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‘‘खरीफ धान’’ रोपनी से पूर्व खेत की तैयारी से संबंधित सुझाव

‘‘खरीफ धान’’ रोपनी से पूर्व खेत की तैयारी से संबंधित सुझाव

कृषि विभाग से प्राप्त सूचनानुसार, पौधषाला में धान के बीज को बिचड़े तैयार होने के लिए किसान गिरा चुके हैं। इस संदर्भ में आवष्यक सुंझाव है कि जब तक बिचड़े तैयार हो रहे हैं, उसके पूर्व आप मुख्य खेत को तैयार कर लें ताकि समय पर इन बिचड़ों की रोपनी की जा सके।
खेत की तैयारी के संबंध में जरूरी है कि धान फसल की भरपूर पैदावार के लिए सर्वप्रथम रोपनी के 7-8 दिन पहले खेत को मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करके खेत को 3-4 दिनों तक यूँ ही छोड़ देना चाहिए। इससे घासपात एवं खेत में पड़े अन्य जैविक पदार्थ मिट्टी में दबकर सड़ जाते हैं, इसके बाद कम्पोस्ट या गोबर की सड़ी खाद डालकर हल से 2-3 जुताई कर खेत को तैयार कर लेना चाहिए। चूहे के प्रकोप से बचने के लिए खेत के मेड़ को पतला रखें तथा मेड़ को साफ रखें। जमीन को समतल कर लें ताकि समान रूप से कल्ले निकल सकें। इससे नेत्रजन एवं अन्य खाद उर्वरकों की उपयोगिता बढ़ जाती है। कदवा कर देने से भूमि के छिद्र शीघ्र बन्द हो जाते है और पानी नीचे नहीं जा पाता है। फलतः पानी नहीं सूख पाता है एवं आसानी से 4-5 दिनों तक रोपनी की जा सकती है।
खाद के प्रयोग में जो आवष्यक सावधानी अपेक्षित है, वह यह कि धान फसल की अच्छी पैदावार लेने के लिए रोपनी के 4-5 सप्ताह पहले 150-200 क्विंटल गोबर की खाद या कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में अच्छी तरह से बिखेर कर मिला देने से भौतिक दषा एवं जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है। रासायनिक उर्वरकों को प्रभेद के अनुरूप, अनुषंसित मात्रा का ही व्यवहार करना चाहिए। अच्छा होगा कि खेत की मिट्टी की जाँच कराकर ही आवष्यकता आधारित रासायनिक उर्वरक का व्यवहार करें।
रोपनी करने के समय कतार से कतार की दूरी और पौधों से पौधों की दूरी का बड़ा महत्व है। पौधा से पौधा एवं कतार की दूरी 20-25 से0मी0 होनी चाहिए। बिचड़ों की जड़ को कादों में 1 से0मी0 से ज्यादा गहराई में नहीं गाड़े एवं एक स्थान पर एक से दो बिचड़े ही लगाना चाहिए। सामान्य विधि से रोपनी के लिए 20 से 22 दिनों का बिचड़ा तथा श्री विधि से रोपनी के लिए 10-12 दिन के बिचड़े ही रोपनी करें।
धान की फसल में पानी की अधिक आवष्यकता होती है। खेत में पानी का जमाव लगभग 2 से0मी0 ही रखें। खेत में पानी का सही स्तर रहने पर फास्फेट, लौह तथा मैग्निषियम आदि तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है एवं खरपतवार भी नियंत्रित रहता है। रोपनी से एक सप्ताह बाद तक पानी रखना चाहिए एवं बीच-बीच में यथा संभव खेत को पानी से खाली भी रखें ताकि कल्ले काफी संख्या में निकल सकें।
खरपतवार फसल के दुष्मन होते हैं, अतः इसे निकालते रहना चाहिए। धान के बिचड़ा को रोपने के बाद 0 से 3 दिन के अंदर बुटाक्लोर 50 प्रतिषत तरल 2.5 लीटर या प्रेटिलाक्लोर रोपनी के 5 दिन के अंदर 750 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से या पाइरेजोसल्पयूराॅन 10 प्रतिषत डब्लू0पी0 200 ग्राम रोपनी के 8 से 10 दिनों के अंदर प्रति हेक्टेयर की दर से 50-60 किलो ग्राम सूखे बालू में मिलाकर खेत में बिखेर दें अथवा पानी में घोल बनाकर सतह पर छिड़काव कर दें। छिड़काव के समय खेत में हल्का पानी लगा रहना चाहिए।
धान की सीधी बुआई (जीरो टिलेज या सीड ड्रील विधि) अथवा पैड़ी ट्रांसप्लांटर से लगाये गये धान फसल में खर-पतवार नियंत्रण हेतु सीधी बुआई के 3 से 5 दिनों के अंदर आॅक्सीफ्लारफेन 23.5 प्रतिषत ई0सी0 500 मि0ली0 अथवा पेन्डीमेथीलीन 30 प्रतिषत ई0वी0 2.5 लीटर अथवा पोस्ट इमरजेन्स (खरपतवार उगने के पष्चात) खरपतनाषी पाइरेजोसल्फ्युराॅन 10 प्रतिषत डब्लू0पी0 का 200 ग्राम अथवा बिस्पायरी बैक सोडियम 10 प्रतिषत एस0एल0 250 मि0ली0 प्रति हेक्टेयर की दर से 15 से 20 दिनों के अंदर सूखे बालू में मिलाकर या पानी में घोल बनाकर खेत में व्यवहार किया जा सकता है।
खरपतवारनाषी का व्यवहार निर्धारित समय सीमा के अंदर ही करना चाहिए, छिड़काव हेतु यंत्र के गन में फ्लैटफैन नोजल या फ्लडजेट नोजल का ही व्यवहार करें।
इसके प्रमुख कारणों में मौसम में बढ़ा हुआ तापमान एवं आर्द्रता तथा फफूंद या जीवाणुजनित रोगों का संक्रमण होना है।
पत्र लांक्षणः- यह एक फफूंद जनित रोग है। इसमें पत्तियों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के चित्ती या धब्बे बनते हैं। ये धब्बे आपस में मिलकर पूरी पत्तियों को सुखा देते हैं। आक्रांत पत्ती जली हुई दिखाई देती है।
यदि कृषक अभी बीज गिरा रहे हो तो कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिषत धु0चू0 की 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीचोपचार करें। बिचड़े पर इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर मैकोजेब 75 प्रतिषत धु0यू0 का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
झुलसा रोग (ठसंेज)ः- यह भी एक फफूंद से होने वाला रोग है आक्रांत पत्तियों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे पड़ते हैं। धब्बे के बढ़ने पर ये आँख या नाव के आकार के हो जाते हैं, जिसके बीच का भाग सूखा पुआल या राख के रंग जैसा दिखता है। पौधों पर इस रोग का लक्षण दिखाई देने पर कार्बेन्डाजीम 50 प्रतिषत घुनलनषील चूर्ण का 2 ग्राम या हेक्साकोनाजोल 5 प्रतिषत ई0सी0 या टेबुकानाजोल 25.9 प्रति ई0सी0 का 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर बिचड़े पर समान रूप से संध्या या सुबह के समय छिड़काव करें।
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