उचित साधना नियमित करने से आपातकाल में दैवी सहायता से हमारी रक्षा होगी !

‘महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय’ की ओर से ‘जलवायु परिवर्तन’ विषय पर
आध्यात्मिक शोध प्रबंध श्रीलंका के अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन में प्रस्तुत !
उचित साधना नियमित करने से आपातकाल में 
दैवी सहायता से हमारी रक्षा होगी !

        अत्यंत प्रतिकूल जलवायु से संबंधित घटनाएं तथा प्राकृतिक आपदाआें की संख्या दिन-प्रति-दिन बढ रही है ।  प्रत्येक कुछ महीनों के अंतराल से विश्‍व में कहीं--कहीं प्राकृतिक आपदा का विस्फोट होता दिखाई देता है । केरल में आई भीषण बाढ तथा कैलिफोर्नियाअमेरिका के जंगलों में लगी भीषण आगये निकट भूतकाल की घटनाआें के दो उदाहरण हैं । जलवायु में अनिष्टकारी परिवर्तन का कारण स्वयं मानव ही हैयह वैज्ञानिकों का मत है । परंतुयदि मानव उचित साधना आरंभ करेगा और उसे नियमित बढाता रहेगातो उसमें तथा आसपास के वातावरण में भी सात्त्विकता बढेगी । तबवातावरण में अनिष्ट परिवर्तन होने पर भी साधना करनेवालों को आगामी आपातकाल में दैवी सहायता मिलेगीजिससे उनकी रक्षा होगीयह विचार महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय के श्रीशॉन क्लार्क ने शोधनिबंध का वाचन करते समय व्यक्त किया । उन्होंने ‘जलवायु परिवर्तन और उस पर उपाय के विषय में आध्यात्मिक दृष्टिकोण’के विषय में शोधनिबंध प्रस्तुत किया । 19 मार्च 2021 को कोलंबोश्रीलंका में हुए ‘थे इंटरनॅशनल कॉन्फेरेन्स ऑन सस्टेनेबल डेव्हल्पमेंट’ इस अंतरराष्ट्रीय परिषद में यह शोधनिबंध प्रस्तुत किया गया । ‘ग्लोबल अ‍ॅकॅडेमीक रिसर्च इन्स्टीट्यूट’ ये इस परिषद के आयोजक थे । इस शोधनिबंध के लेखक परात्पर गुरु डॉआठवले तथा सहलेखक श्रीशॉन क्लार्क हैं ।

       उपरोक्त शोध निबंध महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय द्वारा वैज्ञानिक परिषद में प्रस्तुत किया गया 68 वा शोध निबंध था । इससे पूर्व विश्‍वविद्यालय में 15 राष्ट्रीय और 52 अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में शोध निबंध प्रस्तुत किए हैं । इनमें से  अंतरराष्ट्रीय परिषदों में विश्‍वविद्यालय को ‘सर्वोत्कृष्ट शोध निबंध’ का पुरस्कार प्राप्त हुआ है । 

      श्रीशॉन क्लार्क ने कहा, ‘‘किसी भी घटना की मूलभूत कारणमीमांसा का अध्ययन करते हुए उसका आध्यात्मिक स्तर पर भी अभ्यास होना आवश्यक होता है । जब जलवायु में स्वाभाविक अपेक्षा के विपरीत परिवर्तन होते हुए पाए जाते हैंतब उसके पीछे निश्‍चितरूप से आध्यात्मिक कारण होता है । पृथ्वी पर की सात्त्विकता कम होने पर और तामसिकता की वृद्धि होने पर मानव की अधोगति होती है और पृथ्वी पर साधना करनेवालों की कुल संख्या कम होती है । मानव के स्वभावदोष एवं अहं का प्रमाण बढकर उसके द्वारा पर्यावरण की अक्षम्य उपेक्षा होती है । संक्षेप मेंअधर्म में वृद्धि होती है । सूक्ष्म की शक्तिमान अनिष्ट शक्तियांनष्ट होते पर्यावरण का माध्यम बनाकर तमोगुण बढाती हैंइसके साथ ही मानव पर प्रतिकूल परिणाम करती हैं । जिसप्रकार धूल एवं धुएं का स्थूल स्तर पर प्रदूषण होता हैइसलिए हम प्रतिदिन स्वच्छता करते हैंउसीप्रकार अधर्माचरण के कारण होनेवाले रज-तम में वृद्धियह सूक्ष्म स्तर पर प्रदूषण हैं । प्रकृति वातावरण के इस सूक्ष्म रज-तम की स्वच्छता प्राकृतिक आपदाआें के माध्यमसे करती है । इस प्रक्रियाकी विस्तृत जानकारी ‘चरक संहिता’में दी है।

       ‘महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय’ने विश्‍वभर के 32 देशों में लगभग 1000 मिट्टी के नमूनों को लेकर उनके सूक्ष्म स्पंदनों का अभ्यास किया । यह अभ्यास आधुनिक वैज्ञानिक उपकरण एवं सूक्ष्म परिक्षण के माध्यम से किया गया है । इस अभ्यास में 80 प्रतिशत नमूनों में कष्टदायक स्पंदन दिखाई दिए । इनमें से मिट्टी के कुछ नमूने हमने एक ही स्थान से वर्ष 2018 और वर्ष 2019 में लिए थे । वैज्ञानिक उपकराण द्वारा किए परीक्षण में पाया भया कि केवल एक वर्ष की अवधि में इन नमूनों में स्थित नकारात्मक ऊर्जा में 100 से 500 प्रतिशत वृद्धि हुई । संक्षेप में पूरे संसार में (कुछ धार्मिक स्थलों में भीनकारात्मकता अत्यंत बढी हुई पाई गई ।

       अंत में ‘जलवायु के इस हानिकारक परिवर्तन के बारे में क्या कर सकते हैं ?’ इसके बार मेें श्रीशॉन क्लार्क  ने बतायाइन समस्याआें का मूलभूत कारण आध्यात्मिक होने के से जलवायु में सकारात्मक परिवर्तन एवं उनकी रक्षा के लिए उपाय भी मूलतः आध्यात्मिक स्तर पर होना आवश्यक हैं । संपूर्ण समाज योग्य साधना करने लगातो जलवायु के हानिकारक परिवर्तन और तीसरे महायुद्ध के भीषण संकट का सामना करना संभव होगा । ऐसा होने पर भी प्रत्यक्ष में हम केवल अपनी ही सहायता कर सकते हैं । इसके लिए सर्वोत्तम उपाय है साधना आरंभ करना अथवा जो साधना कर रहे हैंउसे बढाना । कालमहिमानुसार वर्तमानकाल के लिए नामजपसरल और प्रभावी उपाय है । संतों ने बताया है कि आध्यात्मिक दृष्टि से ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’सबसे उपयुक्त नामजप है ।
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