दौर अलग था नागार्जुन का
दौर अलग था नागार्जुन का, अब तो उल्टी धार बढी,
दिल्ली लखनऊ या गांव में, पिछड़ों की ही ठाड बढी।
गांव में प्रधानी देखी, दारू में मस्त कहानी देखी,
महिला बनी प्रधान मगर, मियां की पहचान बढ़ी।
समान नागरिक के अधिकार, संविधान ने बतलाया,
कहीं जाति कहीं धर्म नाम पर, इसमें भी दरार बढी।
बनिये का बनिया कहने से, नहीं किसी का मान घटा,
संविधान में भेद करा कर, आपस में तकरार बढ़ी।
किसने रेता किसके सर को, मुश्किल यह समझाना है,
दबंग वही है आज जगत में, सत्ता जिसके साथ बढी।
चरण गहो श्रीमान के, वो ही सत्ता और अधिकारी हैं,
श्रीमान जो बने मुल्क में, उनसे जाति धर्म की शान बढ़ी।
सरकारी हो कोई योजना, चाहे मुफ्त का माल मिले,
जिसको मिलता धौंस दिखाता, लुटेरों की ही बाढ़ बढ़ी।
अ कीर्ति वर्द्धन
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