धर्मयुद्ध ललकारा है
(हिन्दी ग़ज़ल)
सुनों देश के वासी तुमको,
धर्मयुद्ध ललकारा है।
स्वप्निल आंखें खोल जरा तु,
घेर लिया अंधियारा है।।
जीसने तुमसे झुठ बोलकर,
मिथ्या गले लगाया था।
उसने हीं पीठ पर वार किया-
और बना हत्यारा है।।
इधर-उधर की बात बताकर,
तुमको खुद से दूर किया।
तुम भीं आंखे बंद किये हीं
मान लिया ये प्यारा है।।
तेरे आगे तुमको लुटा,
और कहा तुम कायर हो।
धर्मभ्रष्ट कर पंगु बनाकर,
खुद का पांव पसारा है।।
अब उठो गर्व से सीना तानो,
तेरा हीं जग सारा है।
दीये जलाओ खुशी मनाओं
मिटा गया तम कारा है।।
--:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र"अणु"
वलिदाद अरवल (बिहार)
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