Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

शब्दों के मायने कैसे बदल जाते हैं?

शब्दों के मायने कैसे बदल जाते हैं?

संकलन अश्विनी कुमार तिवारी

आज अगर किसी व्यक्ति को “उल्लू” कह दिया जाये तो क्या मतलब निकाला जाएगा? वैसे तो ये पूछने की जरूरत भी नहीं है क्योंकि किसी को उल्लू कहने का मतलब उसे बेवकूफ कहना ही होता है। अगर कहीं आप ऐसा सोच रहे हैं कि भारत में हिन्दी या मिलती जुलती बोलियों-भाषाओं में किसी को उल्लू कहने का मतलब परंपरागत रूप से बेवकूफ कहना होता है तो ऐसा बिलकुल भी नहीं है। श्री यानी लक्ष्मी जी के इस वाहन को परंपरागत रूप से बुद्धिमानी का प्रतिक माना जाता रहा है। मिलती-जुलती सी ग्रीक देवी एथेना का वाहन भी उल्लू ही होता है।


महाभारत के समय तक अगर देखें तो “उलूक” यानी उल्लू तो सीधा-सीधा नाम में ही मिलता है। शकुनी और अर्श के पुत्र का नाम उलूक था। अपने पिता को वापस गंधार ले जाने यही उलूक आता है। महाभारत का युद्ध शुरू होने से ठीक पहले यही उलूक कौरवों का दूत बनकर युधिष्ठिर के पास आता है और बताता है कि कौरवों को पांडवों का प्रस्ताव स्वीकार्य नहीं। इसी के बाद युधिष्ठिर ने सेना को आगे बढ़ने के आदेश दिए थे। ये उलूक महाभारत के युद्ध में अट्ठारहवें दिन शकुनी के साथ ही सहदेव के हाथों मारा गया था। अब हो सकता है ये लगे कि शायद शकुनी का पुत्र होने जैसी वजह से उलूक या उल्लू को बेवकूफ कहा जाने लगा होगा, तो ऐसा भी नहीं दिखता।


रामायण काल में एक ऋषि थे विश्वामित्र। ये राम-लक्ष्मण को दशरथ के दरबार से ताड़का वध के लिए ले जाने के लिए भी जाने जाते हैं। इनका एक नाम कौशिक भी होता है। अपने कई अर्थों में से इसका एक अर्थ उल्लू से सम्बंधित भी होता है। उल्लू के इस समानार्थक वाले नाम के कई ऋषि-मुनि नजर आते रहते हैं। अंग्रेजी की जानी पहचानी सी “प्रिंस ऑफ़ पर्शिया” में एक जगह नायक अपना नाम “काकोलूकीय” बताता है। असल में ये कोई नाम नहीं बल्कि पंचतंत्र का एक हिस्सा है जिसका मतलब होगा “कौवों और उल्लुओं के बारे में”। पंचतंत्र नाम की प्रसिद्ध सी रचना में कौवों और उल्लुओं की आपसी लड़ाई के प्रसंग का यही नाम है। यहाँ भी उल्लुओं को मूर्ख नहीं बल्कि चतुर ही दर्शाया गया है।


वापस महाभारत पर आयें तो अट्ठारहवें दिन कौरव पक्ष के सभी योद्धाओं के मारे जाने पर भी तीन लोग बचे हुए थे। इनमें से एक अश्वत्थामा को नींद नहीं आ रही थी और बीच रात में वो आकर कृतवर्मा और कृपाचार्य को आँखों देखी एक घटना सुनाकर कहता है कि उसे पांडवों पर विजय का मार्ग सूझ गया है ! जब उससे पूछा जाता है कि वो क्या करने वाला है तो वो रात में आक्रमण करने की योजना बताता है। उसने थोड़ी ही देर पहले एक वृक्ष पर मौजूद कौवों के बीच अचानक सफ़ेद सा कुछ देखा था। ये एक बड़ा सा उल्लू था। सोते हुए कौवों पर उल्लू को अचानक हमला करके कई कौवों को मार गिराते देखकर ही अश्वत्थामा को रात में सोते पांडवों पर हमला करने की सूझी थी।


उल्लू से जुड़ी एक और कहानी भी आती है। इस कहानी में लोमष नाम का एक बिल्ला किसी शिकारी के जाल में फंसा होता है और उसी जाल में फंसे चारे को एक पलित नाम का चूहा खा रहा होता है। तभी चूहे को दिखता है कि पेड़ पर आकर एक उल्लू बैठा है जो उसी पर घात लगाए हुए है। उसी वक्त एक नेवला भी चूहे का शिकार करने के इरादे से पहुँच जाता है। कोई भागने का रास्ता न देखकर चूहा बिल्ली से संधि कर लेता है। वो बिल्ली के नीचे छुपकर जाल को कुतरता तो है मगर बहुत धीमी गति से। बिल्ला जब उससे पूछता है कि वो इतना धीमे क्यों कुतर रहा है तो वो बताता है कि सही समय से पहले बिल्ले को छुड़ाया तो सबसे पहले तो बिल्ला ही उसे चट कर जाएगा!


