सबके हित सधते हैं
सबकी अपनी समीकरण, सबके हित सधते हैं,
रूस चीन पाक अमेरिका, सबके हित सधते हैं।
कोई चाहता खनिज सम्पदा, कोई सैनिक अड्डा,
वर्चस्व के इस महायुद्ध में, सबके हित सधते हैं।
कहां गया संयुक्त राष्ट्र, कहां छुपे मानवाधिकारी,
निर्दोषों पर गोली चलती, गली गली बलात्कारी।
बहन बेटियों और बच्चों की, सरेराह बोली लगती,
लूट रहे घर जिस्म- सम्पदा, सड़कों पर व्यभिचारी।
खामोश सभी बुद्धिजीवी, मौन राष्ट्र इस्लामिक हैं,
बात बात में फतवे वाले, मौन मौलवी इस्लामिक हैं।
माल लूट का समझ रहे, सब औरत की अस्मत को,
नहीं शरण मिलेगी जिनमें, मुल्क सभी इस्लामिक हैं।
अ कीर्ति वर्द्धन
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