
मनोज कुमार सिंह
‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’ को देश भर में मछली पालन को बढ़ाने के लिए शुरू किया गया है। अगले 5 सालों में इस योजना के तहत 20,050 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। मछली पालन के क्षेत्र में आजादी के बाद से अब तक का यह सबसे बड़ा निवेश माना जा रहा है। कोरोना संकट ने भारतीय अर्थव्यवस्था के पहिये को धीमा कर दिया है और एक बड़ी आबादी के समक्ष रोजी-रोटी का संकट उत्पन्न हो गया है। इस संकट काल में गांव न सिर्फ प्रवासियों का सहारा बने, बल्कि सरकार की मुश्किलों को भी हल किया। केंद्र सरकार ने उदारीकरण के दौर में आर्थिकी को मजबूत करने के लिए गांवों पर जो भरोसा जताया है, उससे कृषि प्रधान देश में उम्मीद की किरण लौटी है।
केंद्र
की नरेंद्र मोदी सरकार ने हाल ही में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए
‘आत्मनिर्भर भारत योजना’
के
तहत आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी। गांवों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भारत सरकार
ने गांव के पारम्परिक आर्थिक स्रोतों को पुनर्जीवित करने की योजना को अमलीजामा पहनाने
की शुरुआत कर दी है। ‘प्रधानमंत्री
मत्स्य सम्पदा योजना’ इसी
की एक कड़ी है।
प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने 10 सितम्बर
2020 को 21 राज्यों
में इस योजना का शुभारम्भ किया। इस योजना के तहत पीएम ने
1700 करोड़ रुपये की अलग-अलग
परियोजनाओं की शुरुआत की। केंद्र सरकार ने 21वीं
सदी के आत्मनिर्भर, सशक्त
और समृद्ध गांव बनाने के लिए हरित क्रांति के आलावा
‘नीली क्रांति’,
‘श्वेत क्रांति’
और
‘मीठी क्रांति’
की
रूपरेखा तय की है। ‘प्रधानमंत्री
मत्स्य सम्पदा योजना’ की
शुरुआत करते प्रधानमंत्री के कथन ने नई उर्जा का संचार किया है। बकौल पीएम मोदी
‘हमारे गांव
21वीं सदी के भारत,
आत्मनिर्भर
भारत की ताकत बनें, ऊर्जा
बनें। कोशिश ये है कि अब इस सदी में ‘ब्लू
रिवोल्यूशन’
यानि मछली पालन से जुड़े काम,
‘व्हाइट रिवोल्यूशन’ यानि डेयरी से जुड़े
काम और ‘स्वीट रिवोल्यूशन’ यानि शहद उत्पादन से
जुड़े काम, हमारे
गांवों को और समृद्ध और सशक्त करे’।
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर बनाई गई है।
21 राज्यों में शुरू हुई इस योजना में अगले
4-5 वर्षों में इस पर
20 हज़ार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए जाएंगे। देश
के हर हिस्से में, विशेषतौर
पर समंदर और नदी किनारे बसे क्षेत्रों में मछली के व्यापार-कारोबार
को ध्यान में रखते हुए संभवतः पहली बार देश में इतनी बड़ी और व्यापक
योजना बनाई गई है। इससे मछली पालन करनेवाले राज्यों बिहार सहित झारखंड,
आंध्र
प्रदेश, गुजरात,
केरल,
तमिलनाडु,
महाराष्ट्र,
उत्तर
प्रदेश और कर्नाटक में रोजगार के व्यापक अवसर सृजित होंगे।
इस
योजना का मकसद किसानों की आय दोगुनी करने के सरकार के लक्ष्य के तहत मत्स्यपालन क्षेत्र
का निर्यात बढ़ाना है। पीएम मोदी ने 'ई-गोपाल'
एप
की भी शुरूआत की। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से मछली उत्पादन को
150 लाख टन से बढ़ाकर
220 लाख टन तक करना है। इस योजना के अंतर्गत
20,050 करोड़ रुपए का निवेश मत्स्य क्षेत्र
में होने वाला सबसे अधिक निवेश है। इसमें से लगभग
12,340 करोड़ रुपए का निवेश समुद्री,
अंतर्देशीय
मत्स्य पालन और जलीय कृषि में लाभार्थी केंद्रित गतिविधियों पर तथा
7,710 करोड़ रुपए का निवेश फिशरीज़ इन्फ्रास्ट्रक्चर के
लिये प्रस्तावित है। भारत सरकार का लक्ष्य वर्ष
2024-25 तक मत्स्य उत्पादन में अतिरिक्त
70 लाख टन की वृद्धि करना, वर्ष
2024-25 तक मत्स्य निर्यात से होने वाली आय को
1,00,000 करोड़ रुपए तक करना,