रात भर चूहा बिल्ले के नीचे ही छुपा रहा और सुबह होने पर जब शिकारी की आहट से नेवला भागा और उल्लू दिन में शिकार करने में असमर्थ हुआ तब आखरी मौके पर चूहे ने जाल कुतरा। बिल्ला शिकारी से बचकर भागा और चूहा बचकर अपने बिल में। मोटे तौर पर ये कहानी इसलिए सुनाई जाती है ताकि समझाया जा सके सही समय से पहले कोई काम कर देने से उस काम का कोई मोल नहीं रह जाता। ज्यादातर पहले या बाद में काम करने पर नुकसान ही उठाना पड़ता है। ये काफी कुछ वैसा ही है जैसे अभी (यानी गलत समय पर) लोगों के लिए उल्लू शब्द का इस्तेमाल करना। किसी को सम्मान देने के लिए उल्लू कहने की परंपरा काफी पहले ही बीत चुकी है, अभी शायद उसका कुछ नया वाला अर्थ ही लिया जाएगा।


हालिया अंतर्राष्ट्रीय राजनीति से जोड़कर देखा जाए तो हाल ही में अमरीका वाले ट्रम्प से भारत वाले मोदी के संबंधों को लेकर चर्चाएँ काफी गर्म रही थीं। अल्पसंख्यकों पर आई किसी रिपोर्ट के हवाले से काफी कुछ कहा जा रहा था। फिर कश्मीर पर मध्यस्थता को लेकर भी काफी बातें हुईं। इन्हीं सब के बीच सही समय का इन्तजार करने के बाद कश्मीर पर भारत सरकार ने एक कड़ा और काफी दिनों से प्रतीक्षित फैसला भी ले डाला। इसके बाद पता चला कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्या होगा और घरेलु मुद्दों पर क्या हो रहा है का रोना रोते कई जीवों को नए मुद्दे ढूँढने पड़ेंगे, क्योंकि इधर तो कहने के लिए कुछ बचा ही नहीं।


बाकी उल्लू पर बात हो रही थी तो याद आया कि “उल्लू बनाना” हाल के दौर की एक कहावत सी होती है। सही समय का जो महत्व है सो तो हइये है!


आपके शब्द कैसे खराब किये जाते हैं?
~~~~~


शिवाजी के बारे में पढ़ने पर ऐसी बातों पर भी ध्यान चला जाता है। उनकी लड़ाइयों में से एक लड़ाई उंबरखिंड की लड़ाई थी, जो तीन फ़रवरी 1661 को लड़ी गयी थी। ये थोड़ी कम मशहूर लड़ाई है, इसका नाम बहुत आसानी से सुनाई देगा, या किताबों में नजर आएगा, इसकी संभावना कम है। हाँ ये जरूर है कि जिस आदमी की वजह से ये लड़ाई हुई थी, उसका नाम सुना हुआ है।


शाइश्ता खान जो बाद में उँगलियाँ कटवाकर ही दुम दबाकर भागा था, उसने एक उज़बेक सरदार को शिवाजी को मारने के लिए रवाना किया। करतलब खान कोंकण के इलाके को फतह करने के हुक्म के साथ 30,000 सिपाहियों को लेकर रवाना हुआ। उसका इरादा खंडाला घाट की तरफ से पनवेल की ओर बढ़कर शिवाजी को चौंका देने का था। मजबूत गुप्तचर दल रखने वाले शिवाजी तक जब ये खबर पहुंची तो उन्होंने घोषणा की कि वो पनवेल की तरफ बढ़ रहे हैं।


जासूसों के मार्फ़त करतलब खान को ये खबर मिली तो उसने एक दूसरा, कम इस्तेमाल होने वाला रास्ता चुना। करतलब खान चिंचवड़, तलेगाओं, और मालवली से होता हुआ लोहागढ़ की तरफ मुड़ा। ये वो घाटी है जिसे छोड़कर ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने कोंकण की तरफ से रेलवे लाइन बिछाई थी। उंबरखिंड की ये घाटी, कोंकण की तुलना में काफी संकरी है। खान तक जब ये खबर पहुंची कि शिवाजी और उसके सेना पेन नाम की जगह पर हैं, जो लोनावला से मुश्किल से पांच किलोमीटर होगी तो वो तेजी से फ़ौज लेकर जंगलों को पार करके शिवाजी को चौंकाने चला।


उंबरखिंड की पहाड़ियों पर शिवाजी अपने करीब 1000 मावला सैनिकों के साथ पहले ही तैयार थे! जबतक करतलब खान की फ़ौज घाटी के निचले हिस्से तक आई तबतक शिवाजी के सैनिक सामने की पहाड़ियों पर पत्थरों के साथ तैनात थे। अब आगे की तरफ से करतलब खान के तीस हजार सिपाहियों पर पत्थर बरस रहे थे, और पीछे हटने की कोशिश में उनपर तीर और बंदूकों की मार पड़ती थी। मुश्किल से तीन-चार घंटे चले युद्ध में ही करतलब खान की फौज़ का सफाया हो गया।


बची-खुची फौज़ के साथ जब करतलब खान ने आत्मसमर्पण किया तो उसके सैनिकों को मराठा सेना में शामिल होने का प्रस्ताव दिया गया था। वो हथियार, घोड़े या रसद लेकर वापस नहीं जा सकते थे। इस तरह 1000 मावला सैनिकों के साथ शिवाजी ने उंबरखिंड की लड़ाई में इस्लामिक हमलावरों को छठी का दूध याद दिलाया था।
~~~~~~~


