प्रातः काल सूर्य उदित

प्रातः काल सूर्य उदित

       ---:भारतका एक ब्राह्मण.
          संजय कुमार मिश्र 'अणु'
आज मेरा मन-
है बहुत व्यथित।
असमय में बन गए तुम-
अनंत पथ के पथिक।
समय-समय पर आप-
करते थे उद्बोधन।
जो कर्म में कमी रह गई-
उसका करने को संशोधन।
हो जीवन की बेला-
या फिर साहित्य कवित।
हमें होता था गर्व साहचर्य का-
सिखे थे कला वाक् चातुर्य का।
सहयोग का योग अथवा संवेदना-
कराया था बोध रस माधुर्य का।
समझाते रहते थे हमेशा हमें-
दुनियादारी उचित अनुचित।
बहुत व्यथित कर रहा है आज-
इस तरह से चुपके चले जाना।
होता नहीं है विकास किसीको-
तुम्हें इस तरह काल से छले जाना
अचंभित हैं लोग सुन जानकर-
चाहे वह जो हो हित अनहित।
रहते थे प्रसन्न प्रफुल्लित राजीव-
थे हरेक के लिए सदाशिव।
राग,द्वेष से परे रहे सारा जीवन-
कभी लौटा नहीं दर से निराश हो जीव।
सदा सर्वदा रहते थे मुदित-
मानों प्रात:काल सूर्य उदित।
          वलिदाद अरवल (बिहार)
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