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भारतीय परिवार का उजड़ता स्वरूप

भारतीय परिवार का उजड़ता स्वरूप

बिमल मिश्र

परिवार के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती । परिवार समाज की आधारभूत इकाई है । एक अच्छा परिवार समाज के लिये वरदान और एक बुरा परिवार समाज के लिये अभिशाप होता है । परिवार सदस्यों का समाजीकरण करता है, साथ ही सामाजिक नियंत्रण का कार्य करता है क्योंकि सभी नातेदार सम्बन्धों की मर्यादा से बंधे होते हैं । एक अच्छे परिवार में अनुशासन और आजादी दोनों होती हैं । परिवार मनुष्य के जीवन का बुनियादी पहलू है। व्यक्ति का निर्माण और विकास परिवार में ही होता है । परिवार मनुष्य को मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्रदान करता है, व्यक्तित्व का विकास करता है । प्रेम, स्नेह, सहानुभूति, परानुभुति आदर सम्मान जैसी भावनाऐं सिखाता है । परिवार ही धार्मिक क्रियाकलाप सिखाता है जो स्वयं में नैतिक है । अतः बच्चा नैतिकता सीख जाता है। बच्चों में संस्कार परिवार से ही आते हैं । परिवार मनुष्य की प्रथम पाठशाला है ।

भारतीय समाज में सयुंक्त परिवार का रहा है । संयुक्त परिवार में प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदरी होती है । स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या हो या आर्थिक सामाजिक सुरक्षा , सभी लोग मिलकर वहन करते हैं । कोई अकेला व्यक्ति परेशानी नहीं उठाता । इससे किसी एक व्यक्ति पर तनाव नहीं बढ़ता । पूरा परिवार एक शक्ति ग्रह की भांति होता है । जो सामाजिक सुरक्षा का कार्य करता है । संगठित होकर रहने से मौहल्ले में भी झगड़े कम होते हैं । संयुक्त परिवार में बच्चे कैसे बड़े हो जातें है पता ही नहीं चलता । बच्चों के खेलने के लिये परिवार के सदस्य ही उनके दोस्त बन जाते हैं । मनोरंजक गतिविधियां जैसे त्यौहार उत्सव आदि होते रहते हैं । उन्हें दादा दादी चाचा चाची आदि का अपार प्यार मिलता है । इसलिये परिवार को प्यार का मंदिर कहा जाता है । प्यार के साथ साथ उनका ज्ञान अनुभव अनुसाशन आदि बहुत कुछ बच्चों को मिलता है । ऐसे में बच्चों का उचित शारीरिक और चारित्रिक विकास होता है । बच्चों को संस्कारवान बनाने , चरित्रवान बनाने एवं उनके नैतिक विकास में संयुक्त परिवार का विशेष योगदान होता है जोकि एकाकी परिवार में कभी संभव नहीं है।

संयुक्त परिवार में कौशल भी सिखाया जाता है । साम्य श्रम विभाजन देखा जा सकता है ।कार्य लिंग और आयु के आधार पर बँटा होता है । परिवार एक नियामक संस्था भी है । जो घर में सभी सदस्यों को अनुशासित और नियंत्रित रखती है । इसे तनाशाही भी कहते हैं । घर का एक मुखिया होता है जो चुना नहीं जाता किन्तु वह परिवार का वरिष्ठतम सदस्य होता है । वही नियामक होता है । किन्तु मुखिया का कार्य बहुत कठिन होता है । क्योंकि वही पूरे परिवार को एक सूत्र में बाँधे रखता है । जरूरत पड़ने पर उचित दंड भी देता है । बदले में अक्सर उसे बुराइयाँ भी मिलती है । इसलिये कहा जाता है कि परिवार का मुखिया होना कांटों भरा ताज पहनने जैसा है ।

