स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएँ लिख रही आत्म निर्भरता की इबारत
-सुनिता कुमारी 'गुंजन'
स्वयं सहायता समूह महिला सशक्तिकरण का जरिया बन कर हमारे समाज की महिलाओं को रोजगार पाने और उन्हें आत्म निर्भर बनने में सहायक रहे हैं जिससे ये महिलाएँ आए दिन अपनी सफलता की नई इबारत लिख रही हैं। समूह में जुड़कर एक ओर जहाँ इन महिलाओं में बचत की आदत बनती है वही दूसरी ओर जरूरत पड़ने पर समूह तथा बैंक के माध्यम से आसानी से ऋण भी मिल जाती है जिससे ये अपना रोजगार शुरू कर पाती हैं। एक बार रोजगार शुरू हो जाने और ऋण के पैसे को चुकता कर देने पर ये फिर से नया ऋण लेकर अपना रोजगार बढाती हैं या फिर नया रोजगार शुरू भी करती हैं। आज हमारे बीच कई ऐसी महिलाएँ हैं जनकी सफलता की कहानी को सुनकर पता चलता है कि समूह से जुड़ कर कैसे इन्होंने अपने जीवन में बदलाव लाया है और आत्म निर्भर बन कर समाज की अन्य महिलाओं को रास्ता दिखाया है।
आइए मिलते हैं एक ऐसी ही सशक्त महिला लक्षमीना देवी से जो बिहार के गोपालगंज जिले के बैकुण्ठपुर प्रखंड के हकाम गांव की रहने वाली हैं और 'साई जीवीका समूह' की एक सदस्य हैं। पहले तो वो अपनी कहानी बताने में सकुचाती हैं जैसा कि आमतौर पर गाँव की भोली - भाली महिलाओं के साथ देखने को मिलता है परन्तु जब बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ता है तो वो बताना शुरू करती हैं कि कैसे कुछ वर्ष पहले तक उनकी ज़िन्दगी गरीबी और कर्ज के दलदल में दबी थी और समूह से जुड़कर वो कैसे आत्म निर्भर बन पाने में सफलता पाई हैं तथा अपने परिवार को गरीबी के दंश से बाहर निकाल पाने में सफल हो सकी हैं। वो बताती हैं कि उनदिनों उनका परिवार अत्यंत अभावग्रस्त जीवन जी रहा था। उनके पास न तो कोई काम था न ही परिवार के पालन पोषण के लिए कोई रोजगार का साधन जिससे कोई आमदनी हो सके। तब गाँव की ही एक महिला के समझाने पर वो समूह से जुड़ी जिसके बाद उनके जीवन में बदलाव आने शुरू हुए। अपने समूह के विषय में बताते हुए वो कहती हैं कि उनके समूह में बीस सदस्य हैं जिनमें से एक अध्यक्ष, एक सचिव और एक कोषाध्यक्ष है। समूह का प्रत्येक सदस्य प्रत्येक सप्ताह अपनी बचत का दस रूपया समूह के कोषाध्यक्ष के पास जमा करता है। वो आगे कहती हैं कि समूह से जुड़कर उनके सपनों को पंख लग गये। उन्होंने दूध का उत्पाद कर उसके उत्पाद को बाजार में बेचने के लिए मवेशी पालन का काम शुरू करने को सोचा पर इसके लिए पैसों कि जरूरत थी जो उनके पास नहीं थे। तब उन्होंने अपने समूह से लगभग तीन वर्ष पहले दस हजार रूपया दो रूपया सैकड़ा मासिक ब्याज दर पर ऋण लिया और इन पैसो से भैस खरीदा। उनकी मेहनत रंग लाई। उन्होनें दूध और उसके अन्य उत्पादों को बेच कर ऋण की सारी किस्तें समय पूरा होने से पहले ही चुका दिया और अपने परिवार को आर्थिक संकट से मुक्त कराने में भी सफलता पाई। इस ऋण को चुका देने के बाद वो पुनः बीस हजार रूपये का एक ऋण एक रूपया सैकड़ा मासिक दर पर लेकर अपने दुग्ध व्यवसाय को बढ़ा रही हैं और समय पर ऋण की किस्त भी जमा कर रही हैं। आज उनके पास दो और भैसें हैं। जो उनकी आर्थिक तरक्की की साधन बनी हुई हैं। इनके दुग्ध उत्पाद को बेच कर लछमीना को महीने में लगभग पन्द्रह हजार रूपये का मुनाफ़ा हो रहा है। इन पैसों से घर चलाने के साथ - साथ अपने पति के कृषि कार्य में भी वो सहयोग कर पाती हैं और अपने दो बच्चों की अच्छी परवरिश कर पाने में सक्षम हो रही हैं।
