बरु बौराह बसह असबारा

बरु बौराह बसह असबारा


  जीवन का सबसे मंगल कार्य विवाह है ।विवाह सृष्टि का आधार है, विवाह भावी जीवन का मंगल - आधार है,  भोगेहुए यथार्थ के शेष संसार का दर्पण है विवाह, जन्म जन्मांतर से चली आ रही दो जीवात्माओं के एकिकृत भावना की पूजा है, विवाह प्रणय का आधार है। इसीलिए जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मांगलिक कार्यों में विवाह की गिनती होती है। शिवरात्रि भगवान शंकर और जगज्जननी अम्बा पार्वती के विवाह का दिन और पर्व है ।
     देवता अनादि होते हैं । विवाह आदि प्रसंग देवताओं के लिए भी मंगल कारक होता है ।सृष्टि में जहां तक देवताओं की कल्पना की गई है या उपस्थिति पाई गई है उनमें दो ही देवताओं को विवाह करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है ।एक -भगवान शंकर त्रिदेवों में से एक और दूसरे  अवतारों में से एक श्री राम प्रभु ।भगवान शंकर का विवाह विचित्र विवाह सा लगता है। जगज्जननी जगदंबा तपस्या करती हैं और उस तपस्या में भगवान शंकर के प्रति इतना अनुराग है कि जगज्जननी कहती हैं-जनम-जनम की रगड़ी हमारी।बरऊँ शम्भू न त रहऊँ कुमारी॥
मन तप में रम गया।यह तपस्या भी लम्बी चली-
संबत सहस मूल फल खाए।सागु खाई सत बरस गँबाए॥
कछु दिन भोजन बारि बतासा।
और आगे-बेल पाति महि परइ सुखाई।तिनि सहस सम्बत सोइ खाई ॥
ऊमहीं नाम तब भयऊ अपर्णा॥
  भगवान शंकर उस अनुराग को और बढ़ाना चाहते हैं-यह उत्सव देखिए भरि लोचन।
  लेकिन यह प्रेम ,अनुराग ,श्रद्धा एक जन्म का नहीं है। जगदंबा कहती हैं-
    तुम्हारे जान काम अब जारा ।अब लगी शंभू रहे सविकारा ॥
हमारे जान सदा शिव जोगी ।अज अनवद्य अकाम अभोगी ॥
    इस विवाह में कितनी मंगल कामना है ! महर्षि नारद कुंडली देखते हैं और लगन स्पष्ट करते हैं ।ब्रह्मा लगन धरते हैं- 
     सादर मुनिबर लिए बुलाई ॥
    सुदिन सुनखत सुघरी सोचाई ।वेगि वेदबिधि लगन धराई ॥
पत्री सप्त ऋषिन्ह सो दिन्ही।
 लग्न पत्री ब्रह्मा को दी गई ।विधिपूर्वक विवाह का मंगल कार्य आरंभ होता है-
सुमन बृष्टि नभ बाजन बाजे ।मंगल कलश दसहुँ दिसि साजे॥
  भगवान शिव दुल्हा बने ।बारात की तैयारी हो रही है ।दशों दिशाओं में मंगल ही मंगल है ।वे तो स्वयं ही महा मंगल हैं । इस मंगल वेला में बारात जाने के पूर्व दूल्हे का श्रृंगार होता है ।खूब सज- धज कर दूल्हा बारात जाता है ।क्योंकि, विवाह तो मंगल कार्य है और एक ही बार होता है ।दूल्हा अपने ससुराल में सब को आकर्षक दिखे, सब को दूल्हा के प्रति आकर्षण हो। इसके लिए तरह-तरह के सजने वाले आते हैं और दूल्हा का साज- शृंगार करते हैं ।यहां भगवान शंकर भी सजाए जा रहे हैं -
                                       सिवहिं संभूगन करहीं सिंगारा ।
                                         जटा मुकुट अहि मौर सँवारा ॥
                                           कुंडल कंकन पहिरे ब्याला ।
                                             तन विभूति पट केहरी छाला ॥
                                                ससि ललाट सुंदर सिर गंगा । 
                                                     नयन तीनि उपबीत भुजंगा ॥