उंबरखिंड की इस लड़ाई में याद रखने लायक शब्द है “मवला” जो थोड़े से बदले रूप में शायद आज भी चलता है। जब हम-आप किसी को गुंडा-मवाली कहते हैं तो वो “मवाली” शब्द कहाँ से आया? मवाला में रहने वालों को मवाली कहा जाता होगा क्या? क्या ऐसे ही हाल के दौर में “भक्त” शब्द को बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है, ये भी सोचने लायक होगा। पढ़कर समझने में दिक्कत होती हो तो तस्वीरें देखिये। बुर्कानशीं खातून कौन से “ब्राह्मणवाद” से पीड़ित हैं? उन्हें हाजीअली की दरगाह में जाने या कब्रिस्तानों में घुसने से कौन से ब्राह्मणों ने रोक रखा है?


बाकी सांस्कृतिक उपनिवेशवाद या अंगरेजी में कल्चरल इम्पेरिअलिस्म पढ़कर पता चलता है कि हज़ार साल से ऊपर के हमलों से उबर आये भारत से सेमेंटिक हमलावरों को दिक्कत तो होती ही होगी। जहाँ भी सेमेंटिक मजहबों ने हमला किया, वहां की संस्कृति को ये पूरी तरह लील गए। भारत में वो कामयाब क्यों नहीं हो पाए, ये सोचने लायक सवाल है। यहाँ नाकाम क्यों हुए होंगे?
✍🏻आनन्द कुमार


गुण्डा
यह शब्द किस भाषा बोली से है ?
व्याकरण क्या हो सकता है ?


गुण्ड शब्द का प्रयोग तुलसीबाबा ने भी किया-
गीतावली उत्तरकाण्ड ::-
झुण्ड-झुण्ड झूलन चलीं गजगामिनि बर नारि |
कुसुँभि चीर तनु सोहहीं, भूषन बिबिध सँवारि ||


पिकबयनी मृगलोचनी सारद ससि सम तुण्ड |
रामसुजस सब गावहीं सुसुर सुसारँग गुण्ड ||


सारङ्ग गुण्ड-मलार, सोरठ, सुहव सुघरनि बाजहीं |
बहु भाँति तान-तरङ्ग सुनि गन्धरब किन्नर लाजहीं ||


अति मचत, छूटत कुटिल कच, छबि अधिक सुन्दरि पावहीं |
पट उड़त, भूषन खसत, हँसि-हँसि अपर सखी झुलावहीं |