गीता देवी एक अन्य सशक्त महिला हैं जो बिहार के सारण जिले की रिविलगंज प्रखंड के मैनपुरा गांव की रहने वाली हैं। उनकी सफलता की कहानी भी संघर्षों से भरी है। अपनी आत्म निर्भरता की कहानी सुनाते हुए कहती हैं कि तीन - चार वर्ष पहले तक उनका और उनके परिवार का जीवन अनेक कठिनाईयों से भरा हुआ था। कोई काम या रोजगार के साधन नहीं होने के कारण आमदनी का कोई जरिया नहीं था और परिवार गरीबी में किसी तरह से गुजर बसर करने को मजबूर था। तब वो कम्यूनिटी मोबलाइजर के समझाने पर 'शांति स्वयं सहायता समूह' की सदस्य बनी। उनके समूह में बारह महिलाएँ हैं। जो हर सप्ताह अपनी बचत का दस रूपये समूह के कोषाध्यक्ष के पास जमा करती हैं। गीता आगे कहती हैं कि 2017 में उन्होंने अपने समूह से तीन हजार रूपया ऋण लिया जिसे पन्द्रह किस्तों में पूरा करना था। उन्होंने इन पैसों से धान की खेती की जिसके पैदावार से उनके परिवार के भोजन की समस्या समाप्त हो गई तथा साथ ही पैदावार के कुछ हिस्से को बेचकर उन्होंने नई फसलें उगाई । कृषि से प्राप्त आय से उन्होंने ऋण को पन्द्रह किस्तों के बदले दस किस्तों में ही चुका दिया । गीता अब भी खेती करती हैं और कृषि उत्पाद से अपने परिवार का भरण पोषण करती हैं साथ ही अतिरिक्त कृषि उत्पादों को बाज़ार में बेच अच्छा मुनाफा भी कमाती हैं। 2019 के दिसम्बर माह में गीता एक बार फिर समूह के माध्यम से SBI बैंक से 40000/- का ऋण एक रूपया सैकड़ा मासिक ब्याज दर पर लेकर गाड़ी निकलवाती हैं। जिसे उनके पति चलाते हैं । इससे जो आय होती है उससे गीता बैंक का किस्त जमा करती हैं साथ ही पांच से सात हजार रूपये का मासिक लाभ भी प्राप्त करती हैं जो परिवार के अन्य कार्यों में खर्च होता है। इस ऋण को पन्द्रह किस्तों में जमा करना है। जिसके पांच किस्त को गीता जमा कर चुकी हैं परंतु लाॅक डाउन में बाज़ार बंद होने के कारण गाड़ी का चलना बंद हो गया था। इस कारण वो दो किस्तें नहीं भर पाई हैं पर वो कहती हैं कि अब धीरे धीरे बाज़ार के खुल रहे हैं तो उम्मीद है कि जल्दी ही बाकी की किस्तें भर पाने में सक्षम हो पाएंगी।
लछमीना देवी और गीता देवी जैसी हजारों महिलाएँ स्वयं सहायता समूहों से जुड़ कर अपनी सफलता की कहानी लिख रही है। ये महिलाएँ रोजगार प्राप्त कर रोजगार का सृजन भी कर रही हैं जिससे अन्य कई महिलाओं को रोजगार प्राप्त हो रहा है। कोरोना काल में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं ने मास्क का निर्माण बड़े पैमाने पर किया। जिससे लाॅक डाउन में इनको रोजगार मिला और आमदनी हुई दूसरी ओर कोरोना संक्रमण को रोकने में भी सहायता मिली। इनके द्वारा बनाए गये मास्क सरकारी कार्यालयों, अस्पतालों, पीएचसी, नगर निगम, नगर पंचायत, ग्राम पंचायत इत्यादि को बेचा गया है। अकेले सारण जिले में ही जीविका से जुड़ी महिलाओं ने लगभग 4.21 लाख मास्क बनाए हैं।
स्वयं सहायता समूह की एक अन्य सदस्य ज्ञान्ती देवी बताती हैं कि उन्होंने समूह के माध्यम से बन्धन बैंक से ऋण लेकर सिलाई मशीन खरीदा और कपड़े की सिलाई का काम शुरू किया । धीरे - धीरे काम बढ़ने लगा और फिर उन्होंने दो अन्य महिलाओं को इस काम से जोड़ कर रोजगार दिया। आज वो इस रोजगार से दस से पन्द्रह हजार रूपया प्रति माह की आय प्राप्त कर रही हैं। साथ ही सही समय पर ऋण की किस्तें भी जमा कर रही हैं। वो कहती हैं कि उनसे प्रेरित होकर उनके आसपास की कई महिलाओं ने समूह से जुड़कर अपना रोजगार खड़ा किया है। जिससे उनके तथा उनके परिवार के जीवन स्तर में सकारात्मक बदलाव आया है।
स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हुई लाखों महिलाएँ घरेलू और कुटीर उद्योग स्थापित कर स्वयं भी रोजगार पा रही है तथा अन्य महिलाओं को भी रोजगार उपलब्ध करा कर एक दूसरे की मददगार बन रही हैं। ये आत्म निर्भर महिलाएँ समाज के समक्ष महिला सशक्तिकरण की मिशाल पेश कर रही हैं तथा साथ ही आत्म निर्भर भारत की बुनियाद भी मजबूत कर रही हैं।
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