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‘सीबीआई’ की असफलता अथवा राष्ट्रवादी की गलत जांच का परिणाम - सनातन संस्था

लोकतंत्र की प्रशंसा करनेवाले डॉ. दाभोलकर परिवार का ही लोकतंत्र की प्रक्रिया पर विश्‍वास नहीं है !

‘सीबीआई’ की असफलता अथवा राष्ट्रवादी की 
गलत जांच का परिणाम - सनातन संस्था

सुशांतसिंह राजपूत की मृत्यु के प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय ने मुंबई पुलिस से जांच की प्रक्रिया लेकर वह सीबीआई को सौंपने के कारण हुई अपकीर्ति के कारण राष्ट्रवादी के नेता सीबीआई को लक्ष्य बनाकर वक्तव्य कर रहे हैंपरंतु दाभोलकर प्रकरण में उन्हीं के गृहमंत्रालय द्वारा की गई गलत जांच का परिणाम सनातन संस्था को भुगतना पड रहा है । वर्ष २०१३ में डॉदाभोलकर की हत्या हुईउस समय राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता और राज्य के तत्कालीन गृहमंत्री आर.आरपाटिल के मार्गदर्शन में पुलिस ने तत्परता से जांच करते हुए मनीष नागोरी और विकास खंडेलवाल नामक दो शस्त्र तस्करों को बंदी बनाया था । उनके पास मिली पिस्तौल से ही दाभोलकर की हत्या हुई है तथा इससे संबंधित प्रमाण स्वरूप उन्होंने ‘फॉरेन्सिक ब्यौरा’ भी न्यायालय में प्रस्तुत किया था । इसके पश्‍चात जांच पर असंतुष्ट दाभोलकर परिवार ने उच्च न्यायालय में याचिका देकर जांच ‘सीबीआई’ को सौंपने की मांग की । उसके अनुसार ‘सीबीआई’ ने जांच प्रारंभ की तथा वह भी माननीय न्यायालय के निरीक्षण के अंतर्गत चल रही है । ऐसा होते हुए भी यदि राष्ट्रवादी के नेता और दाभोलकर परिवार आज ‘सीबीआई’ को ही असफल कह रहे होंतो वह उनकी ही असफलता है । ‘सीबीआई’ की असफलता के संबंध में बोलना होतो आर.आरपाटिल के समय हुई जांच पर भी प्रश्‍नचिन्ह उत्पन्न होता है । यदि इन दो शस्त्र तस्करों का अपराध ‘फॉरेन्सिक ब्यौरे’ से सिद्ध होता हैतो इन दोनों को ‘क्लीनचिट’ कैसे मिली इस संबंध में न दाभोलकर परिवार,  न ही तत्कालीन राज्य सरकार कोई कुछ नहीं बोलताऐसे प्रश्‍न सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीचेतन राजहंस ने उपस्थित किए हैं ।

वर्ष २०१३ में दाभोलकर की हत्या हुई । तब कांग्रेस-राष्ट्रवादी सरकार के कार्यकाल में दाभोलकर परिवार ने भ्रमित करनेवाले वक्तव्य किए । कालांतर से जांच सीबीआई को सौंपी गईतत्पश्‍चात राज्य में भी सत्ता परिवर्तन भी हुआ । इस प्रकरण में कुछ हिन्दुत्वनिष्ठ कार्यकर्ताआें की नाहक गिरफ्तारी हुई । तब भी कोई परिणाम नहीं निकलाइसलिए दाभोलकर परिवार चिल्लाता रहा । अब तो शिवसेना-राष्ट्रवादी-कांग्रेस इन तीन पक्षों की ‘महाविकास आघाडी’ सरकार सत्ता पर आईतब भी अभी तक जांच पर और सरकार पर प्रश्‍नचिन्ह उपस्थित किए जा रहे हैं । इस घटनाक्रम से एक बात प्रमुख रूप से सामने आती हैवह यह कि सरकार किसी भी दल की होजांच तंत्र कोई भी हो; ‘दाभोलकर का खरा हत्यारा कौन है’इसकी अपेक्षा दाभोलकर परिवार को जिसे हत्यारा सिद्ध करना हैवे हत्यारे अभी तक पकडे नहीं गए हैंइसलिए निरर्थक बातें चल रही हैं । अन्य समय लोकतंत्र के तत्वों के नाम से चिल्लानेवाले दाभोलकर परिवार का क्या वास्तव में लोकतंत्र प्रक्रिया पर विश्‍वास है सभी अन्वेषण संस्थाआें द्वारा जांच करने के पश्‍चात भी कुछ नहीं मिला’यह कहते हुए अब विदेश की ‘एफ.बी.आई.’ अथवा ‘स्कॉटलैंड यार्ड’ को जांच सौंपने की मांग दाभोलकर परिवार करनेवाला है क्या ?
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