मछुआरों
और मत्स्य किसानों की आय को दोगुनी करना, पैदावार
के बाद होने वाले नुकसान को 20-25 प्रतिशत
से घटाकर 10 प्रतिशत
करना और मत्स्य पालन क्षेत्र और सहायक गतिविधियों में
55 लाख प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर पैदा
करना है।
इस योजना का
उद्देश्य है- आवश्यकतानुरूप
निवेश करते हुए मत्स्य समूहों और क्षेत्रों का निर्माण । मुख्य रूप से रोज़गार सृजन
गतिविधियों जैसे समुद्री शैवाल और सजावटी मछली की खेती पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
यह मछलियों की गुणवत्ता वाली प्रजातियों की नस्ल तैयार करने तथा उनकी विभिन्न प्रजातियां
विकसित करने, महत्त्वपूर्ण
बुनियादी ढांचे के विकास और विपणन नेटवर्क आदि पर विशेष ध्यान केंद्रित करेगा। नीली
क्रांति योजना की उपलब्धियों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से कई नए हस्तक्षेपों की परिकल्पना
की गई है। इसमें मछली पकड़ने के जहाजों का बीमा,
मछली
पकड़ने वाले जहाज़ों-नावों
के उन्नयन हेतु सहायता, बायो-टॉयलेट्स, लवण-क्षारीय
क्षेत्रों में जलीय कृषि, मत्स्य
पालन और जलीय कृषि स्टार्ट-अप्स,
इन्क्यूबेटर्स,
एक्वाटिक
प्रयोगशालाओं के नेटवर्क और उनकी सुविधाओं का विस्तार,
ई-ट्रेडिंग-विपणन,
मत्स्य
प्रबंधन योजना आदि शामिल हैं। इस योजना के तहत मत्स्यपालन क्षेत्र के विकास को गति
देने के लिए विभिन्न आयामों पर भी सरकार ने फोकस किया है। सरकार ने मत्स्य किसानों
के लिये गुणवत्ता और सस्ती दर पर मत्स्य बीज की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित कर मत्स्य
उत्पादन और उसकी उत्पादकता बढ़ाने में मदद करने और मछलियों के रोग निदान के साथ-साथ
पानी और मिट्टी की परीक्षण सुविधाओं की आवश्यकता को भी पूरा करने के इंतजाम किये हैं।
इसके लिए एक्वाटिक डिजीज रेफरल प्रयोगशाला की शुरुआत की गई है। वहीँ,
किसानों
के प्रत्यक्ष उपयोग के लिये एक समग्र नस्ल सुधार,
बाज़ार
और सूचना पोर्टल ‘ई-गोपाला
एप’ की शुरुआत की गई है।
सूचना क्रांति
के दौर में देश में पशुधन के सभी रूपों (वीर्य,
भ्रूण,
आदि)
में
रोग मुक्त जीवाणु को खरीदना और बेचना, गुणवत्तापूर्ण प्रजनन
सेवाओं की उपलब्धता (कृत्रिम
गर्भाधान, पशु
प्राथमिक चिकित्सा, टीकाकरण,
उपचार
आदि) और पशु पोषण के लिये
किसानों का मार्गदर्शन करने, उचित दवा का उपयोग
करते हुए जानवरों का उपचार आदि की जानकारी देने,
पशु
किसानों को अलर्ट भेजने (टीकाकरण,
गर्भावस्था
निदान आदि के लिये नियत तारीख पर) किसानों
को क्षेत्र में विभिन्न सरकारी योजनाओं और अभियानों के बारे में सूचित करने हेतु
‘ई-गोपाला
एप’ सूचना प्रदाता और मार्गदर्शक
के रूप में समाधान प्रदान करेगा।
इस योजना के
तहत बिहार के पूर्णिया में ‘राष्ट्रीय
गोकुल मिशन’ के
तहत स्थापित की गई अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त सीमेन स्टेशन का शुभारम्भ किया गया
है। यह सरकारी क्षेत्र के सबसे बड़े सीमेन स्टेशन में से एक है,
जिसकी
उत्पादन क्षमता 50 लाख
सीमेन नमूना प्रति वर्ष है। यह बिहार की स्वदेशी नस्लों के विकास एवं संरक्षण को नया
आयाम तो देगा ही, पूर्वी
एवं पूर्वोत्तर राज्यों की पशु वीर्य की मांग को भी पूरा करेगा। इस योजना के तहत शत-प्रतिशत
अनुदान सहायता के जरिये देश भर में कुल 30 ईटीटी
और आईवीएफ प्रयोगशालाएं स्थापित की जा रही हैं। ये लैब देशी नस्लों के बेहतरीन पशुओं
का वंश बढ़ाने और इस प्रकार दूध उत्पादन एवं उत्पादकता को कई गुना बढ़ाने की दृष्टि
से अत्यंत महत्त्वपूर्ण साबित होंगी। कृत्रिम गर्भाधान में लिंग पृथक्कृत वीर्य का
उपयोग कर प्रजनन क्षमता बढ़ाना भी इस योजना के उद्देश्य में शामिल है।

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