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सोशियालॉजी का विकास

सोशियालॉजी का विकास

प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज
वैसे तो आधुनिक यूरोप अपनी हर विचारशैली के लिये ग्रीक दार्शनिकों का संदर्भ लेता है परंतु यह सदंर्भ लेने का काम 19वीं शताब्दी ईस्वी में ही शुरू किया गया।उसके पहले 17 वी शताब्दी ईस्वी तक तो ग्रीक दार्शनिकों का नाम लेना भी सभी चर्च में प्रतिबंधित ही था।
पर फिर हर नया विचार उनसे प्रेरित बताया जाने लगा।तदनुसार पुरानी हास्य कविताओं को सोशियालॉजी का उद्गम बताया जाता है। इसके साथ ही प्लेटो और अरस्तू ने ‘सर्वे’ जैसे शब्दों का जो प्रयोग किया है उसे भी इसके उद्गम का स्रोत बताया जाता है। 11वीं शताब्दी ईस्वी (1086 ईस्वी) में ‘डूम्स डे बुक’ छपी, उसे भी सोशियालॉजी का स्रोत बता दिया जाता है। इसी प्रकार चीनी विद्वान कनफ्यूशियस ने कतिपय सामाजिक व्यवहारों की चर्चा की तो उन्हें भी सोशियालॉजी का स्रोत बताया जाता है और ट्यूनिशिया के मुस्लिम विद्वान इब्न-खालदून को भी यही बताया जाता है यद्यपि वस्तुतः यूरोप में सोशियालॉजी की किसी भी पुस्तक में उनके किसी भी ग्रंथ या कथन का उद्धरण या संदर्भ नहीं दिया जाता, तब भी उनके लिखे ‘मुकद्दमा’ को समाजचिन्तन से जुड़ा मानते हैं।
1780 ईस्वी में फ्रेंच लेखक इमेनुअल जोसफ सीएस ने एक लेख में ‘सोशियालॉजी’ शब्द का पहली बार उल्लेख किया परंतु उस विषय में कोई विचार नहीं किया। तब भी उसे इस विषय के संदर्भ में याद किया जाता है। 1838 ईस्वी में आगस्त कोम्ते ने बाद में समाजशास्त्र शब्द को परिभाषित किया। पहले उन्होंने इसके लिये ‘सोशल फिजिक्स’ शब्द का प्रयोग किया और बाद में सोशियालॉजी का। कार्ल मार्क्स ने 19वीं शताब्दी ईस्वी में ही ‘साइंस ऑफ सोसायटी’ की चर्चा की।
कोम्ते ने फ्रेंच क्रांति को समाज की बुराईयांे से उपजे विक्षोभ से जोड़कर विश्लेषित किया और कहा कि ‘पॉजिटिविज्म’ के द्वारा इन बुराईयों का समाधान संभव है। कोम्ते के बाद अल्बर्ट स्पेन्सर और एमिले दुर्खाइम ने 19वीं शताब्दी में ही सोशियालॉजी पर चर्चा की। उनका लक्ष्य था मानव व्यवहार की व्याख्या वैज्ञानिक तर्कबुद्धि से करना। इसके लिये उन्होंने 1895 ईस्वी में ‘दि रूल्स ऑफ सोशियालॉजिकल मेथड’ नामक एक लेख लिखा। बाद में यूरोप में पॉजिटिविज्म के विरोध में कई विचारक उभरे। हीगल ने पॉजिटिविज्म को यांत्रिक विचार बताया। कार्ल मार्क्स ने भी पॉजिटिविज्म को रिजेक्ट कर दिया। अंत में वैचारिक घात-प्रतिघातों के साथ सोशियालॉजी का विकास होता रहा और 20वीं शताब्दी ईस्वी में ही पहली बार उसका एक स्वरूप स्पष्ट हुआ है। जो 1892 ईस्वी में शिकागो यूनिविर्सिटी में एक छोटे से विभाग के साथ शुरू हुआ था। दुर्खाइम ने सोशियालॉजी को
संस्थाओं की साइंस (साइंस ऑफ इन्स्टीच्यूशन्स) कहा। उन्होंने 1897 ईस्वी में कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट ईसाइयों द्वारा बड़े पैमाने पर की जा रही आत्महत्याओं का विश्लेषण करते हुये ‘सुसाइडे’ नामक एक मोनोग्राफ लिखा। हर्बर्ट स्पेन्सर ने 19वीं शताब्दी ईस्वी के अंत में ‘सर्वाइवल ऑफ दि फिटेस्ट’ (जो परिवेश में सर्वाधिक फिट हो, वही बच रहता है और बढ़ता है) का एक नारा दिया और इंग्लैंड तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में ‘कंजरवेटिव पॉलिटिक्स’ के पक्ष में विचार व्यक्त किये।
20वीं शताब्दी ईस्वी में इसका भली-भांति विकास हुआ। विशेषकर जर्मन समाजशास्त्री एवं ईसाई पादरी मैक्सीमिलियन कार्ल एमिल वेबर ने आधुनिक पश्चिम यूरोपीय समाज के विकास की व्याख्या की जिसे सोशियालॉजी में महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। उन्होंने प्रोटेस्टेंट ईसाइयों के नीतिसंबंधी विचारों को पूंजीवाद की आत्मा बताते हुये 1905 ईस्वी में एक पुस्तक लिखी। उन्होंने ही पहली बार तर्कबुद्धि आधारित राष्ट्रराज्य के पश्चिमी यूरोप में विकास की भरपूर प्रशंसा करते हुये पूंजीवाद (कैपिटलिज्म) को प्रोटेस्टेंट ईसाइयत का फलितार्थ बताया और इसके पक्ष में अनेक लेख लिखे। जिसके विरूद्ध कार्ल मार्क्स सहित अनेक यूरोपीय लेखकों ने कई लेख लिखे और मार्क्स ने ‘दस केपिटल’ (पूंजी) नामक पुस्तक फ्रेंच भाषा में लिखी। जिसमें कैपिटलिज्म के विरोध में सोशलिज्म की अवधारणा प्रस्तुत करते हुये उस दिशा में विकास को ही ऐतिहासिक नियति बताया। इस प्रकार कैपिटलिज्म एवं सोशलिज्म दोनों ही ईसाई समाजों के भीतर विकसित हो रही प्रवृत्तियों के लिये प्रयुक्त समाजशास्त्रीय अवधारणायें हैं। वस्तुतः विश्व के गैर ईसाई समाजों से इन शब्दों का कोई संबंध नहीं है परंतु ईसाइयों के अधीन रहे सभी राष्ट्र राज्यों में इन शब्दों को सार्वभौम सत्य की तरह पढ़ाया और लिखा बोला तथा पढ़ा जाता है।
प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज
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