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जब योग-योग हो

जब योग-योग हो

विश्व योग दिवस के निमित्त रचित और समर्पित।
         --:भारतका एक ब्राह्मण.
          संजय कुमार मिश्र 'अणु'
मन निरोग हो-
तन निरोग हो।
ये तब संभव-
जब योग-योग हो।।
      योग जोड़ता है-
      प्रकृति से।
      रक्षा करता है-
      विकृति से।
तन-मन निरोग हो।।
जब योग-योग हो।।
       वही बसता है,
       रोम-रोम में।
       गति रखता है,
       सूर्य-सोम में।
सुखद संयोग हो।
जब योग-योग हो।।
         योग कहाता,
         सांसों का सरगम।
         सीखाता है-
         यह जीवन संयम।
अंग-अंग निरोग हो।
जब योग-योग हो।।
          आओ मिलकर,
          योग जगाएं।
          तन से मन का-
          संयोग कराएं।
मिटे वियोग न रोग हो।
जब योग-योग हो।।
           वलिदाद,अरवल(बिहार)
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