                                       गरल कंठ उर नर -सिर माला ॥
                                           असिव वेस शिवधाम कृपाला ॥
                                              कर त्रिशूल अरु डमरू बिराजा । 
                                                     चले बसह  चढ़ि बाजहिं बाजा ॥
                शिव धाम भगवान सदाशिव विवाह करने जा रहे हैं ।दूल्हे का श्रृंगार किया गया। माथे पर मौर के बदले में बड़ा सा जटा बना, कान में कुंडल स्वर्ण का नहीं सर्प का पहनाया गया।  सारे शरीर में श्मशान की राख  का उबटन लिपटा गया। बाघ अंबर दूल्हे का वस्त्र बना ।बाजा  बजे और दूल्हा ऊपनी पसंदीदा सवारी पालकी नहीं बसहा बैल पर बारात चले ।क्या सुंदर दृश्य था! बारात भगवान शंकर के ससुराल पहुंची ।उधर  मैना अंबा बारात की अगवानी में दूल्हे के परीक्षण के लिए निकलीं । देवताओं ने इनके स्वभाव से अपने को अलग करते हुए अपनी व्यवस्था  अलग कर ली थी । अलग -अलग तरीके से बारात पहुंची ।
       बारात नगर भ्रमण के लिए निकली । मैना अंबा आरती का थाल लिए परीक्षण हेतु बारात की अगवानी में खड़ी थी ।सबसे पहले ब्रह्मा की सवारी गुजरी। पके -पके बाल चतुर्मुख देखकर अंबा ने पूछा- यह कौन है ।देवर्षि ने बताया- यह दूल्हे के बड़े भाई हैं ।समझी के रूप में बरात में उपस्थित हैं ।मैना अम्बा बहुत खुश हुईं ,जब समधी इतने सुन्दर हैं तो दुल्हा कितना सुन्दर होगा !उनकी सवारी आगे बढ़ी । कई देवताओं की सवारियों को देखकर बहुत खुश हुई ।
 दूल्हे की बरात में इतने सुंदर देवगन आए हैं  तो दूल्हा कैसा होगा !सबसे अंत में दूल्हे के पहले की सवारी विष्णु की सवारी थी ।उन्हें देख कर अति प्रसन्नता से सौंदर्य लावण्य पर खुश होते हुए अंबा ने पूछा- यह कौन है ?लगता है कि यहीं वर हैं ।देवर्षि ने बताया कि नहीं ,ये वर के भाई हैं। उनकी सवारी आगे बढ़ गई ।सबसे पीछे भय रव के साथ भूत पिशाच मगन मतवारे की सवारी आ रही थी ।उनके बीच में भूत भावन भगवान सदाशिव नावते गाते आ रहे थे। मैना ने अपनी आंखें बंद कर लीं।सखियों ने कहा कि देखो- देखो! कैसा बैल पर चढ़ा हुआ एक राक्षस आ रहा है। मैना ने कहा- नहीं नहीं! अरे बहुत डर लग रहा है ।मैं आंखें नहीं खोलूंगी जब तक नहीं जाएगा ।देवर्षि ने उन्हें समझाया -अरे वही तो दूल्हा है ।अब क्या था -आरती का थाल हाथ से गिर गया और विलाप करती हुई चिल्लाने लगी -
  चाहे जो भी हो ,मैं इस दूल्हे से अपनी लड़की का विवाह नहीं कर सकती।
                    सिव समाज जब देखन लागे ।बिडरी चले सब वाहन त्यागे॥
  बच्चे डरकर भाग गए।परिवार के लोगों ने पूछा तो बताया-
         जमकर धार किन्हौं बरियाता ॥ 
मैना ने अपना फैसला सुना दिया -
                               तुम सहित गिरि तें गिरौं पावक जरौं जलनिधि परौं।
                               घर जाउँ अपजस होउ जग जीवत बिवाह न हौं करौं ॥
  उमा ने समझाया,मैना अम्बा मान गईं,बिबाह हो गया ।
आज शिवरात्रि के अवसर पर मन कर्म वचन से भगवान शंकर को सर्व समर्पण है।
                                                                                     डॉ सच्चिदानन्द प्रेमी
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