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अपना कौन❓

अपना कौन❓

अपना बनकर अपनों ने रिश्ते को बदनाम किया है, 
रोशनी ने सदा इंसानियत को शर्मसार किया है। 
अंधेरा तो बदनाम है, कहाँ इतनी औकात, 
रोशनी ने ही हमेशा हमें गुमराह किया है। 
दुर्जनों के व्यवहार से सतर्क रहते हैं सभी, 
सज्जनों ने ही सज्जन्ता को बदनाम किया है । 
हर तरफ अंधकार की काली चादर फैली है, 
इंसान ही इंसानियत की राह रोके खड़ी है। 
गर कोई आगे बढ़ भी जाय किस्मत से, 
वो निकल न पाता है कभी तोहमत से। 
पहनकर सफेद कुर्ता लगाते काले चस्मे,  
भूल गए हैं मानवता की सारी रस्में । 
सदाचार ने सदा गरल का घूँट पिया है, 
बता क्या कोई कभी पूरी जिंदगी जिया है ? 
कभी कभी हार जाता हूँ इस जिंदगी से, 
संघर्ष कर रहा हूँ अपनों के लिए बुलंदी से । 
आखिर अपनों का सपना कब साकार होगा? 
बिसमाता में समता का कब आगाज होगा? 

गरीबी में जन्म लेना  अभिशाप है, 
या गरीबों का दोहन करना पाप है ।

✍️ डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश "
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