संयुक्त परिवार में झगड़ों की प्रकृति सामान्य और आपसी होती थी। जिनको बुजुर्ग लोग घर में ही सुलझा लेतें थे। क्योंकि संयुक्त परिवार स्वयं में नियामक था। एकाकी परिवार में एक दूसरे के प्रति लगाव का आभाव होता है, कोई सहारा नहीं होता समाधान के लिये कोई बुजुर्ग नहीं होता इसलिये झगड़े घर से बाहर निकल रहे हैं । आजकल पारिवारिक विवादों को निपटाने के लिये विभिन्न सतर पर परामर्श केंद्र बनाये गये है। बाबजूद इसके पारिवारिक झगड़े बढ़ते ही जा रहे हैं । इसके अनेक कारण हो सकते हैं जैसे - अहंकार, बढ़ता सुखवाद, बिना कर्तव्य के अधिकार, नारी सशक्तिकरण, आपसी संचार की कमी और सबसे बड़ा तथाकथित निजता आदि।

परिवार को विखण्डित करने में महिलाओं की भूमिका अहम है, घर के बडों या छोटों की बात का बुरा मान उनसे बदले की दुर्भावना, अधिकार प्राप्त होने पर उसका दुरुपयोग, धनसम्पत्ति की महत्वाकांक्षा और निजता की आस के कारण संयुक्त परिवार ज्यादा टूटते देखा गया है।

प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है की उसकी वृद्धावस्था सुचारू रूप से गुजरे । उसे कोई तकलीफ न उठानी पड़े । यह सब एक सयुंक्त परिवार में ही संभव है ।

किन्तु बदलते समय के साथ साथ परिवार का स्वरूप भी बदल रहा है । आधुनिक परिवारों में मुखानुमुख सम्बन्ध कम हो रहे हैं । परिवार में मुखिया का महत्त्व कम हो रहा है । पारस्परिक सम्बंधों की अपेक्षा आर्थिक महत्त्व बढ़ता जा रहा है । सम्बंधों में औपचरिकता बढ़ती जा रही है । व्यक्तिवाद बढ़ रहा है । दूसरे के प्रति भावनाऐं कम हो रही हैं तथा जीवन अधिक यांत्रिक होता जा रहा है । फिर भी व्यक्ति व्यस्त है । बुजुर्गों की उपेक्षा की जा रही है । उनके प्रति सम्मान एवं कर्तव्य घट रहा है । बुजुर्गों को बोझ समझा जा रहा है । उनकी बातों को अतार्किक कहकर अस्वीकार किया जा रहा है । बढ़ती महत्तवाकांक्षा के कारण संयुक्त परिवार एकाकी परिवार में टूट रहे है । संयुक्त परिवार के विखंडन से सर्वाधिक हानि बुजुर्गों को ही होती है । आज अधिकांश बुजुर्ग या तो किसी एक कोने में अकेलापन भोग रहे होते हैं या नौकरों के सहारे अपना जीवन काट रहे है । क्योंकि बेटों को स्वयं के कार्यों से फुर्सत नहीं है । कुछ बुजुर्ग तो विदेश गये अपने बेटे के वापस आने की आश में जीवन गुजार देते हैं ।

पहले व्यक्ति का उद्देश्य परिवार का सुख होता था । किन्तु आज व्यक्ति स्वयं के हित में सोचता है । वह अधिक उपयोगितावादी और सुखवादी हो गया है । जिस कारण से संयुक्त परिवार टूट रहे हैं ।

विवाह स्वरूप में परिवर्तन से भी संयुक्त परिवार में सामंजस्य कम हुआ है । प्रेम विवाह और अंतरजातीय विवाह बढ़ रहे हैं । परिवार एक परम्परागत संस्था है । वह परिवर्तन जल्दी स्वीकार नहीं करती । इसलिये परिवार विवाह के इन रूपों को बहुत ही कम स्वीकार करते है । आज ऑनर किलिंग की घटना देखी जा सकती है जोकि इसी का परिणाम है ।

नारी की स्तिथि भी बदल रही है । महिलायें कामकाजी अधिक होती जा रही है । परिवार की सेवा की अपेक्षा आर्थिक कार्यों को अधिक महत्व दिया जा रहा है । घर में बच्चा आया के हाथों में है । उसे माँ बाप का प्यार नहीं मिल पाता । इस तरह आधुनिक समय में परिवार संरचात्मक और प्रकार्यात्मक रूप से परिवर्तित हो रहा है । दादा दादी की नैतिक कहनियाँ अब नहीं सुनायी देतीं । बच्चे नेट पर उपलब्ध सेकंडों विडिओ गेम्स में व्यस्त है होकर तनावग्रस्त है । व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर अपना आभासी समाज बना रखा है । और यह समाज घर तक आ रहा है । प्रेम ईर्ष्या घ्रणा जैसे भाव भी इसमें देखे जा सकते हैं । आभासी समाज वास्तविक समाज पर हावी हो रहा है ।

