योगी सरकार का फीड बैक

योगी सरकार का फीड बैक

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
अगले साल जिन पांच राज्यों मंे विधानसभा के चुनाव होेंगे, उनमंे उत्तर प्रदेश भी शामिल है। देश को सबसे ज्यादा सांसद देने वाला राज्य भाजपा के लिए कितना महत्वपूर्ण है, यह बताने की जरूरत नहीं। इसीलिए योगी आदित्यनाथ की सफल सरकार का भी फीड बैक लेने की जरूरत समझी गयी है। भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष लखनऊ मंे यूं ही डेरा नहीं डाले हुए हैं। उन्हांेने मंगलवार 1 जून को डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और डा. दिनेश शर्मा के साथ कुछ मंत्रियों के साथ भी अकेले मंे वार्ता की। इससे एक दिन पहले वे कई मंत्रियों से मिल चुके हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा को स्थापित करने मंे गृहमंत्री अमित शाह की बड़ी भूमिका रही है। बताया जा रहा है कि बीएल संतोष के बाद अमित शाह भी लखनऊ आएंगे। अमित शाह ही 2014 मंे यूपी के प्रभारी थे जब लोकसभा चुनाव मंे विपक्ष का लगभग सफाया हो गया था। योगी आदित्यनाथ की 4 साल की सरकार में कई उपलब्धियां शामिल हैं लेकिन कोरोना की दूसरी लहर मंे अन्य राज्यों की तरह यूपी मंे भी व्यवस्था चरमरा गयी थी। यही कारण है कि पहली बार इस सरकार का फीड बैक लिया जा रहा है।

पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष ने सरकार के मंत्रियों, पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों से कोरोना काल में किए काम का फीडबैक लिया। कोरोना काल में कई सारी दिक्कतों से जनता में नाराजगी की जानकारी मिलने के बाद उन्होंने कहा कि मंत्री, विधायक और पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी कोरोना पीड़ितों के घर जाएं, उनसे मिलें, विश्वास दिलाएं कि बीजेपी और सरकार उनके साथ खड़ी है। अगर उन्हें कोई दिक्कत है तो तत्काल उसका समाधान किया जाए।

बीएल संतोष का यह दो दिन का दौरा उस वक्त हुआ जब कोविड की दूसरी लहर से निपटने को लेकर संगठन में कयासबाजी तेज है। बीते दिनों बीजेपी के कई मंत्री और विधायकों ने सार्वजनिक रूप से नेतृत्व पर जनता के प्रति गैर जिम्मेदाराना होने के सवाल उठाए। हाल ही में संपन्न हुए पंचायत चुनाव में भी बीजेपी के खराब प्रदर्शन को लेकर सवाल उठ रहे हैं, जबकि खुद पार्टी ने इसे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल बताया था। ऐसे में अब यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले ही बीजेपी चुनावी मोड में आ गई है। बीते कई दिनों से यूपी में कैबिनेट विस्तार और बीजेपी संगठन में बदलाव की सुगबुगाहट सुनाई दे रही है। 2017 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद पहली बार प्रदेश में इस तरह की चर्चा हो रही है।

बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष 31 मई को लखनऊ पहुंचे और मंत्रियों व पार्टी नेताओं के साथ एक-एक करके बैठक की। इसके बाद उन्होंने सीएम आवास में योगी आदित्यनाथ से भी मुलाकात की। बीएल संतोष ने पार्टी के यूपी प्रभारी राधा मोहन सिंह, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल, क्षेत्रीय अध्यक्षों और पार्टी के महामंत्रियों के साथ भी बैठक की। इसके बाद उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह और चिकित्सा शिक्षा मंत्री सुरेश खन्ना से भी कोरोना काल में सरकार के काम का फीडबैक लिया। कई अन्य मंत्रियों और पार्टी पदाधिकारियों से पूछा कि पार्टी का जनता के बीच क्या माहौल है? अगर हम चुनाव में जाते हैं तो किन दिक्कतों से निपटना पड़ेगा? कुछ वरिष्ठ नेताओं ने बताया कि कोरोना से यूपी में कई परिवारों पर संकट आ गया है। कुछ परिवारों ने एक तो कुछ में दो से तीन लोगों ने जान गंवा दी है। अप्रैल में ऑक्सिजन और बेड के लिए जूझे और कालाबाजारी से भी परेशान रहे। हालांकि, सरकार ने तेजी से इन दिक्कतों को दूर किया। बैठक में तय किया गया कि अब गांवों में ज्यादा संकट है और ग्रामीणों में वैक्सिनेशन को लेकर जागरूकता भी नहीं है, इसलिए हर गांव में एक युवा और महिला कार्यकर्ता को पहले से ट्रेनिंग देकर तैनात किया जाए ताकि वह गांव के लोगों की मदद कर सकें। तीसरी लहर से पहले हर तरह के इंतजाम करने के भी निर्देश बैठक में दिए गए।

