तुम आये

तुम आये

तुम आये तो पत्थरों से स्वर फूटे
तुम आये तो धूप ने छाया दे दी
तुम आये तो सरिता हुई सागर
तुमने सिखलाया
सूरज को शीतल होना
चाँद को तपना
फूलों को हँसना
पहाड़ों ने तान छेड़ी
झरनों ने गीत गाये
जब तुम आये
तुम्हारे आने से बहुत कुछ बदला जिंदगी में
सोना-जगना
रोना-गाना
खाना-पीना
यूँ ही जीना
और भी बहुत कुछ !
क्या कुछ नहीं बदला तुम्हारे आने से
हाँ……
नहीं बदला तो साँसों का आना-जाना
पंछियों से बातें करना
अकेले में चुप रहना
भीड़ में गुनगुनाना
देखकर भीगी पलकें
आँखों का नम हो जाना
जिंदगी का व्याकरण तुम्हीं से सीखा मैंने
कितने मायने होते हैं जिंदगी शब्द के तुम से ही जाना 
छोटे से दिल का भूगोल कितना विस्तृत है
हृदय के स्पंदन पर उँगलियों के पोर रख समझाया था तुमने ही
तुम्हीं ने बताया था कि आँखे बोलती भी हैं
अधरों की थरथराहट सिर्फ कम्पन न होकर तृष्णा तृप्ति का मौन आमंत्रण भी है
तुम आये तो बहुत कुछ अजाना जाना मैंने
फिर एक दिन ……
चुपचाप चले गये जिंदगी से तुम
हो गया सबकुछ यथावत पहले जैसा 
जैसा था तुम्हारे आने से पहले|||

..........(रवि प्रताप सिंह)..........
(रवि प्रताप सिंह,कोलकाता)
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