चालुक्य साम्राज्य के विजयादित्य के पुत्र विक्रमादित्य द्वितीय (733 से 745 ई.), की प्रथम पत्नी 'लोक महादेवी' ने 'पट्टलक' में विशाल शिव मंदिर (विरुपाक्षमहादेव मंदिर) का निर्माण करवाया था, जो अब 'विरुपाक्ष महादेव मंदिर' के नाम से प्रसिद्ध है।
इस विशाल मंदिर के
प्रधान शिल्पी 'आचार्य गुण्ड' थे, जिन्हें 'त्रिभुवनाचारि', 'आनिवारितचारि' तथा 'तेन्कणदिशासूत्रधारी' आदि उपाधियों से विभूषित किया गया था।
गुड् रक्षायाम् (पाणिनीय धातुपाठ ६/७९) = रक्षा करना या बनाना। या गुडि वेष्टने रक्षणे च (१०/५१)= घेरना, पीसना, चूर्ण करना, संरक्षण करना। अतः जो रक्षा करने केलिये पैसे लेता है वह गुण्डा है। पैसा नहीं मिलनेपर घेर कर चूर चूर कर देता है। इसी अर्थ में राक्षस शब्द है जिसका अर्थ रक्षक है, महापद्मनन्द का पुलिस मुख्य पद राक्षस कहा जाता था। रक्षा करने तक ठीक है पर उसके लिये पैसे वसूलना राक्षसी काम है। गुण्डा से अंग्रेजी का गून (Goon) शब्द है।
✍🏻अत्रि विक्रमार्क अन्तर्वेदी


Religare, शब्द से रिलीजन शब्द की उत्पत्ति हुई है ऐसा सूक्ष्म अध्ययन से निष्कर्ष निकलता है ।


Religare शब्द को हिन्दी वह जुआ समझिए जिससे दो बैल जोड़े जाते हैं ।


इसको और ध्यान से समझने के लिए बाईबिल को समझें । Religare को अंग्रेज़ी में Yoke भी कहते हैं ।


The yoke Jesus refers to is this: It is a kind of harness that is used for oxen to get them to pull a cart or farming equipment. Typically one yoke for two oxen. The best usage of yoke by Jesus is: Take my yoke upon you, and learn from me; for I am gentle and lowly in heart, and you will find rest for your souls.


अब सोचिए , और स्वंयम अनुभव करिए । आपका धर्म आपको नित्य शुद्ध मु्क्त बुद्ध और अद्वय बताता है और यहाँ पर आपको बैल बनाकर आपको जोतने की क़वायद हो रही है ।


आपको मुक्त और स्वतंत्र रहना है की जुतना है , यह आप की मर्ज़ी ।


“रिलीजन “


शब्द रिलिजन का मूल “ रेलेगेट “ होना है ।


रेलेगेशन को आप ऐसे समझिए , जैसे इंग्लैंड में प्रीमियर लीग की फ़ुटबॉल 20 टीमें खेलती है और सब आपस में होम और अवे खेलती है । अर्थात सब 38 मैच खेलते है । हर वर्ष सबसे कम प्वांइट बनाने वाली तीन टीमें , लोवर लीग में रेलिगेट हो जाती हैं और तीन टीमें , लोवर लीग से प्रमोट होकर प्रीमियर लीग में आ जाती है ।


अर्थात रेलेगेशन का अर्थ पतित करना या नीचा गिराना होता है । शब्द रीलिजन भी वही अर्थ रखता है , उनके लिखे हुए कोड को मानो अन्यथा दास बनकर रहो।


गूगल में इसको ( religion को ) फ़र्ज़ी या Fake तरीक़े समझाया है ।


और , हाँ , मालिक और दास ( slavery ) बक़ायदा आसमानी किताब में मान्य है । Mathew 18:23


बार


( कृपया वक़ील साहिबां लोग नाराज़ न हों )


भारत में आज भी वकील साहबों की संस्था को बार कहा जाता है । बार कौंसिल या बार एसोसिएशन नामक शब्द आपने हमने सुने ही हैं ।


तो यह बार क्या है ? 99% वकील साहबों के लिए यह जिज्ञासा का विषय ही नहीं है । बस नाम है तो है ।


लंदन की पुराना क्षेत्र जहाँ से शासन होता था उसे “ सिटी ऑव वेस्टमिनिस्टर” कहते थे , आज भी कहते हैं ।


और उसके ठीक बाहर मुख्य चर्च के पास का क्षेत्र वकीलों का था उसे “ टेम्पल” कहते थे आज भी कहते हैं । जब सिटि ऑव वेस्टमिनिस्टर का विस्तार करना हुआ तो वहाँ से टेम्पल तक लकड़ी के #बार ( खम्बे टाइप ) लगाए गए और यहीं से बार शब्द यहाँ के वकीलों से जुड़ गया ।


और भारत स्वतंत्र होने के बाद से लेकर आजतक वही बार पकड़े हुए है ।✍🏻राज शेखर तिवारी
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