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और हो गई महंगी थाली

और हो गई महंगी थाली 

मिलकर सभी बजाओ ताली
बाबा जी की झोली खाली

सस्ती जान हुई कृषकों की 
और हो गई महंगी थाली 

बैठे शिकन लिए माथे पर 
किसने पगड़ी आज उछाली 

जड़े बहुत कमजोर मगर वो
घूम रहा है डाली-डाली

किसके जीवन की चिंता है
सरहद की सड़कें खुदवा ली

उजड़ रहा है चमन हमारा 
रखवाली करता है माली

बेशर्मी की चादर ओढ़े 
वो करता है सिर्फ जुगाली 

कुछ भी सुधर नहीं सकता है 
फितरत उसकी  देखी-भाली 

मौन रहो कुछ मत बोलो'जय'
वर्ना खाओगे तुम  गाली 
               **
02/02/2021
~जयराम जय 
पर्णिका'11/1,कृष्ण विहार आवास विकास, कल्याणपुर,कानपुर-208017(उप्र)
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