अगले साल के शुरुआती महीनों में जिन पांच राज्यों में चुनाव होने हैं, उसमें यूपी को लेकर बीजेपी सबसे ज्यादा फिक्रमंद है। उसकी यह फिक्र हाल के कुछ महीनों के दरम्यान बढ़ी भी है। पिछले दिनों में दिल्ली में संघ और बीजेपी के बड़े नेताओं के बीच एक बैठक भी हुई, जिसमें यूपी को लेकर बहुत सारी बातों पर विमर्श हुआ। बहुत सारे बदलाव भी पाइप लाइन में बताए जा रहे हैं। अगर राजनीतिक गलियारों में इन दिनों यूपी को लेकर जो किस्से सुने-सुनाए जा रहे हैं, उन पर कान दे दिया जाए तो ऐसा लगता है कि वहां बड़ी सर्जरी होने वाली है लेकिन आधिकारिक तौर पर अभी उसकी पुष्टि नहीं हो पा रही है।

बदलाव के दृष्टिगत घबराहट तो राज्य बीजेपी के बड़े नेताओं तक में है। दिल्ली की हर आहट पर वे चैंक जा रहे हैं। कुछ नेताओं ने तो अपनी सक्रियता भी बढ़ा दी है ताकि आने वाले किसी तूफान से अपने को सुरक्षित रख सकें। संगठन और सरकार के बीच और बेहतर समन्वय बनाने पर जोर दिया जा रहा है।कोविड की पहली लहर में यूपी में जितना सब कुछ व्यवस्थित था, दूसरी लहर में वह उतना ही अव्यवस्थित दिखा। यह संयोग कहा जा सकता है कि कोरोना से डराने वाली ज्यादातर खबरें यूपी से ही निकलीं। यहां तक कि मंत्रियों, बीजेपी सांसदों और विधायकों तक ने कहीं कोई सुनवाई न होने की बात कह डाली। बाद में राज्य सरकार ने स्थितियों पर काबू पाने में बहुत कुछ सफलता पाई लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। दिल्ली में बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता स्वीकारते हैं कि कई मौकों पर यह देखा जा चुका है, पहली नजर में जो धारणा बन जाती है, वह मिटने नहीं पाती, बाद में आप चाहे जितना अच्छा काम करके दिखा दें। शुरुआती अव्यवस्था लोगों के जेहन पर हावी न होने पाए, इसके लिए क्या तरीका अपनाया जाए, यह बीजेपी की टॉप लीडरशिप में विमर्श का मुख्य मुद्दा है।

भाजपा नेतृत्व को लगता है कि चेहरा घोषित न होने से, सीएम पद के जो अन्य दावेदार होते हैं, वे सक्रियता नहीं दिखाते। इसके मद्देनजर बीजेपी लीडरशिप ने अप्रैल में हुए असम के चुनाव में एक नया प्रयोग किया। उसने वहां के सीएम को अगले चुनाव के लिए सीएम का उम्मीदवार घोषित नहीं किया। कहा कि सीएम चुनाव के बाद तय होगा। इस प्रयोग के जरिए सत्ता में उसकी वापसी भी हुई। तो क्या ऐसा प्रयोग यूपी में भी किया जाना चाहिए? और अगर किया जाता है तो क्या वहां के जो मौजूदा मुख्यमंत्री हैं, वह इसे कितनी सहजता से स्वीकार करेंगे? यूपी से लोकसभा की 80 सीटें आती हैं। यहां की पॉलिटिक्स का सीधा असर केंद्र की राजनीति पर पड़ता है। 2014 और उसके बाद 2019 के आम चुनाव में बीजेपी को रेकॉर्ड 300 ़ सीटें मिलीं, उसमें यूपी का बहुत बड़ा योगदान है। 2014 के चुनाव में बीजेपी को यहां से 80 में से 73 और 2019 में 64 सीटें मिलीं थी। 2022 में जब यूपी में चुनाव होंगे तो उसके महज दो साल बाद लोकसभा के चुनाव प्रस्तावित हैं। बीजेपी लीडरशिप को लगता है कि अगर पार्टी कहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई तो इसका असर 2024 के लोकसभा के चुनाव पर पड़ेगा। 2024 का लोकसभा का चुनाव बीजेपी के लिए इसलिए और महत्वपूर्ण होगा कि वह लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए चुनाव के मैदान में होगी। रास्ता यूपी से ही जाएगा। (हिफी)
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