कबीर

         संजय कुमार मिश्र 'अणु'
जो करते रहा
हमेशा जड़ समाज पर-
प्रहार पर प्रहार।।
बताता रहता था
सबको हरदम
अपने अनुभव की बात
दें बुद्धि का विस्तार।।
कभी किसी बात को वह
नहीं माना कभी
आंखें बंद कर साकार।।
कहने को तो था वह
बिल्कुल निरक्षर
लेकिन करते रहता था
वह ब्रह्म साक्षात्कार।।
न किसी से दोस्ती थी उसकि
और न किसी से था बैर
करता था सबसे वह प्यार।।
मानता हीं नहीं था
वेद और पुराण
जानता भी नहीं था
हिन्दू मुसलमान
दोनों को देता था ललकार।।
न सगुण मानता था 
न तो निर्गुण
दोनों से परे था उसका आधार।।
ज्ञान मार्ग का वह पथिक
देख अज्ञान रहता था व्यथित
बनाना चाहता था सबको समझदार
          वलिदाद अरवल (बिहार)
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