जैव विविधता बचाने के लिए देश के पर्यावरण योद्धा बक्सवाहा में जुटेंगे

जैव विविधता बचाने के लिए देश के पर्यावरण योद्धा बक्सवाहा में जुटेंगे 

                                                                                      हमारे संवाददाता जितेन्द्र कुमार सिन्हा की खास रिपोर्ट 

बिहार की राजकीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान  से सम्मानित समाज सेविका  डॉ नम्रता आनंद
7 अगस्त , 8 अगस्त  और 9 अगस्त को "चलो बक्सवाहा अभियान" में शिरकत करेंगी।   
  भारत के हृदय स्थली में बसे मध्य प्रदेश राज्य के छतरपुर जिला के अंतर्गत बक्सवाहा जंगल है। 7:30 करोड़ की आबादी वाला राज्य में 75 लाख लोगों को परांदा ऑक्सीजन देने वाला बक्सवाहा जंगल का अस्तित्व खतरे में है। सर्वविदित है कि एक स्वस्थ वृक्ष 230 लीटर ऑक्सीजन देता है और यहां पर हीरो के लिए सवा दो करोड़ जंगल काटा जा रहा है । बक्सवाहा के जंगल के नीचे हीरो के लिए बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों, हर्बल पौधों और अन्य पेड़ों को काटा जाना सच में प्रकृति के साथ खिलवाड़ है। जबकि 8000 आदिवासियों की आजीविका इन्हीं जंगलों से चलता है। मध्य प्रदेश के सबसे सूखे क्षेत्रों में बुंदेलखंड का नाम आता है और इतने बड़े स्तर पर वनों का दोहन, भविष्य में यहां होने वाली बारिश को प्रभावित कर सकता है। अगर हीरे निकालने से मध्यप्रदेश संपन्न हो जाता तो पन्ना जिले जहां पहले से हीरे की खदाने  हैं वह जिला विकास कर गया होता, लेकिन आज भी पन्ना जिला के लोग संपूर्ण विकास को तरस रहे हैं। 
                                               कोरोना संक्रमण की अवधि में ऑक्सीजन के लिए लोग तरस रहे थे और अब विश्व में ढाई लाख पेड़ों को काटने की तैयारी वास्तव में निंदनीय है। जहां एक ओर लाखों करोड़ों रुपयों का कोष पौधे लगाने (वृक्षारोपण) के नाम पर सरकार राशि दे रही है, वही एक भाषा जंगल जिस पर कितने आदिवासी लोगों का रोजगार टिका है, कितने पशु पक्षियों का डेरा है , प्रकृति जीव जंतुओं महिलाओं बुजुर्गों के लिए कितना महत्वपूर्ण है, कितने पशु पक्षियों का डेरा है, प्रकृति, जीव-जंतुओं, महिलाओं, बुजुर्गों के लिए कितना महत्वपूर्ण है, सभी लोग कोरोना संक्रमण काल मे  भली-भांति समझ सकते हैं।                                   

पहली बार 2014 में बक्सवाहा जंगल को काटने का कड़ा विरोध हुआ था। लेकिन 2019 में मध्य प्रदेश सरकार ने खनन परियोजना के लिए जंगल की नीलामी का टेंडर जारी किया और आदित्य बिड़ला समूह की एसेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने सबसे ज्यादा बोली लगाकर टेंडर अपने नाम पर कर लिया। 50 वर्ष के लिए बिरला समूह को यह 1 पट्टे के रूप में मिल गया है। विभाग के अनुसार बक्सवाहा जंगल में 2,15,875 पेड़ है। सागौन ,केन, बेहड़ा, बरगद, जम्मू, तेंदू ,अर्जुन और अन्य औषधीय पेड़ों सहित जंगल के प्राकृतिक संसाधनों का  अस्तित्व अब खतरे में है।   
                                                    डॉ नम्रता आनंद ने कहा कि बक्सवाहा जंगल बचाने की जिम्मेदारी सभी लोगों की है, अन्यथा आने वाला भविष्य, नदी, झरना, पहाड़, जंगल विलुप्त हो रहे है, पशु पक्षी अथवा अन्य प्राकृतिक सौंदर्य को देख सकेंगे और प्रकृति में ऑक्सीजन की कमी नहीं होगी। वन्य जीव पशु पक्षी के साथ 22000 वर्ष पुरानी शैल चित्रों का भी अस्तित्व खतरे में है। पूरे देश के कई संस्थाएं इस बक्सवाहा आंदोलन में भाग लेने के लिए आ रही हैं जिन्होंने जंगल को कटने से रोकने का बीड़ा उठाया है।  

बिहार में पर्यावरण योद्धाओं ने इसके संरक्षण हेतु अभियान  पिछले कई महीनों से चला रहे है। देश-विदेश के लाखों लोग प्रतिदिन सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट मीडिया जंगल को बचाने की दिशा में एकजुट होकर काम कर रहे हैं। 

इस अभियान के अंतर्गत पर्यावरण संरक्षकों का एक दल  पीपल नीम तुलसी के संस्थापक डॉ धर्मेंद्र कुमार के नेतृत्व में बक्सवाहा में 07 अगस्त, 08 अगस्त और 09 अगस्त को जाएगा। अभियान में  ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस के गो ग्रीन अभियान की  राष्ट्रीय सह प्रभारी, दीदी जी फाउंडेशन की संस्थापिका डॉ नम्रता आनंद, पीपल नीम तुलसी के संस्थापक डॉ धर्मेंद्र कुमार, कानपुर की रितिका गुप्ता, भोपाल मध्य प्रदेश से आनंद पटेल, पंजाब से अनुराग विश्नोई और राजीव गोधरा, दिल्ली से ज्योति डंगवाल, मध्य प्रदेश से शिवानी चौहान और ज्योति सिसोदिया, झारखंड से राजेश कुमार, उत्तर प्रदेश से ओपी चौधरी, इंदौर से काजल इंदौरी, कोलकाता से नीना गुप्ता, उड़ीसा से शुभेंदु राय, राजस्थान से ओमप्रकाश विश्नोई, गुजरात से  निलेश गौरव, उत्तराखंड से अल्पना देशपांडे, बिहार (बक्सर) से डॉ नम्रता आनंद, उषा मिश्रा के अतरिक्त  देश के सैकड़ों पर्यावरण प्रेमी और नेपाल से विक्रम यादव, राजेश गौरव बक्सवाहा आंदोलन में भाग लेंगे।
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