मृतसंजीवनी जडी
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र "अणु"
नवल-धवल वर्ण-
शोभित कर छडी।
स्निग्ध भाव में भर-
निहारते हर घडी।।
बताते हर तरह की बात,
कहाँ मात कहाँ पर शह।
कैसी भाषा कैसा भाव-
वे बताते रहते रह-रह।।
किससे कैसा हो संबंध-
जोड एक दूसरे से कडी।।
सभी समस्या का समाधान,
चुटकी बजा कर देते हल।
जब कभी हम होते निराश,
करते प्रोत्साहित आत्मबल।।
कभी हार मत मानना तुम-
समस्या कैसी भी हो छोटी-बडी।।
ज्ञान की मूर्ति साकार,
विद्या का अकूत भांडार।
सज्जन,सुशील,विनीत-
राग-द्वेष रहित निर्विकार।
रह जाती सबकी बुद्धि-
स्तब्ध खडी की खडी।।
सीखाते रहते सहज भाव,
साथ शब्द-अर्थ की गंभीरता।
कहाँ पर जोड है कहाँ घटाव-
मानवों की धीरता और वीरता।
चंचला बन जाती मूढमति-
पाकर मृतसंजीवनी की जडी।।
कभी इतिहास कभी भूगोल,
कभी विज्ञान कभी नाप-तोल।
सबमें होता जीवन अनुभव-
आश्चर्यजनक और अनमोल।
सम्मुख होते जन श्रद्धावनत-
ले सुगंधित सुमनों की लडी।।
इधर ज्ञान उधर कर्म
रख सजग निर्मल मर्म।
रहे अविचल पल-पल-
निश्चिंत भाव में रत धर्म।
लिपटा चरणों में "मिश्रअणु"
जैसी हीं दृष्टि पडी।।
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वलिदाद,अरवल(बिहार)804402.
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