नहीं चाहिए ऐसी कविता
-- वेद प्रकाश तिवारी
मै नहीं लिखना चाहता
ऐसी कविता जिसमें बात हो
कजरारे नयनों की, घटाओं सी जुल्फों की
चोली की, चिलमन की
चितवन की, श्रृंगार की
प्रेमी और प्रेमिका के
मान और मनुहार की
जिसमें प्रेमी तोड़ता हो
प्रेमिका के लिए चाँद और तारे
मैं नहीं लिखना चाहता ऐसी कविता
जिसमें बात हो देवर संग
भाभी की ठिठोली की
महंगे कपड़े, बड़ी गाडियाँ
बंगले और कोठी की
मैं नहीं लिखना चाहता ऐसी कविता
जिसमें बात हो
धर्म और मजहब के नाम पर
अराजकता फैलाने की
अपनी वतन परस्ती
भूल जाने की
सामाजिक कुकृत्यों पर
मौन हो जाने की
देश के टुकड़े करने
और उसे मिटाने की
चाटुकरता की, स्वार्थ के लिए
जीवन मूल्यों को रख कर ताख पर
धन कुबेर हो जाने की
मैं लिखना चाहता हूँ ऐसी कविता
जिसमें बात हो
खेत की, खलिहान की
नारी के आत्मसम्मान की
बेरोजगारी, अशिक्षा, भ्रस्टाचार से
लड़ते आज़ाद हिंदुस्तान की
सरहद पर खड़े
सेना के जवान की
शौर्य, साहस और
उनके बलिदान की
सामाजिक विषमताओं से ऊपर उठकर
बनते नये हिंदुस्तान की
विवेकानंद का आचरण
और राम कृष्ण के ध्यान की
महाशक्ति के रूप में उभरते
भारत महान की
जिनके दिलों में जिंदा है जमीर
उनके धर्म और ईमान की
मैं लिखना चाहता हूँ ऐसी कविता
जिसमें बात हो
भगत, सुभाष, हामिद
और कलाम की
निराला, तुलसी, कबीर
और रसखान की
मैं लिखना चाहता हूँ ऐसी कविता
जिसमें मानवता बचाने की
हर क्षण हो कोशिश
मैं जीता रहूँ
प्रकृति के साथ
मेरे प्राणों में बसती रहे कविता
मैं चाहता हूँ मेरी लेखनी चले
तो उनके लिए
जिनकी सांसें खामोशी के जंगल में
रह गई हैं घुँटकर
मैं चाहता हूँ लिखना उनके लिए
जो रह गये हैं यात्रा में सबसे पीछे
यदि मेरी कविता गुजरती है
उनकी पीड़ा को छूकर
तो मैं भी बचा रहूंगा
कविता की मर्यादा के साथ ।
-- वेद प्रकाश तिवारी
देवरिया (उत्तर प्रदेश)
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