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सपना सच भी होता है

सपना सच भी होता है

सपना  क्या है ?इस प्रश्न का उत्तर एक समान नहीं है।मनोविज्ञान कहता है  मन की  अवचेतन अवस्था मे संग्रहीत घटित घटनाएँ जाग्रत होकर अकाल्पनिक  छवियाँ  प्रस्तुत करती है ।उन दृश्यों को सुप्तावस्था में देखना सपना है। लेकिन साहित्य में  कुछ अलग  बात कहता है ।सुख्यात कवि गीतकार गोपालदास नीरज कहते हैं----सपना क्या है? नयन सेज पर सोया  हुआ आँख  का पानी। लोक मान्यता‌ है भूत अधवा संभाव्य घटनाओं का संकेत।कौन सही है कहना आसान तो नहींं ,एक झटके में सभी खारिज हो सकते हैं।इस लिए एक ऐसे सपने का उदाहरण रखते है जो भोग ग हुआ है।
,दिनांक १२जनवरी,१९७८दिन गुरूबार ।रात्रि लगभग तीन बजे होंगे। विष्णुपद मंदिर के दक्षिणी द्बार की सीढ़ियो से उतर कर  पिंडबेची मोहल्ले में पिंड का  सामान खरीद कर  लौट रहा हूँ। चारो‌ ओर अँधेरा और जंगल- जंगल जैसा दृश्य।शोर होता है --भालू उतर रहे हैं ं भागो भागो, वा भी उतर सकता है।डर से असमंजस की स्थिति। पिंड का सामान है क्या करूँ। और नींद  खुल जाती है। ब मैं जमाल पुर केन्द्रीय विद्यालय में था। स सुबह यानि शुक्रबार १३जनवरी१९७८ विद्यालय के लिए तैयार हो चल देता हूँ। अगले दिन दूसरा शनिबार होगा  पिताजी आज सुबह वानी मुगल सराय पैसेजर से गाँव ज जाने वाले है।म मैं रात तक तो गया पहुंच ही जाउ़गा।यही सोचते रेलवे बुकिंग काउंटर से गया के लिए टिकट लेकर विद्यालय पहुँच  जाता हूँ।लगभग दस बजे ग्रुप डी दास दौड़ा आता है।उस मय मै क्लीस ले रहा था।उसने कहा तुरत चलिए ,साहब बूलारहे है ं।यह स सोचते घवरराए कि क्या गलती हो गयी। प्रिसिपल  डी दिवाकर राव बोले‌, गया से आपका फ फोन है।हमने हलो किया।जो आवाज आई उसे पहचान नहीं सका ।कहा गया, आपके पिताजी का ऐक्सो डेंट हो गया है डेड बाडी‌प् लेट फार्म पर पड़ी है, आइए ज्ल्दी।मैं पूछता रहा आप कौन हैं फ फोन कट गया।मन में कई  प्रकार की शंकाएधं ठने लगीं ।मैं ने प पूरी स्थिति। आनने के लिए‌ बड़े बाबू को के वि १मे फोन लगाने केलिए कहा। सीधा‌संपर्क तो हो नही‌ सकत आ ।विद्यालय से जमालपुर र रेलवे‌एक्सचेंज। जमालपुर से साहेबगंज कंट्रोल।वहाँ से दानापुर कंट्रोल। और तब के वि१ में सों ध घनघनाया। प्रिंसिपल डा के एस बाजपेयीजी ने उठाया।उनसे अपनी बात के साथ निवेदन किया कि ककिसी स्टॉफ को स्टेशनन भेजकर जानकारी  ले  मेरे परिवार तक सूचित करें मैं पहुँच रहा हूँ।यह बात तुरत विद्यालय मे फैल गयी। श्री एस एस शर्मा मेरै अच्छे मित्र हैं प्रिंसिपल साहब ने उनके साथ क ई और भी स्टॉफ को भेजने की बात कह फोन रख दिया। यह सब सोम डेढ बज गए। मुझे गया जाने और स्टेशन छोड़ने की अनुमति‌ मिल‌ गयी। स्टेशन के पास ही डेरा  था।मकान मालिक  सीताराम वर्णवाल को समाचार दिया और आ गये रेलवे स्टेशन।उस सयम वर्धमान -गया पैसेंजर के आनेका समय तीन बजे था,आई पाँच बजे।मैं गया पहुॅंचा  बारह बजे।