाँ तो सर मुंडाते ही ओले पड़ गए, चालीस बच्चे ! तो बड़े वाले भाई के साथ भी ऐसा ही हुआ | आश्रम के सुबह उठने का समय, स्वाध्याय, सफाई, भिक्षाटन के नियम, नयी आफत खड़ी हुई |

उधर जो छोटा वाला था, उसने बड़े भाई को चिट्ठी लिखी | पूछा बड़े भाई, मास्साब की छड़ी खा खा के मेरे अंग विशेष सूज गए हैं अब तो ! अगर तुम आश्रम में स्थापित हो गए तो जल्दी बताओ, मैं भी निकल कर आता हूँ | चिट्ठी पाते ही बड़े वाले ने जवाब दिया | अरे छोटे यहाँ तो रोज़ सुबह चार बजे, स्कूल से भी ज्यादा मेहनत से श्लोक रटने पड़ते हैं | गांजा पीना तो छोड़ो, चिलम भी छूने को नहीं मिला है अब तक | हर सुबह खांखड़ (भिक्षापात्र) मांजना (साफ़ करना) पड़ता है सो अलग ! तू स्कूल में मन लगा कर पढ़ाई कर, मैं भी वापिस आ रहा हूँ |

सबसे आसान पढ़ना ही होता है |

अब पढ़ने जैसे आसान काम के बारे में सोचिये कि कितने लोग पढ़ते हैं ? अगर पढ़ने का ही पूछा जाए, तो हिन्दुओं के धर्मग्रन्थ मानी जाने वाली रामचरितमानस या भगवद्गीता ही पूरी कितनी लोगों ने पढ़ी होती है ? पूरी पहले शब्द से आखरी अक्षर तक आपने पढ़ी है क्या ? कई लोग एक जनवरी को नया साल शुरू होने पर कोई प्रण भी लेते हैं, वही रेसोल्युशन | कई बार ये सिगरेट छोड़ने, रोज जिम जाने जैसे मुश्किल काम का होता है | टूट भी जाता है | पढ़ने जैसे आसान काम का भी लिया जा सकता है |

किसी एक किताब को पूरा पूरा पढ़ डालने का रेसोल्युशन लिया जा सकता है | कोई भी एक धर्मग्रन्थ पूरा पढ़ डालना इतना नामुमकिन भी नहीं होगा | सबसे कम कीमत में हर जगह उपलब्ध गीता प्रेस की किताबें तो हैं ही | उसके अलावा अगर रामचरितमानस की सोच रहे हैं तो पंडित विजयानंद त्रिपाठी की लिखी हुई विजया टीका अच्छी है | इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के हिंदी के प्रोफेसर योगेन्द्र प्रताप सिंह ने रामचरितमानस पर काफी कुछ लिखा है | चाहें तो उन्हें देख सकते हैं | अलग अलग सोपानों पर भी उनकी किताब मिल जाती है |
बाकी अगर कथित और दस्तावेजी तौर पर पढ़े-लिखे होने के वाबजूद आपने एक भी रामायण, रामचरितमानस या गीता उपनिषद कुछ नहीं पढ़ा तो ‘भक्तों’ को अनपढ़-जाहिल कहते समय कोई बहुत गलत कह रहा होता है क्या ?
✍🏻आनन्द कुमार 

विभिन्न प्रकार की गीता - - - - 

गीता का अर्थ है भगवान् ने गाया हुआ गीत। .
भगवद गीता भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कही थी। यह 18 अध्याय , 700 श्लोकों से बनी है। 
- गीता को कई लोग गीत गोविन्दम या भागवत समझ बैठते है।
- गीता महाभारत के छटवे अध्याय भीष्म पर्व में है। 
गीत गोविन्दम 13 शताब्दी ने जयदेव द्वारा लिखित राधा कृष्ण पर काव्य है। भागवत पुराण विष्णु के अवतारों की कथा है। गीता इन दोनों से पुरानी है। 
- अणु गीता- जब युद्ध समाप्त हो गया और पांडवों का राज्य स्थापित हो गया और युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हो गया तब अर्जुन ने श्रीकॄष्ण से कहा कि कुछ समझ नही आया! ज़रा संक्षेप में फिर से बताना। अर्जुन को फिर से समझाने के लिए अब जो गीता कही गई वह 36 अध्याय की थी। इसे अणु गीता कहा जाता है। यह महाभारत के 36 वे अध्याय अश्वमेध पर्व में कही गई है। 
- उद्धव गीता - इसे हंस गीता भी कहा जाता है। भागवत पुराण में जब श्रीकृष्ण अपनी लीला समाप्त कर वैकुंठ जा रहे थे तो अपने जीवन का ज्ञान मित्र उद्धव से कहा था। 
- व्याध गीता- एक शिकारी जो ऋषि को ज्ञान देता है कि गृहस्थाश्रम में आजीविका और दूसरों की सेवा के लिए पशुओं का वध भी जब कर्म समझ कर किया जाता है तो वह किसी भी सन्यासी द्वारा केवल स्वयं के लिए किये गए तप से बढ़ कर है जिसमे वह दुनिया को छोड़ देता है। 
- गुरु गीता- स्कन्द पुराण में वर्णित भगवान् शिव द्वारा दिए गए उत्तर जो माँ शक्ति की जिज्ञासा को शांत करने के लिए दिए गए थे। 
- गणेश गीता- गणेश पुराण में गजानन राजा वरेण्य को सत्य से अवगत कराते है। .

- अवधूत गीता- भगवान् दत्तात्रेय द्वारा परम सत्य का दर्शन कराती गीता। 
- अष्टावक्र गीता- जिसमे अष्टावक्र राजा जनक से आत्म तत्व बताते है। 
- राम गीता- सीता को वन में छोड़ कर आने के बाद जब लक्ष्मण दुखी होते है तो उनके दुःख को हरने के लिए भगवान् राम जो उपदेश देते है वह राम गीता है। 
- महाभारत में ही और भी कई गीता है जैसे पाराशर गीता , पांडव गीता , पिंगला गीता।
और भी कई है गीता है जैसे देवी पुराण से देवीगीता, स्कन्दपुराण से ब्रम्हगीता, यमगीता, सूर्यगीता, बुद्ध गीता , जैन महावीर गीता आदी। 
पर भारत के लिए वर्तमान परिपेक्ष में भगवद गीता अर्थात जो सोलह कला अवतार श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय भक्त , सखा अर्जुन का द्वंद्व हरने को कही वह सबसे अधिक पूज्य और अनुकरणीय है। इसके पाठ से और अर्थ समझने से हर एक के जीवन के प्रश्नों के उत्तर साधक को प्राप्त होते है। प्रत्येक श्लोक को पढ़ने पर हर बार अलग अलग अर्थ प्रकट होते है। 
.कई अंधविश्वासों का हरण होता है और मोक्ष पाने का हर मार्ग सांख्य योग , ज्ञान योग , भक्तियोग और राज योग के रूप में प्राप्त होता है।
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