स्वास्थ्य बजट 2021-22: सही दिशा में उठाया गया कदम
डॉ राजीव कुमार, उपाध्यक्ष, नीति आयोग
उर्वशी प्रसाद, सार्वजनिक नीति विशेषज्ञ, नीति आयोग
स्वास्थ्य-देखभाल, दुर्भाग्यपूर्ण महामारी के कारण दैनिक जीवन के केंद्र में आ गया है। इस वैश्विक महामारी ने दुनिया भर में जीवन और आजीविका को तबाह कर दिया है। यद्यपि भारत ने अत्यधिक विकसित स्वास्थ्य प्रणालियों वाले देशों की तुलना में कोविड – 19 प्रबंधन पर अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन समाज और अर्थव्यवस्था पर महामारी के प्रकोप का प्रभाव निर्विवाद है। इस पृष्ठभूमि में, लोगों को केंद्रीय बजट 2021-22,विशेष रूप सेस्वास्थ्य क्षेत्र के लिए की जाने वाली घोषणाओं का बेसब्री से इंतजार था और लोगों ने इस विषय पर व्यापक चर्चा भी की है।
भारत सरकार द्वारा घोषित विभिन्न आत्मनिर्भर भारत
अभियान पैकेज के संदर्भ में बजट को देखना महत्वपूर्ण है, जिसमें स्वास्थ्य क्षेत्र
को मजबूत करने के लिए कई अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपाय भी शामिल किये गए हैं। दवाओं
और चिकित्सा उपकरणों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) की घोषणा की गई है। स्वदेशी
वैक्सीन के विकास और परीक्षण को बढ़ावा देने के लिए मिशन कोविड सुरक्षा भी शुरू की
गई है।लगभग 92 देशों ने कोविड – 19 वैक्सीन के लिए भारत से संपर्क किया है और इस
प्रकार दुनिया के वैक्सीन हब के रूप में देश की साख बढ़ी है। इसके अलावा, कोविड संकट के दौरान गरीब
और कमजोर लोगों के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने को ध्यान में रखते
हुए,भारत सरकार ने 800 मिलियन लोगों को निःशुल्क अनाज प्रदान करने के लिए
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज की शुरुआत की। ‘एक राष्ट्र, एक कार्ड’ योजना 17 राज्यों द्वारालागू की गई
है, ताकि लाभार्थियों, विशेष रूप से 130 मिलियन प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारों को
देश में कहीं से भी सब्सिडी वाले अनाज प्राप्त करने की सुविधा मिल सके। अन्य राज्य
इस योजना को लागू करने की प्रक्रिया में हैं।
स्वास्थ्य बजट को जल, स्वच्छता,पोषण और स्वच्छ हवा के लिए दिए गए आवंटनोंसे मजबूती दी गयीहै।कुछ
टिप्पणीकारों ने कहा है कि एक संयुक्त ‘स्वास्थ्य और आरोग्य’ बजट की प्रस्तुति की सराहना की जानी चाहिए, जो इन क्षेत्रों के बेहतर एकीकरण का मार्ग प्रशस्त करताहै। वास्तव में, यह एक स्वागत योग्य कदम है। राष्ट्रीय
स्वास्थ्य नीति (एनएचपी), 2017 स्वास्थ्य, जल और स्वच्छता के बीच घनिष्ठ संबंधों को रेखांकित करती है। इस वर्ष की आर्थिक
समीक्षा में यह भी माना गया है कि पानी, स्वच्छता और आवास जैसी आवश्यकताओं की पहुंच में
सुधार, स्वास्थ्य संकेतकों में प्रगति के साथ गहरे रूप
से जुड़े हैं।
नए लॉन्च किए गए जल जीवन मिशन (शहरी) के लिए पर्याप्त आवंटन
विशेष रूप से सराहनीय है, क्योंकि स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले पानी
की आपूर्ति को एक सकारात्मक कदम माना जाता है। 2019 में जॉन्स हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ द्वारा
जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रत्येक 100 में से लगभग एक भारतीय बच्चा डायरिया
या निमोनिया के कारण अपना पांचवां जन्मदिन मनाने से पहले ही मौत के शिकार हो जाता
है। स्वच्छ जल और स्वच्छता तक आसान पहुँचकी सुविधा का अभाब; डायरिया, पोलियो और मलेरिया जैसी
बीमारियों से सीधे रूप से जुड़ा है। इसके अलावा, आर्सेनिक जैसी भारी
धातुओं से दूषित जल, दिल की बीमारियों और
कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है।
बजट 2021 में एक अन्य महत्वपूर्ण
सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी घोषणाकी गयी है - सरकार का यह निर्णय कि देश भर में न्यूमोकोकल
वैक्सीन के कवरेज का विस्तार किया जायेगा। न्यूमोकोकल न्यूमोनिया 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मौत का एक प्रमुख कारण है। सार्वभौमिकता का दर्जा
मिलने के बाद,यह स्वदेशी रूप से विकसित
वैक्सीन सालाना 50,000लोगों की जान बचा सकती है। वित्त मंत्री ने 2021-22 के दौरान कोविड-19 क्सीनके लिए 35,000 करोड़ रुपये का विशेष आवंटन भी किया है, जिसे आवश्यकता पड़ने पर
