जो शाम ढली तो मन भी ढल गया क्या,
जो शाम ढली तो मन भी ढल गया क्या,
जो हवा चली तो तन भी चल गया क्या।
कारवां चला है, रुका है, थका भी है,
कोई रुका है और कोई आगे निकल गया क्या।
उन्होंने तेजी दिखाई की मिलेंगे कहीं,
जिंदगी के चौराहे पर नया साथी मिल गया क्या।
ये जीवन, मन सांस चलने को पहिचानता है,
जो चलता रहा वो आगे सम्हल गया क्या।
वीरानगी थी के दीवानगी ने दस्तक दे दी,
अरसे बाद एक बार फिर दिल मेरा मचल गया क्या।
राजेश लखेरा जबलपुर।
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