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उल्टे टंगे हैं (कविता)

उल्टे टंगे हैं (कविता)

     --:भारतका एक ब्राह्मण.
       संजय कुमार मिश्र 'अणु'


सीधी-साधी दुनिया में,
आज भी बहुत सारे लोग-
उल्टे टंगे हैं।।
       कहता हैं मैं ठीक हूं,
       लोग गलत हैं-
       जो मेरी बात नहीं समझते,
       दिन के अंधे हैं।।
सीधा सा पेड़-
और सीधी सी टहनी,
कौन कहे बादुर को-
उल्टी तेरी रहनी,
व्यवहार कौन कहे-
सोच हीं गंदे हैं।।
      जो कुछ नहीं करता-
      वह बुराई करता है,
      सीधा सरल मन-
      चतुराई करता है,
      जिसकी खोपड़ी उल्टी-
      बस बदन नंगे हैं।।
जो लटका है-
वह राह भटका है,
कोई राह दिखेगा-
सोचकर अटका है-
अजब हाल के-
गजब धंधे हैं।।
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वलिदाद अरवल (बिहार)804402.
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