सीथे‌जी आर पी‌ थाना गया। अपना परिचय दिया। थाना प्रभारी नै सहानुभूति दिखाई कहा,लोग घर पर इंतजार करते होंगे। मै घर पहुँचा।शोक और चीख पुकार का झन्नाटेदार तमाचा  महसूस हुआ। पिता का  एकमात्र पुत्र पिता की चचादर में लिपटी लाश के पास आयया भी  सोलह घटे बाद। जबकि दुर्घटना सुबह आठ बजे की है। मेरी प्रतीक्षा रात दस बजे‌ तक हुई थी।लोग सुबह आने केलिए जा चुके थे।मा बेचैन थी बार बार अचेत हो रही थी ,ढाढस बंधाया, कुछ शांत हो पाई ।अब तक सबेरा हो चुका था ।संस्कार का सामान आ चुका था।प्रतीक्षा तो केवल मेरी थी। सो अभागा मैं आया भी तो सोलह घंटे बाद। धीरे धीरे उनके सरोकार के यजमान ,हितैसी ,कुटुम्ब,जिनको जैसे सूचना मिली पहुचने लगे। गुरुदव आचार्य चन्द्रशेखर मिश्रजी भी  आगये ।श्मशान घाट तो पास ही था। पार्थिव शरीर जैसे था वैसे ही ले जाया गया। नदी में  पानी था स्नानादि क्रिया आचार्य जी के अनुसार कर राई गई। मुझे  अलग रखा गया फिर भी देख लिया। शिर और एक हाथ अलग था।आद्य् संस्कार के पश्चात्  मुझे बुलाया गया ।दाह क्रिया के अनुरूप‌ अशौचानुकूल  वस्त्र  धारण कर  पंचक दोष निवारणार्थचा कुश निर्मित पुत्तलिकाएँ  पिताजी के पार्थिव शरीर के समीप उसी‌तरह रखी गयीं‌जैसे  लगे कि पाँच शव एक साथ  संस्कारित होरहे हों।श्मशान में जो महापात्र होते हैं उन्हें शबदोंका ज्ञान होता नही आचार्यजी ने ही सारे कर्म अनुकुल मंत्रों से वैदिक विधान से संपन्न कराया।जिससे मुझे बहुत संतुष्टि मिली।
मेरै प्रिय कवि मगही,हिन्दी के गजलकार, महान शिल्पी सुरेन्द्र जी भी उपस्थित थे।उन्हों ने सहज भावुकता वश पिताजी के‌ तैल चित्र बनाने की इच्छि नकेल प्रकट कि वरन‌् श्वेत -श्याम तैल चित्र बनाकर दिया जो‌ अब भी  मेरे कतरे में विराजमान है।
एक दो दिन बाद  माँ की मनोदशा का ध्यान रखते हुए पास बैठा कर कई तरह की इधर उधर की बातों से बहला कर मन की बात जानने का प्रयास किया ।थोड़ा प्रकृतिस्थ होने पर कहा--१२ की रात बहुत भयानक थी।एक सपना देखा। एक बहुत बड़ा साँप उनको(पिताजी को) काट रहा है।मैं चिल्ला रही थी।उनके शरीर से खून, की धारा बह रही थी।तब मैं अचेत हो गिर गई ।नींद खुल ग ई । सुबह उनको जाना था।पूजा से उठे। तैयार हुए। जल्दबाज़ी मे ठीक से नास्ता भी नहीं कर सके थेथथादस बजे के लगभग मंगला गौरी के जंगली भगत आए थे ,उनके पास एक सिपाही गया था उसके साथ स्टेशन जा कर पहचान किया ।उनके‌ झोले में पंचांग था जिसमे  केदार जगवानिया और जंगली माली का पता नोट था।इसलिए दोने‌ से जी आर पी थाना वाले ने पहचान कराई  फिर बात    फैली ।इतना कहनेे के बाद अचेत हो गई। पत्नीऔर  बेटियाँ उपचार मे लग ग ईं।मुझको  अपराधबोध सा लगा इसलिए फिर कभी इस विषय में चर्चा नहीं की। लेकिन सोचता रहा।आज भी सोचता हूँ,उन दो सपनों का तारतम्य,भावी संकेत, लोक मान्यता,।पंचांगों मे स्वपन विचार अंकित रहते हैं पर उनकी सत्यता पर कभी विश्वास हो आवश्यक नहीं समझा ।आज सोचता हूँ। सपना सच भी होता है।
डा रमकृष्ण
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