शहीद की विधवा और तीज का पर्व ।
आया तीज इसबार भी आया ।
तीज सुहागन हित आता है
इस विधवा के द्वार भी आया ।।
हाथों में हैं नहीं चूड़ियाँ नहीं कलाई में कंगन ।
मांग में अब सिंदूर नहीं है नहीं भाल बिंदिया-चन्दन ।।
सजता था जो हार गले में
मंगलसूत्र उतार भी आया ।
आया तीज इसबार भी आया
इस विधवा के द्वार भी आया ।।
मेंहदी और महाबर का अब नहीं यहाँ है कोई अर्थ ।
साज और श्रृंगार की वस्तु रह गइ धरी हुई सब ब्यर्थ ।।
अभी चिता की राख बुझी न
लेकर हाहाकार भी आया ।
आया तीज इसबार भी आया
इस विधवा के द्वार भी आया ।।
सिमटी सिकुड़ी पड़ी हुई है धरती में यह आज गड़ी ।
बहते लोर निरन्तर आँखों से आँसू की लगी झड़ी ।।
उठा सहारा जीवन का अब
असमय बोझ अपार भी आया ।
आया तीज इसबार भी आया
इस विधवा के द्वार भी आया ।।
कवि चितरंजन 'चैनपुरा'
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