बढ़ाया भी जा सकता है। भारत में6 मिलियन स्वास्थ्यकर्मियों
और अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों को कोविड-19 वैक्सीन की खुराक दी जा
चुकी है, जो दुनिया में सबसे तेज
टीकाकरण अभियान है।
प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना (पीएमएएनएसबीवाई) की शुरुआत करके पूंजीगत
व्यय को प्राथमिकता दी गई, जो एक बेहद जरूरी कदम था। ऐतिहासिक रूप से अभी तक पूंजीगत
व्यय कुल स्वास्थ्य बजट का बहुत ही छोटा प्रतिशत होता था और इसमें से अधिकतर
हिस्सा वेतन भुगतान तथा प्रशासनिक खर्चों में जाता था। इसके बाद पीएमएएनएसबीवाई
ने सभी स्तरों पर स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत किया है। इसके तहत समन्वित जन
स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं और विषाणु विज्ञान संस्थानों की स्थापना की गई है। यह
अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि विशेषज्ञ बार-बार बीमारियों की निगरानी और रोग निदान क्षमताओं को बढ़ाने
की जरूरत दोहराते रहे हैं, ताकि किसी भी महामारी का मुकाबला हम बेहतर तैयारी के साथ कर
सकें। इसके साथ ही पीएमएएनएसबीवाई के तहत स्वास्थ्य एवं देखभाल केन्द्रों का
विस्तार करने पर भी जोर दिया गया है, जिसमें वित्त आयोग द्वारा स्थानीय निकायों के
जरिये प्राथमिक स्वास्थ व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए दी गई 13,192 करोड़ रुपये की अनुदान सहायता भी शामिल है।
स्वास्थ्य बजट के संबंध में एक और ध्यान
देने की बात यह है कि इसमें आयुष्मान भारत पहल के अंग के रूप में सरकार द्वारा 2018 की दूसरी छमाही में शुरू की गई महत्वपूर्ण
योजना, प्रधानमंत्री जन आरोग्य
योजना (पीएम-जेएवाई) के लिए स्थिर आवंटन किया गया है। एक बहुत ही नई
योजना होने के बावजूद आर्थिक समीक्षा में अनुमान लगाया गया है कि जिन राज्यों में
2015-16 से 2019-20
के बीच पीएम-जेएवाई योजना लागू की गई, उनमें शिशु मृत्यु दर
में 20 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि जिन राज्यों ने इस
योजना को लागू नहीं किया, वहां इसमें मात्र 12 प्रतिशत की गिरावट ही दर्ज
की गई। इसलिए यह जानना महत्वपूर्ण है किइस महत्वकांक्षी योजना को लागू करने से
राज्यों की प्रशासन क्षमता में सुधार आया है।
स्वास्थ्य बजट का एक कम चर्चित पहलू है, आयुष मंत्रालय के लिए बजट
में करीब 40 प्रतिशत की वृद्धि।
महामारी के कारण एहतियाती देखभाल और समग्र स्वास्थ्य एवं देखभाल के प्रति लीगों
की रूचि बढ़ी है। कोविड बाद के परिदृश्य में खासतौर से तनाव कम करने और घातक
बीमारियों के प्रबंधन के लिए आयुर्वेद और योग को बढ़ावा देने के साथ-साथ समन्वित स्वास्थ्य देखभाल दृष्टिकोण के विकास पर ध्यान
दिया जा रहा है।
निस्संदेह स्वास्थ्य के क्षेत्र में बजट
आवंटन को आने वाले समय में काफी बढ़ाए जाने की जरूरत है। हमें यह भी सुनिश्चित
करना है कि बेहद महत्वपूर्ण और स्वास्थ्य से करीबी तौर पर जुड़े पोषण, जल एवं स्वच्छता जैसे
क्षेत्रों के लिए भी पर्याप्त कोष जुटाया जाए। लेकिन यह भी सत्य है कि स्वास्थ
पर खर्च को बढ़ाने की जिम्मेदारी सिर्फ केन्द्र पर ही नहीं, बल्कि राज्यों पर भी है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा 2017 के अनुसार भारत में स्वास्थ्य
देखभाल पर 66 प्रतिशत व्यय राज्यों
द्वारा किया जाता है। अत: यह जरूरी है कि राज्य, राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना 2017 और 15वें वित्त आयोग की
सिफारिशों के अनुरूप 2022 तक स्वास्थ्य पर व्यय
को बढ़ाकर अपने बजट का कम से कम 8 प्रतिशत करें।
पिछले कई वर्षों से स्वास्थ्य क्षेत्र सरकार
की कार्य सूची में प्राथमिकता पर है और सरकार ने इसके लिए अच्छी तरह सोच-विचार कर कुछ सुधारों की श्रृंखला लागू की है। हालांकि, अभी बहुत कुछ किया जाना
बाकी है, फिर भी केन्द्रीय बजट 2021-22 ने कोविड बाद के काल में स्वास्थ्य क्षेत्र
के लिए एक बहुत मजबूत नींव तैयार की है और देश सतत विकास लक्ष्य के एजेंडा के तहत
2030 तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लक्ष्य
को प्राप्त करने की ओर अग्रसर है।
घोषणा : इस आलेख में व्यक्त विचार, लेखक-द्वय के निजी विचार हैं।
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