अरवल जिला का सांस्कृतिक दर्शन
भारतीय संस्कृति एवं विरासत सभ्यता अरवल जिले के 637 वर्ग कि. मी. क्षेत्रफ़ल में फैली हुई है । अरवल जिले का क्षेत्र 25:00 से 25:15 उतरी अकांक्ष एवं 84:70 से 85:15 पूर्वी देशांतर पर अवस्थित हैं ।20 अगस्त 2001 में समुद्रतल से 115 मीटर की ऊंचाई तथा पटना से 65 कि. मी. की दूरी एवं जहानाबाद से 35 कि. मि. पश्चिम अरवल जिले का दर्जा प्राप्त है। मगही और हिंदी भाषी अरवल जिले में 05 प्रखण्ड,316 राजस्व गांव में 18 बेचिरागी गांव , 65 पंचायत, में 648994 ग्रामीण आबादी एवं 51859 आवादी 118222 मकानों में निवास करते हैं। करपी, अरवल, कुर्था, कलेर तथा सोनभद्र बंशिसुर्यपुर प्रखण्ड में 11 थाने के लोग 33082.83 हेक्टयर सिंचित भूमि,845.10 हेक्टयर बंजर भूमि तथा कृषि योग भूमि 49520.40 हेक्टयर में कृषि कार्य करते हैं तथा अरवल और कूर्था विधान सभा में 21 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र,21 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तथा सदर अस्पताल है। अरवल जिले की साक्षरता 56.85 प्रतिशत है। यहां की प्रमुख नदियां सोन नद और पुनपुन नदी और वैदिक नदी हिरण्यबाहू नदी का अवशेष (बह) है। पर्यटन के दृष्टिकोण से प्राचीन विरासत शाक्तधर्म का स्थल करपी का जगदम्बा स्थान मंदिर में महाभारत कालीन मूर्तियां जैसे माता जगदम्बा, चतुर्भुज, शिवपार्वती विहार, अनेक शिव लिंग मूर्तियां , मदसरवा (मधुश्रवा) में ऋषि च्यवन द्वारा स्थापित च्यवनेश्चर शिवलिंग , वधुश्रवा ऋषि द्वारा वधुसरोवर , पंतित पुनपुन नदी के तट पर कुरुवंशियों के पांडव द्वारा स्थापित शिव लिंग , किंजर के पुनपुन नदी के पूर्वी तट पर स्थित शिवलिंग एवं मंदिर , लारी का शिवलिंग, सती स्थान, गढ़, नादि का शिवलिंग, तेरा का सहत्रलिंगी शिवलिंग , रामपुर चाय का पंचलिगी शिव लिंग, खटांगी का सूर्य मंदिर में स्थित भगवान् सूर्य मूर्ति , कागजी महल्ला में शिवमन्दिर में पाल कालीन शिव लिंग तथा अरवल के गरीबा स्थान मंदिर में शिवलिंग प्राचीन काल की है, वहीं अरवल का सोन नद और सोन नहर के मध्य सोन नद के किनारे 695 हिजरी संवत में आफगिस्तान के कंतुर निवासी भ्रमणकारी सूफी संत शमसुद्दीन अहमद उर्फ शाह सुफैद सम्मन पिया अर्वली का मजार सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है।
प्राचीन काल में सोन प्रदेश का राजा शर्याती , कारूष प्रदेश का राजा करूष , आलवी प्रदेश का राजा हैहय आलवी यक्ष , ऋषियों में च्यवन, वधुश्रवा, मधुश्रवा, मधुक्षंदा , उर्वेला, नदी , वत्स का कर्म एवं जन्म भूमि रहा है।
अरवल जिले का क्षेत्र शैवधर्म , शाक्त धर्म, सौर धर्म एवं वैष्णव धर्म की परंपरा कायम हुई तथा शैवधर्म में भगवान् शिव की पूजा एवं आराधना के लिए शिवमन्दिर के गर्भ गृह में शिव लिंग की स्थापना की गई । 16 वें द्वापर युग में ऋषि च्यवन 22 वें द्वापर युग में मधु, 24वें द्वापर युग में यक्ष का शासन था वहीं वधुश्रवा , दाधीच, मधूछंदा ऋषि, सारस्वत, वत्स ऋषि का कर्म स्थल था। दैत्य राज पुलोमा ने अपने नाम पर पुलोम राजधानी की स्थापना कर भगवान् शिव लिंग की स्थापना की थी ।बाद में पूलोम स्थल को पुंदिल, पोंदिल वर्तमान में बड़कागांव कहा जाता हैं।
16 जनवरी 1913 ई. में जन्मे फखरपुर का पंडित महिपाल मिश्रा की भार्या अधिकारिणी देवी के गर्भ से चक्रधर मिश्र ने राधा बाबा के रूप में विश्व को आध्यात्म की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरणा दी। वहीं खाभैनी के जीवधर सिह ने 1857 ई. में आजादी की प्रथम लड़ाई में महत्वपूर्ण कार्य किया है। मझियवां के किसान आंदोलन के प्रथम प्रणेता पंडित यदुनंदन शर्मा थे। राजा हर्षवर्धन ने 606 ई. में बाण भट्ट दरवारी कवि थे जिन्होंने कादंबरी एवं हर्ष चरित लिखा था। उस समय हर्षवर्धन के शासन काल में भगवान् शिव एवम् भगवान् सूर्य प्रमुख देव की उपासना पर सक्रियता थी। हर्ष के 643 ई. में चीनी यात्री हुएनसांग आकर मगध की चर्चा की है। 1840 ई में इंडिगो फैक्ट्रीज की स्थापना सलॉनो तथा स्पेनिश परिवार ने की थी। सोलॉनो परिवार के डॉन रांफैल सोलॉनों ने अरवल में इंडिगो फैक्ट्रीज का मुख्यालय बनाया था।
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