भादो की बात
सुनिए सुनाता हूँ भादो की बात
सजधज कर आई थी पूनम की रात,
छुटभइए बादल थे नभ में विचरते
खोज रहे मिलकर थे नूतन सौगात।
लुकाछिपी खेल रहा चंदा बेचारा
रूप देख प्रेयसी का दिल गया हारा,
सलमा सितारों की चूनर थी प्यारी
सुंदर सी रजनी का कांत प्यारा प्यारा।
हरी हरी घासों के गीले थे गाल
हाथों में शोभ रही शबनम की माल,
शांत क्लांत प्रकृति की शोभा थी न्यारी
कजरारे मेघा थे जी के जंजाल।
निरख रहा शोभा कोई प्रेम का पुजारी
तीसरे प्रहर में विदाई की तैयारी,
मिलना बिछुड़ना तो तय है जगत में
चिंतन गजब का था प्रज्ञा भी हारी।
रजनीकांत।
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