आज का परिवार संविदात्मक परिवार अधिक दिखायी दे रहा है । परिवार में सर्व हित की भावना अब नहीं देखी जाती । संयुक्त परिवार में संघर्ष वधू और परिवार के बीच थे । एकाकी परिवार में ये संघर्ष पति पत्नी के बीच आ गये हैं । भविष्य के संघर्ष माता पिता और उनके बच्चों के बीच होंगे । भाई बहन के बीच संघर्ष जारी है । उतराधिकारी के मामले इसी की देन हैं ।

नगरीकरण परिवारों को नष्ट कर रहा है । व्यक्ति रोजगार हेतु नगरों के छोटे छोटे घरों में रहने के लिये विवश है । लोग अपना भविष्य बनाने के लिये परिवार से दूर प्रदेश अथवा विदेश चले जाते हैं । अधिक सुख सुविधाएं मिलने के कारण वो वही बस जाते हैं । पर मैं व्यक्तिगत रूप से इसे कारण न मानकर एक बहाना मानता हूँ। परिवार के एक व्यक्ति के दूर होने से परिवार नहीं टूटता, बल्कि इस बहाने से पत्नी और बच्चों को साथ ले जाने से टूटता है। यदि हम सम्पूर्ण परिवार को एक मानें तो सभी के सुख सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए सभी को नए जगह बसाने की चेष्ठा करेंगे, स्वार्थ प्रेरित हो केवल पत्नी और संतानों तक ही सीमित नहीं रहेंगे।

कुछ लोग नए जगह पर परेशानी का हवाला देकर पत्नी और संतानों को लेजाते हैं, क्या सैनिक, नाविक आदि ऐसा कर सकते हैं? यदि नहीं तो क्या घर से दूर रोज़गार तक वो अपना गुज़ारा नहीं कर सकते?

किन्तु परिवार की संरचना और प्रकार्य में जो परिवर्तन आज हम देख रहे हैं उसके लिये मुख्य कारण आधुनिकता है । भारत में आधुनिकता का अर्थ पाश्चात्य सभ्यता से लगाया जाता है अर्थात यूरोप और अमेरिका की सभ्यता से। आज लोग वहाँ के रहन सहन , खानपान तथा पहनावे को अपनाकर स्वयं को आधुनिक अनुभव करते हैं । पाश्चात्य सभ्यता मूल्य रहित है । जबकि भारतीय समाज आज भी सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़ा हुआ है । लोगों की विचारधारा भिन्न भिन्न है इस कारण परिवार में विखंडन एवं संघर्ष बढ़ता जा रहा है ।

आज तकनिकी संचार मध्यम से सम्बन्धों में निकटता आयी है । यदि हम वस्तु या व्यक्ति को लेकर मध्यम मार्ग अपनायें तो परिवार को विखंडित होने से बचाया जा सकता है । इसके लिये हमें अपनी सहनशीलता बढ़ानी होगी और इच्छाऐं थोड़ी सीमित करनी होंगी । परिवार की खुशी में ही अपनी खुशी होती है यह बात हमें समझनी पड़ेगी और दूसरों को भी समझानी पड़ेगी ।

रिश्ते कच्चे धागों की भांति बहुत नाजुक होते है जो एक बार टूटने पर मुश्किल से जुड़ते है । फिर भी उनमें गांठ पड़ ही जाती है । कवि रहीम उचित कहते है कि '' रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय टूटे पे फिर न जुड़े जुड़े गांठ पर जाये '' । अतः परिवार विखंडित न हो इसके लिये जरूरी है कि आपसी मित्रता सद्भावना , आदर , सम्मान सेवा भाव एवं विश्वास बना रहे । परिवार में संघर्ष समाप्त करने के लिये क्षमा सबसे बड़ी औषधि है।
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