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लौट के बुद्धु घर को आये।

लौट के बुद्धु घर को आये।


हमारी भारतीय चिकित्सा पद्धति जिसकी अवहेलना कर हमने अपने आपको माडर्न और घरेलू देशी चिकित्सा पद्धति का सेवन करने वालों को गँवार और गरीब की संज्ञा दे रखी थी।शरीर में थोड़ी सी भी परेशानी हो बिना देरी किये एक गोली अँग्रेजी की निगल लेना ही हमने स्वास्थ्य रक्षा का धर्म मान लिया था।आयुर्वेद एवम् होम्योपैथ चिकित्सा पद्धति का जड़ से खातमा करने की ओर हमारे कदम बढ़ रहे थे।सफल चिकित्सा के नाम पर जीवन को ही असफल बनाते जा रहे थे।एक बीमारी को ठीक करने की अँग्रेजी दवा खाकर एक हजार बीमारियों को आमंत्रण दे रहे थे।देशी चिकित्सा पद्धति का मजाक उड़ाने से हम भी पीछे रहना पसंद नहीं करते थे।गरम जल का सेवन पाप समझा जाने लगा था।फ्रीज का रखा खाना और चिल्ड वाटर हमारे फैसन में शामिल हो चुका था।घर हो या कार ,बस,ट्रेन,हवाई जहाज,सोने का कमरा हो या आगंतुक कक्ष,विद्यार्थियों के पढ़ने का कमरा हो या विद्यालय की कक्षा अथवा सरकारी कार्यालय हर जगह बिना ए.सी.एक पल भी व्यतीत करना अपने आपको आधुनिक कहलाने से परहेज मानते थे।अफसोस आज एक मृत वायरस ने हमारी सारी अकल मटियामेट कर दी।सफल चिकित्सा और आधुनिक जीवन पद्धति सबको भुला दिया।शर्म आनी चाहिये उन्हें जिन्होंने एक मुहिम के तहत भारतीय जीवन शैली को विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया था।कोरोना काल के आरंभ से ही कतिपय भारतीय चिकित्सापद्धति के जानकारों एवं योग विशेषज्ञों के द्वारा यह बराबर बताया गया था कि योग एवं आयुर्वेद तथा होम्योपैथ की औषधियों में ,देशी नुस्खों में किसी भी बीमारी को जड़ से समाप्त करने की क्षमता है।हम यदि इन्हें अपनायें तो ये कोरोना हमारा बाल भी बाँका नहीं कर पायेगा।किन्तु तब तथाकथित ज्ञानान्धों के द्वारा इसे अफवाह की बात कहकर मजाक में उड़ा दिया गया।घर घर यह प्रचार किया गया कि आप योग्य अँग्रेजी चिकित्सक से ही सलाह लें उनके द्वारा बताये अँग्रेजी दवाओं का ही सेवन करें।परिणाम आज सामने है।लाखों लोगों की जान लेने के बाद अब वापस बुद्धु लौट के घर को आये।धन्य कोरोना आज यदि तुम नहीं आते तो शायद हमारी विलुप्त होती चिकित्सा पद्धति भी कभी वापस नहीं आती।हम एक बार अँग्रेजी शासकों के गुलाम रह चुके थे अब पुनःअँग्रेजी दवाओं के गुलाम होकर रहने को बेताब थे।न सिर्फ दवा अपितु हमारी भारतीय जीवनशैली ही आधुनिकता और मौडर्निटी के नाम पर समाप्त हो जाती।हम तेरे शुक्रगुजार हैं जिसने हमें आज हमीं से मिलाने में सहयोग किया।
..........मनोज कुमार मिश्र"पद्मनाभ"।
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