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अलग प्रभाव

अलग प्रभाव

मानता हूं,

इस दुनिया में-
हैं बहुत सारे पहाड़।
जहां विचरते हैं पशु,
कलरव करते पक्षी-
और गुंजता है दहाड।
ठीक वैसी उंचाई,
फैलाव और खाई,
पर वह नहीं हो सकता-
       कभी भी हिमालय।
       इतना तो है निश्चय।
मानता हूं,
इस दुनिया में-
एक से एक नदी है,
लंबी और चौड़ी-
और होगा भरा,
निर्मल जल गहरा,
पर वह नहीं हो सकती है-
कभी भी पतित पावनी गंगा।
जो कर देती है मन पवित्र,
और तन को चंगा।
       गुण,कर्म और स्वभाव।।
       रखता है अलग प्रभाव।।
        ---:भारतका एक ब्राह्मण.
          संजय कुमार मिश्र 'अणु'
           वलिदाद,अरवल(बिहार)
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