मन्द हो रहा सेल

धरने और प्रदर्शन जैसे
मनोरंजनी खेल
अपने-अपने स्वार्थ बांट लें
कुछ से कर लें मेल।।
सौदागरी मुखौटा, चिंता
मृषा-मृषा का खेल
सरल प्रपंचित आशा बंचित
फिर भी स्वर समवेत।।
जले कहां तक सूखी बाती
लिए उधारी तेल।।
माटी के सपनों के कांटे
किसने बोये किसने काटे
खिलते हॅ॑सते फसलों के घर
किसने साटे किसने छांटें ।।
इस गणना की हदबंदी में
सभी हो गये फेल ।।
दूर खड़ा हो ताव दे रहा
मजे मजे का भाव दे रहा
जो है घाघ ,बाघ बन बैठा
क्षीण सियासी नाव खे रहा।।
बोपदेव का समय चुक गया
मन्द हो रहा सेल।।
रामकृष्ण/गया
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