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औरतें

औरतें (कविता)

      --:भारतका एक ब्राह्मण.
      संजय कुमार मिश्र 'अणु'
औरतें
पड़ी रहती है
घर में निढाल
और बेचारा पुरुष
होता रहता है पैमाल।
जब कभी आता है कोई
उसके ससुराल में नैहर से
होते जानकारी
पल भर में हो जाती है
सारी की सारी तैयारी
एकदम तत्काल।
देख इधर के लोग
उसे धर लेता है शोक,रोग
भरने लगती है लंबी सांस
चाहे देवर हो या ससुर,सास
न गलने देती दाल।
जबतक होता है सब
उसके मन मुताबिक
निबहता रहता है यूंही
सबके सब बिल्कुल ठीक
रही हो चाहे कैसी भी चाल।
उधर के लोगों को देख-देख
चलने लगता है देह
और इधर के लोगों को देख
चलने लगती है बुद्धि
हर बात में उसे दिखती है
गलतियां और अशुद्धि
फिर खिंचती है बाल की खाल।
मैं समझ नहीं पाया औरतों को
उसकी भावना या जरुरतों को
यदि आप समझ पाए हैं
तो हमें भी बताईए उन सूत्रों को
जो मुझे बचा ले
हर पल,हर दिन,हर साल।
        वलिदाद अरवल (बिहार)
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