हिंदी दिवस -मनोज कुमार मिश्र
कहाँ गई वो शुद्ध हिंदी
तृप्त करती थी जो मन को,
शीतल बयार सदृश थी बहती
संतृप्त करती थी भुवन को।
अब न निर्झर के कल्लोल कभी
मन वीणा को झंकृत कर पाते,
ना ही किसी पपीहे की कुहुक
सुर सरगम के अंतर्मन में जगाते।
किसी किंजल रश्मि की आभा
अब नहीं साहित्य के गगन में,
न है तत्सम शृंगारित किंचित
तद्भव के घने दुरूह वन में।
थोपे विभाषी शब्दों में उलझी
हांफती हिंदी कराहती मन में,
बोली मैली हुई भाषा असंस्कृत
विमुख हुए संस्कार भी जीवन के।
मुक्त हृदय से मुक्त कंठ के सभी
लगते निनाद भी अब थमे थमे,
अन्य भाषा शब्दों को समेटती
सुलगी बाती सी खुद सिमट रही।
पथ भूल मूल निवास त्याग कर
हिंदी आज अपवित्र सी हो रही,
लौटाएं भाषा की गरिमा फिर से
तत्सम का वृहद प्रयोग करें।
मान दें सम्मान दें बढ़ चढ़कर
संकोच न निज मन में करें,
भाव प्रवण इस सुंदर भाषा की
मिठास अपने दिल से में भरें।
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com


0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com